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Author name: Amritesh

जैन सरस्वती !! Jain Saraswati.

जैन सरस्वती  जैनाचार्यों ने सरस्वती देवी के स्वरूप की भगवान् की वाणी से तुलना की है। यथार्थत: सरस्वती की प्रतिमा द्वादशांग का ही प्रतीकात्मक चिह्न है। जैन सरस्वती के चार हाथों में कमल, अक्षमाला, शास्त्र तथा कमण्डलु हैं, जो क्रमश: अन्तर्दृष्टि, वैराग्य, ज्ञान और संयम के प्रतीक हैं। जैन मनीषियों ने शास्त्रों की रचना करते […]

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भारतीय संविधान में जैनों की स्थिति !! Status of Jains in Indian Constitution.

भारतीय संविधान में जैनों की स्थिति  भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५ (२ ख) के अनुसार ‘‘खंड (२) के उपखण्ड (ख) में हिन्दुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्धधर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश हैं और हिन्दुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ

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जैनधर्म की प्राचीनता और स्वतंत्रता के विषय में न्यायालयों के निर्णय !! Court decisions regarding the antiquity and independence of Jainism.

जैनधर्म की प्राचीनता और स्वतंत्रता के विषय में न्यायालयों के निर्णय सन् १९२७- मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा एयर १९२७ मद्रास २२८ मुकदमे के निर्णय में जैनधर्म को स्वतंत्र, प्राचीन व ईसा से हजारों वर्ष पूर्व का माना। सन् १९३९- मुम्बई उच्च न्यायालय में एयर १९३९ मुम्बई ३७७ मुकदमे के निर्णय में कहा कि जैनधर्म वेदों को स्वीकार

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अनन्त चौदश व्रत कथा एवं विधि !! Anant Chaudash Vrat Katha Evam Vidhi !!

अनन्त चौदश व्रत कथा एवं विधि !! Anant Chaudash Vrat Katha Evam Vidhi !! अनन्तव्रते तु एकादश्यामुपवास: द्वादश्यामेकभत्तंत्रयोदश्यां काञ्जिकं चतुर्दश्यामुपवासस्तदभावेयथा शक्तिस्तथा कार्यम्। दिनहानिवृद्धौ स एव क्रम: स्मरत्वयः। अर्थ- अनन्त व्रत में भाद्रपद शुक्ला एकादशी कोउपवास, द्वादशी को एकाशन, त्रयोदशी को कांजी-छाछअथवा छाछ में जौ, बाजरा के आटे को मिलाकर महेरी-एकप्रकार की कढ़ी बनाकर लेना और चतुर्दशी को

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निर्दोष सप्तमी व्रत कथा एवं विधि !! Nirdosh Saptamee Vrat katha Evam Vidhi !!

निर्दोष सप्तमी व्रत कथा एवं विधि !! Nirdosh Saptamee Vrat katha Evam Vidhi !! निर्दोष सप्तमी व्रत की विधि निर्दोष सप्तमी व्रत भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को करना चाहिए। इस व्रत में षष्ठी तिथि से संयम ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत की समस्त विधि मुकुटसप्तमी के ही समान है, अंतर इतना है कि इसमें रात भी

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सप्तपरमस्थान व्रत कथा एवं विधि !! Saptparamasthan Vrat katha Evam Vidhi !!

सप्तपरमस्थान व्रत कथा एवं विधि !! Saptparamasthan Vrat katha Evam Vidhi !! सप्तपरमस्थान व्रत विधि सज्जाति: सद्गार्हस्थ्यं पारिव्राज्यं सुरेन्द्रता। साम्राज्यं परमार्हन्त्यं परिनिर्वाणमित्यपि।। सज्जाति, सद्गार्हस्थ्य, पारिव्राज्य, सुरेन्द्रता, साम्राज्य, आर्हन्त्य और निर्वाण ये सात परम-सर्वोत्तम स्थान माने गये हैं। माता-पिता के वंश परम्परा की शुद्धि सज्जाति है। श्रावकाचार क्रियायुक्त श्रावक सद्गृहस्थ है। रत्नत्रय की पूर्ति हेतु जैनेश्वरी

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महातीर्थ व्रत विधि !! Mahatirth Vrat Vidhi !!

महातीर्थ व्रत विधि !! Mahatirth Vrat Vidhi !! महातीर्थ व्रत (णमो णिसीहियाए व्रत) (श्री गौतमगणधर वाणी के आधार से) प्रस्तुति-गणिनी ज्ञानमती भगवान महावीर के समवसरण में बैठकर प्रथम गणधर देव श्री गौतमस्वामी ने जिन दण्डकसूत्रों को कहा है वे मुनियों-आर्यिकाओं के लिए दैवसिक (रात्रिक) प्रतिक्रमणरूप में और पाक्षिकप्रतिक्रमणरूप में प्रसिद्ध हैं। उनकी टीका करते हुए

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चौरासी लाख योनि भ्रमण निवारण व्रत विधि !! Chauraasee laakh yoni bhraman nivaaran vrat vidhi !!

चौरासी लाख योनि भ्रमण निवारण व्रत विधि !! Chauraasee laakh yoni bhraman nivaaran vrat vidhi !!   चौरासी लाख योनि भ्रमण निवारण व्रत      -गणिनी आर्यिकाश्री ज्ञानमती माताजी व्रत विधि-अनादिकाल से सभी संसारी प्राणी चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करते आ रहे हैंं। उन चौरासी लाख योनि के भ्रमण से छूटने के लिए यह

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मंगल त्रयोदशी (धनतेरस) कथा एवं व्रत विधि !! Mangal trayodashee (dhanateras) katha evan vrat vidhi !!

मंगल त्रयोदशी (धनतेरस) कथा एवं व्रत विधि !! Mangal trayodashee (dhanateras) katha evan vrat vidhi !! मंगल त्रयोदशी (धनतेरस) व्रत एवं कथा व्रतविधि-  कार्तिक कृष्णा १२ के दिन इन व्रतिकों को एक भुक्ति करना चाहिए। त्रयोदशी को प्रात:काल में शुचिजल से अभ्यंग स्नान (शिर से स्नान) करके नवधौतवस्त्र धारण करना चाहिए। सब पूजाद्रव्य हाथ में

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मेघमाला व्रत कथा एवं विधि !! Meghamaala vrat katha evan vidhi !!

मेघमाला व्रत कथा एवं विधि !! Meghamaala vrat katha evan vidhi !! मेघमाला व्रत विधि मेघमाला व्रत भादों बदी प्रतिपदा से लेकर आश्विन वदी प्रतिपदा तक ३१ दिन तक किया जाता है। व्रत के प्रारंभ करने के दिन ही जिनालय के आँगन में सिंहासन स्थापित करें अथवा कलश को संस्कृत कर उसके ऊपर थाल रखकर,

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