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 भारत की पहली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी

जैन रानी अब्बक्का देवी


 

कर्नाटक के तटीय प्रान्तों में अब्बक्का के सम्बन्ध में अनेक लोकगीत और किंवदंतियाँ प्रसिद्ध हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी बच्चों को उनके साहस की कहानियाँ सुनाई जाती हैं। तटीय कर्नाटक के लोक थियेटर तथा यक्षगान शैली में भी रानी की कीर्ति गाई जाती है।

अब्बक्का की स्मृति में उनके शहर उल्लाल में उनका सैनिक वेशभूषा में कांस्य का स्टेच्यू लगाया गया। उल्लाल के चौक का नाम वीर रानी चौक है। प्रतिवर्ष वीर रानी अब्बक्का महोत्सव मनाया जाता है। वीर महिलाओं को अब्बक्का प्रशस्ति पुरस्कार भी दिया जाता है।

  • भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शहीद एक जैन महिला अब्बक्का रानी थी।
  • गौरव की बात है कि उनका परिवार जैन श्रुत संरक्षण में महनीय योगदान देने वाले शहर मूलबद्री के राज परिवार से सम्बन्धित रहा है।
  • हमारा भारतवर्ष प्राचीन काल से ही ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता रहा है, जो इसकी समृद्धि और विपुल प्राकृतिकसम्पदा का सूचक है। इस समृद्धि की कहानी सुनकर यूरोप में पुर्तगालियों ने सबसे पहले भारत से व्यापार सम्बन्ध बढ़ाना प्रारम्भ किया। पुर्तगालियों ने नये समुद्री मार्ग की खोज की।
  • वास्को डि गामा नामक पुर्तगाली अफ्रीका महाद्वीप के चक्कर लगाते हुए २० मई, १४९८ को कालीकट पहुँचा था | गोवा पर अपना नियन्त्रण स्थापित करने के पश्चात् पुर्तगालियों ने अपना ध्यान दक्षिणी तट की ओर केन्द्रित किया। सर्वप्रथम १५२५ में उन्होंने दक्षिण कनारा तट पर आक्रमण किया एवं मंगलौर बन्दरगाह को नष्ट कर दिया। मंगलौर के समीप (लगभग ८-१० कि० मी०) उल्लाल एक समृद्ध बन्दरगाह था एवं अरब व अन्य पश्चिमी देशों में मसालों के व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। व्यापार का मुख्य व लाभदायक केन्द्र होने के कारण पुर्तगाली इस पर अपना नियन्त्रण स्थापित करना चाहते थे।
  • उस समय उल्लाल की रानी अब्बक्का थी, जो चौटा वंश से सम्बन्धित थी । इस वंश ने तटीय कर्नाटक के अनेक भागों पर शासन किया था उनकी राजधानी पुट्टीगे थी। उल्लाल इस वंश की सहायक राजधानी थी । पुर्तगालियों ने उल्लाल पर कब्जा करने के अनेक प्रयास किये क्योंकि उल्लाल सामरिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्त्वपूर्ण था। लगभग ४० वर्ष तक अब्बक्का ने पुर्तगालियों के हर प्रयास को निरर्थक कर दिया। उनके साहस के लिए उन्हें अभय रानी के नाम से जाना जाता है। वह उन प्रारम्भिक भारतीयों में से एक थीं, जिन्होंने औपनिवेशिक शक्तियों के विरुद्ध लोहा लिया । अतः उन्हें भारत की प्रथम महिला स्वतन्त्रता सेनानी के रूप में भी जाना जाता है।
  • अब्बक्का यद्यपि जैन धर्मावलम्बी थी परन्तु उनकी सेना में सभी जातियों के लोग, हिन्दू मुस्लिम आदि सम्मिलित थे। अब्बक्का ने एक जैन मन्दिर का निर्माण कराया था जिसमें आज भी भगवान् आदिनाथ और भगवान् पार्श्वनाथ के जिनबिम्ब विराजित हैं। अब्बक्का समय निकाल कर यहीं दर्शन-पूजन करने जाती थीं।
  • पुर्तगाली अब्बक्का की रणनीतियों से बहुत परेशान थे और चाहते थे कि अब्बक्का उनके समक्ष आत्मसमर्पण कर दें किन्तु अब्बक्का ने ऐसा करने से मना कर दिया । अतः पुर्तगालियों ने १५५५ में अब्बक्का से लड़ने के लिए एडमिरल डोम अलवारा डी सिल्वेरिया के नेतृत्व में सेना भेजी परन्तु रानी ने आक्रमण का सफल प्रतिकार कर पुर्तगालियों को पराजित कर दिया।
  • १५५७ में पुर्तगालियों ने मंगलूर को लूटकर बर्बाद कर दिया। १५६८ में उन्होंने अपना ध्यान उल्लाल की ओर केन्द्रित किया, अब्बक्का ने उन्हें पुनः पराजित कर दिया । पुर्तगाली गवर्नर एन्टोनिओ नोरोन्हा द्वारा जोवोआ पेक्सोटो सेनापति को एक सैनिक बेड़े के साथ (रानी को बाध्य करने को) भेजा गया उन्होंने उल्लाल पर नियन्त्रण किया और राजमहल में घुस गये। रानी बचकर निकल गई और एक मस्जिद में उसने शरण ली। उसी रात २०० सैनिकों के साथ रानी ने पुर्तगालियों पर हमला बोला। इस हमले में जनरल मारा गया । ७० पुर्तगाली सैनिक बन्दी बना लिये गये तथा अनेक भाग गये। रानी ने अपने सहयोगियों से मिलकर एडमिरल मैस्करेनहारा को मार दिया और उन्हें मंगलौर बन्दरगाह छोड़ने को बाध्य कर दिया।
  •  १५६९ में पुर्तगालियों ने न केवल मंगलौर जिले पर पुनः कब्जा कर लिया अपितु कुन्दापुर पर भी कब्जा कर लिया। इसके बावजूद भी रानी एक चुनौती बनी रही। रानी के नाराज पति की सहायता से पुर्तगाली उल्लाल पर आक्रमण करने में सफल हुए अन्त में बहादुरी पूर्वक जंग लड़ते हुए अब्बक्का अपने पति की धोखेबाजी के कारण युद्ध हार गयी तथा बन्दी बना ली गयी । जेल में बहादुरी पूर्वक विद्रोह करते हुए लड़ते-लड़ते शहीद हो गई।
  • कर्नाटक की इतिहास एकेडेमी ने एक सड़क का नाम रानी अब्बक्का देवी रोड रखा है।
  • भारत सरकार ने रानी अब्बक्का देवी के सम्मान में १५ जनवरी, २००३ को एक विशेष आवरण जारी किया।
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