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Jain Article

स्वतंत्रता संग्राम में जैन !! Jain in freedom struggle!!

स्वतंत्रता संग्राम में जैन !! Jain in freedom struggle!!   सन् १८५७ की जनक्रान्ति से प्रारम्भ हुआ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सन् १९४७ ई. तक चलता रहा। ९० वर्षों की इस आजादी की लड़ाई में अनेक जैन देशप्रेमियों ने जेलों की यातनाएँ सहीं, पुलिस के डंडे की मार सही एवं अन्त में हँसते—हँसते मौत को गले

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विदेशों में जैन साहित्य !! Jain literature abroad !!

विदेशों में जैन साहित्य !! Jain literature abroad !! लंदन स्थित अनेक पुस्तकालयों में भारतीय ग्रंथ विद्यमान हैं, जिनमें से एक पुस्तकालय में तो लगभग १५०० हस्तलिखित भारतीय ग्रंथ हैं और अधिकतर ग्रंथ प्राकृत—संस्कृत भाषाओं में हैं और जैनधर्म से सम्बन्धित हैं। जर्मनी में लगभग ५ हजार पुस्तकालय हैं। इनमें से र्बिलन स्थित एक पुस्तकालय

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वीर निर्वाण संवत् सबसे प्राचीन !! Veer Nirvana Samvat is the oldest !!

वीर निर्वाण संवत् सबसे प्राचीन !! Veer Nirvana Samvat is the oldest !! विभिन्न धर्मों में अपने महापुरुषों के नाम से संवत् चलाने की परम्परा रही है। जैनधर्म में भी भगवान महावीर की निर्वाणतिथि के आधार पर वीर निर्वाण संवत् का प्रचलन है। यह हिजरी, विक्रम, ईसवी, शक आदि संवतों से अधिक पुराना है एवं

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 अल्पसंख्यक जैन समुदाय होने से हमें संवैधानिक सुरक्षा कवच प्राप्त !! Being a minority Jain community, we get constitutional protection !!

 अल्पसंख्यक जैन समुदाय होने से हमें संवैधानिक सुरक्षा कवच प्राप्त !Being a minority Jain community, we get constitutional protection! संवैधानिक कवच १. जैन समुदाय के अल्पसंख्यक घोषित होने से संविधान के अनुच्छेद २५ से ३० के अनुसार जैन समुदाय धर्म, भाषा, संस्कृति की रक्षा संविधान में उपबन्धों के अन्तर्गत हो सकेगी। २. जैन धर्मावलम्बियों के धार्मिक स्थल,

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‘‘चरणस्पर्श’’ का वैज्ञानिक आधार है !! The scientific basis of “touching feet” is !!

‘‘चरणस्पर्श’’ का वैज्ञानिक आधार है !! The scientific basis of “touching feet” is !! सारांश (सभी धर्म एवं संस्कृति, सभ्यता एवं सम्प्रदाय सैद्धान्तिक विभिन्नता होते हुए भी कुछ मान्यताओं, अवधारणाओं एवं क्रियाओं पर एकमत है। स्पष्ट है कि इनमें कुछ अन्तर्निहित विशिष्टता हैं। ‘‘चरण स्पर्श’’ भी एक ऐसी परम्परा और भावना है जो पश्चिमी रंग

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मालवा के सुल्तानों के समय जैन धर्म

मालवा के सुल्तानों के समय जैन धर्म सारांश १४-१६ वीं शताब्दी के मध्य मालवा में अनेक मुस्लिम शासकों का शासन रहा। इस अवधि में होशंगशह गौरी, मोहम्मद गौरी, महमूद खिलजी, गयासुद्दीन खिलजी, नासिरुद्दीन खिलजी, महमूद खिलजी-११ आदि के शासन काल में मालवांचल में जैन धर्मानुयायी को अनेक प्रशासनिक पदों पर प्रतिष्ठित किया गया। इसके अतिरिक्त जैन

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जैन और बौद्ध धर्म-दर्शन : एक तुलनात्मक दृष्टि

जैन और बौद्ध धर्म-दर्शन : एक तुलनात्मक दृष्टि -डॉ. धर्मचन्द जैन जैन एवं बौद्ध दोनों धर्म-दर्शन श्रमण संस्कृति के परिचायक हैं। इन दोनों में श्रम का महत्त्व अंगीकृत है। ‘श्रमण’ शब्द का प्राकृत एवं पालिभाषा में मूलरूप ‘समण’ शब्द है, जिसके संस्कृत एवं हिन्दी भाषा में तीन रूप बनते हैं १. समन – यह विकारों

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अभिषेक विधि – Abhishek-vidhi

अभिषेक विधि – Abhishek-vidhi जैन धर्म में जीव के उत्थान के २ मार्ग बताये गये हैं, श्रमण (मुनि) मार्ग एवं श्रावक मार्ग| श्रमण मार्ग का निर्दोष पालन हमारे मुनि भगवंत, प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ स्वामी के समय से लेकर आज तक कर रहे हैं और इस पंचम काल के अंत-अंत तक करते रहेंगे| श्रावक मार्ग

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