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Shabdalankar

25 दिसम्बर 2015, सिद्धक्षेत्र अहार जी में भगवान् श्री शान्तिनाथ स्वामी के अतिशयकारी पादमूल में,संघस्थ बा.ब्र.विशुदीदी की असाध्य बीमारी (रोग) से करुणान्वित हो पूज्य गुरुदेव ने जब लगभग 1400 वर्ष प्राचीन आचार्य पूज्यपाद स्वामी रचित शान्त्यष्टक का भावपूर्वक पाठ किया तो देखते ही देखते क्षण मात्र में दीदी असाध्य रोग से मुक्त हो गईं। तब क्षेत्र के यक्ष-यक्षणियों द्वारा गुरुदेव की महापूजा की गई और सूचित किया कि आपको अपनी निर्मल साधना से इस पंचमकाल में दुर्लभतम शान्ति भक्ति की सहज ही सिद्धि प्राप्त हुई है।
परम पूज्य भावलिंगी संत राष्ट्रयोगी श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज का अनुत्तम वैदुष्य जहाँ एक ओर धर्मनीति की प्रतिष्ठा करता है वहीं दूसरी ओर आपका क्रान्तिनिष्ठ मौलिक चिंतन, राजनीति, न्याय-नीति, मानव सेवा, शाकाहार, गौरक्षा, लोकतंत्र, पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्वों के प्रति जन जागरण कर संपूर्ण देश के लिये गौरव का विषय बन पड़ा है। पूज्य गुरूदेव के दिव्यावदानों से आज समुचा देश गौरवान्वित है। इसीलिये महमूदाबाद चातुर्मास 2021 में सम्पूर्ण अवध प्रान्त की जैन समाज की गरिमामयी उपस्थिति में कला और साहित्य की अखिल भारतीय संस्था एवं “राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ” के अनुसांगिक संगठन “संस्कार भारती” की ओर से माननीय श्री गिरीशचन्द्र मिश्र, राज्यमंत्री, उत्तरप्रदेश शासन द्वारा पूज्य गुरुदेव को “राष्ट्रगौरव” का अलंकरण भेंट किया गया।
वर्तमान में पंथवाद, संतवाद और जातिवाद के नाम पर बिखरती दिगम्बर जैन समाज में अनादि अनिधन “जिनागम पंथ” का उद्घोष कर पूज्य गुरुदेव ने जैन एकता के लिये एक महनीय कार्य किया है। पूज्य गुरुदेव के इस “जैन यूनिटी मिशन” से प्रभावित हो सन् 2020 में श्री कल्पद्रुम महामण्डल विधान एवं गजरथ महोत्सव के सुप्रसंग पर बा.ब्र. ऋषभ भैया (नागपुर) के मार्गदर्शन में सकल दिगम्बर जैन समाज, बाराबंकी ने आपको “जिनागम पंथ प्रवर्तक” का अलंकरण भेंट कर आपके इस अभिनंद्य प्रयास की अभ्यर्थना की।
आत्मप्रदेशों में सच्चे भावलिंग की प्रतिष्ठा कर, आत्मरति और परविरति के साथ चारित्र रथ पर सवार हो पूज्य गुरुदेव आत्मोत्थान के सुपथ पर अबाध रीति से वर्धमान हैं। आपकी इस आत्मोन्नयन की निष्पंक चारित्र साधना से प्रभावित हो देश के वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश’सरल’जीने बिजयनगर चातुर्मास 2012 में आपको “चारित्ररथी” का अलंकरण भेंट कर स्वगौरववर्धन किया।
25-12-2015, सिद्धक्षेत्र अहार जी में भगवान् श्री शान्तिनाथ स्वामी के अतिशयकारी पादमूल में, संघस्थ बा.ब्र.विशु दीदी की असाध्य बीमारी से करुणान्वित हो पूज्य गुरुदेव ने आचार्य पूज्यपाद स्वामी रचित शान्त्यष्टक का भावपूर्वक पाठ किया और क्षण मात्र में दीदी असाध्य रोग से मुक्त हो गईं। इस घटना के साक्षी लोगों ने आपको “शांति प्रभु के लघुनंदन” कहकर पुकारा|
सम्प्रतिकाल में कुरल शैली का सैकड़ों विषयों को हृदयंगम करने वाला और अमर महाकाव्य ‘जीवन है पानी की बूंद’ के शब्द शिल्पी, भजन, गजल, मुक्तक, कविता, नई कविता, पद्यानुवाद, सवैया आदि अनेक जटिल विद्याओं पर साधिकार कलम चलाने वाले परम पूज्य भावलिंग संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज के अपूर्व काव्यात्मक अवदान से प्रेरित होकर, 14 नवम्बर 2016 को अखिल भारतीय आध्यात्मिक कवि सम्मेलन में, देश के ख्यातिलब्ध मूर्धन्य कवियों ने सुरेश ‘पराग’ के नेतृत्व में एवं पं. संकेत जैन जी के मार्गदर्शन में सकल जैन समाज देवेन्द्रनगर की गरिमामयी अनुमोदन के संत पूज्य श्री को ‘आदर्श महाकवि’ का अलंकरण भेंट किया एवं सौभाग्य प्राप्त किया।
पूज्य गुरूवर का “वैचारिक वैभव” सिर्फ जैनों तक सीमित नहीं अपितु हर जाति का व्यक्ति उसे अपनी विरासत मानता है। अतः विजयनगर वर्षायोग में राष्ट्रवादी संस्था भारत विकास परिषद् द्वारा आयोजित दिव्य संस्कार प्रवचन माला में आपके राष्ट्रोन्नति से समृद्ध उपदेशों को सुनकर आपको “राष्ट्रयोगी” का अलंकार समर्पित किया।
उत्तरप्रदेश के एटा नगर में स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जन्म जयन्ति के अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद के तत्वावधान में आयोजित अखिल भारतीय युवा सम्मेलन में पूज्य गुरुदेव के राष्ट्रहित में समर्पित देशोन्नति परक अमूल्य चिंतन से प्रभावित हो विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आपको “राष्ट्रहितैषी”अलंकरण से अलंकृत किया गया।
श्रुताराधना के अनुपम आराधक-जिनेन्द्रवाणी के गहन प्रचारक वाणी और कलम के अनूठे जादूगर पूज्य श्री को तीक्ष्ण प्रज्ञा और निर्मल ज्ञान से प्रभावित होकर अखिल भारतीय आध्यात्मिक कवि सम्मेलन विजयनगर 2012 में कविगण एवं भारत विकास परिषद द्वारा “प्रज्ञामनीषी” की उपाधि से कर मान बढ़ाया।
पूज्य आचार्य श्री की निर्भीक शैली जन मानस को सहज ही अपनी और आकर्षित कर लेती है सभी तो पुण्यवर के प्रवचनों में जैनों के साथ-साथ अवैन भी देशना को सुनकर आनंदित होते हैं, आपके उपदेशों में प्राणमा के उदय की दिव्य चमक नजर आती है। तभी तो विजयनगर दिगम्बर जैन समाज ने 2012 वर्षायोग में आपको “सर्वोदयी संत” को उपाधि से नवाजा।
संतवाद, पंथवाद और ग्रंथवाद को वैचारिक संकीर्णताओं में असम्पत पुज्य श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महाराज को सिर्फ चर्चा ही अनुकरणीय नहीं, अपितु उनका ‘चतुरानुरोग’ का निर्मल ज्ञान भी ज्येष्ठ है। ऐसे ज्ञान और वर्षा में श्रेष्ठ संत के महिमावत व्यक्तित्व से प्रभावित होकर जतारा जैन समाज ने पंचकल्याणक 2012 के अवसर पर आपको “आचार्य पुंगव” की उपाधि से भूषित कर अपना मान बढ़ाया।
वात्सल्य और करुणा के दो पावन तटों के बीच प्रवाहित गुरुवर की जीवन मंदाकिनी जनमानस की सतह पर बिखरी घृणा, बैर, कटुता को कलुपता को सहज ही धो डालती है। पूज्य श्री के इसी गुण आकर्षण से अनुग्रहीत हो, एटा में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन के अवसर पर राजेश जैन गीतकार आदि कवि समूह ने गुल्तर को “वात्सल्य सिन्धु” का भाव वंदन अर्पित कर सौभाग्य माना।
पूज्य गुरुवर विमर्शसागर जी महाराज की अनुशासन के सुडौल गाँचे में डली निर्दोष श्रमण चर्या वर्तमान में अमग जगत को गौरवान्वित करती है, पूज्य श्री की आगमानुसारो चर्या से प्रभावित होकर एटा-2009 वर्षायोग में शाकाहार परिषद द्वारा आपको “भ्रमण गौरव” की उपाधि से अलंकृत किया और अपना सौभाग्य बढ़ाया।
संत के जीवन का सबसे प्रभावी गुण होता है उसका अकृत्रिम वात्सल्य भाव, पूज्य गुरुवर को यह वात्सल्य की अमूल्य सम्पदा, गुरु परम्प से विरासत में ही प्राप्त हुई है, वर्षायोग 2008 के उपरान्त उ.प्र. के आगरा नगर में पंचकल्याणक के अवसर पर आगरा समाज ने आपके वात्सल्य से प्रभावित होकर आपको “वात्सल्य शिरोमणि” के अलंकार में विभूषित किया।
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