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Author name: Amritesh

अष्टान्हिका व्रत विधि !! Ashtaanhika vrat vidhi !!

अष्टान्हिका व्रत विधि !! Ashtaanhika vrat vidhi !!   अष्टान्हिका व्रत विधि अष्टान्हिकाव्रतं कार्तिकफाल्गुनाषाढमासेषु अष्टमीमारभ्य पूर्णिमान्तं भवतीति। वृद्धावधिकतया भवत्येव, मध्यतिथिह्रासे सप्तमीतो व्रतं कार्यं भवतीति; तद्यथा सप्तम्यामुपवासोऽष्टम्यां पारणा नवम्यां काञ्जिकं दशम्यामवमौदार्यमित्येको मार्ग: सुगम: सूचित: जघन्यापेक्षया तदादिदिनमारभ्य। पूर्णिमान्तं कार्य: षष्ठोपवास: पद्मदेववाक्यसमादरै: भव्यपुण्डरीक़ै: अन्यथाक्रियमाणे सति व्रतविधिर्नश्येत्। एवं सावधिकानि व्रतानि समाप्तानि। अर्थ- अष्टान्हिका व्रत कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मासों […]

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नवनिधि व्रत विधि !! Navnidhi Vrat Vidhi !!

नवनिधि व्रत विधि !! Navnidhi Vrat Vidhi !! नवनिधि व्रत हस्तिनापुर में भगवान शांतिनाथ, भगवान कुंथुनाथ एवं भगवान अरनाथ ये तीन तीर्थंकर जन्मे हैं। ये तीनों ही तीर्थंकर तीन-तीन पद के धारक हुए हैं। ये ही इन तीनों तीर्थंकर भगवन्तों की एवं हस्तिनापुर तीर्थ की विशेषता है। इन तीनों तीर्थंकरों के तीन-तीन पदों की अपेक्षा

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धर्मचक्र व्रत विधि !! Dharmchakra Vrat Vidhi !!

धर्मचक्र व्रत विधि !! Dharmchakra Vrat Vidhi !! धर्मचक्र व्रत धर्मचक्र व्रत २२ दिनों में पूर्ण होता है। इसमें १६ उपवास और ६ पारणाएँ सम्पन्न होती हैं। प्रथम उपवास, पारणा, पश्चात् दो उपवास पारणा, अनन्तर तीन उपवास पारणा, तत्पश्चात् चार उपवास पारणा, पश्चात् पाँच उपवास पारणा एवं अन्त में एक उपवास और पारणा की जाती

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द्विकावली व्रत विधि !! Dvikavli Vrat Vidhi !!

द्विकावली व्रत विधि !! Dvikavli Vrat Vidhi !! द्विकावली व्रत एक व्रत इसमे 48 बेला और इतनी ही पारणाएं की जाती हैं। द्विकावली व्रत में दो उपवास के अनन्तर पारणा की जाती है। इसमें कुल ५४ उपवास होते हैं और ५४ दिन ही पारणा करनी पड़ती है। इसमें तिथि आदि का कोई नियम नहीं है।

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नवदेवता व्रत विधि !! Navdevata Vrat Vidhi !!

नवदेवता व्रत विधि !! Navdevata Vrat Vidhi !! नवदेवता व्रत व्रतविधि—  नवदेवता व्रत का दूसरा नाम रूपार्थवल्लरी व्रत है। यह आश्विन शुक्ला एकम् से आश्विन शुक्ला नवमी तक किया जाता है, पुन: दशमी को पूजा करके आहार दानादि देकर व्रत का समापन करें, इस प्रकार ९ वर्ष तक यह व्रत किया जाता है। ‘‘श्री जैनेन्द्र व्रत

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जिनगुणसंपत्ति व्रत कथा एवं विधि !! jingunasampati vrat kee katha evan vidhi !!

जिनगुणसंपत्ति व्रत कथा एवं विधि !! jingunasampati vrat kee katha evan vidhi !! जिनगुणसंपत्ति व्रत विधि एवं कथा धातकी खण्ड द्वीप के अन्तर्गत पूर्वमेरु संबंधी पश्चिम विदेह क्षेत्र में गंधिल नामक देश है। उसमें एक पाटलिपुत्र नाम का नगर है। उस नगर में एक नागदत्त सेठ रहते थे, उनकी भार्या का नाम सुमति था। वे

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सोलहकारण व्रत एवं विधि !! solahakaaran vrat evan vidhi !!

सोलहकारण व्रत एवं विधि !! solahakaaran vrat evan vidhi !!  सोलहकारण व्रत मेघमालाषोडशकारणञ्चैतद्द्वयं समानं प्रतिपद्दिनमेव द्वयोरारम्भं मुख्यतया करणीयम्। एतावान् विशेष: षोडशकारणे तु आश्विनकृष्णा प्रतिपदा एव पूर्णाभिषेकाय गृहीता भवति, इति नियम:। कृष्णपंचमी तु नाम्न एव प्रसिद्धा।  अर्थ- मेघमाला और षोडशकारण व्रत दोनों ही समान हैं। दोनों का आरंभ भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से होता है परन्तु षोडशकारण

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द्वादशकल्प व्रत विधि !! Dvadashkalp Vrat Vidhi !!

द्वादशकल्प व्रत विधि !! Dvadashkalp Vrat Vidhi !! द्वादशकल्प व्रत(मुष्टि तंदुल व्रत) जैन परम्परा में तपश्चरण को कर्म-निर्जरा में प्रमुख कारण माना है, यही कारण है कि जैनसाधु एवं श्रावक विविध प्रकार के व्रतों का समय-समय पर अनुष्ठान करते हुए देखे जाते हैं। इन्हीं व्रतों में से महान फलदायी व्रत है-द्वादशकल्प व्रत अथवा मुष्टि तंदुल

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अक्षय तृतीया व्रत विधि !! Akshay tratiya vrat vidhi !!

अक्षय तृतीया व्रत विधि !! Akshay tratiya vrat vidhi !! अक्षय तृतीया व्रत (श्री ऋषभदेव-आहार व्रत) भगवान ऋषभदेव ने चैत्र कृष्णा नवमी को प्रयाग में वटवृक्ष के नीचे जैनेश्वरी दीक्षा ली थी। छह माह तक प्रभु ध्यान में लीन रहे, अनंतर आहार की चर्या दिखलाने के लिए भगवान चांद्रीचर्या से आहार हेतु निकले किन्तु उन

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श्रुतस्कंध व्रत विधि !! Srutaskandh Vrat Vidhi !!

श्रुतस्कंध व्रत विधि !! Srutaskandh Vrat Vidhi !! श्रुतस्कंध व्रत विधि— भादों मास में भादों कृष्णा प्रतिपदा से लेकर आश्विन कृष्णा प्रतिपदा तक यह व्रत किया जाता है। इसमें एक महिने में उत्कृष्ट १६ उपवास, मध्यम १० और जघन्य ८ उपवास करें। पारणा के दिन यथाशक्ति नीरस या एक- दो आदि रस छोड़कर एक बार

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