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Author name: Amritesh

जिंदगी परमात्मा की अमानत

जिंदगी परमात्मा की अमानत जिंदगी परमात्मा की अमानत है। अगर हम अपना जीवन परमात्मा को समर्पित कर दें, तो जिंदगी में खुशहाली आपोआप प्रकट हो जायेगी। जैनदर्शन में परमात्मा कर्ता-धर्ता-हर्ता नहीं है, अपितु तू स्वयं परमात्मा है, अर्थात प्रत्येक जीवात्मा में परमात्मा होने की शक्ति विद्यमान है, अगर आत्मा स्वयं अपने परमात्मा को समर्पित हो […]

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रक्षाबंधन पर्व की शिक्षा

रक्षाबंधन पर्व की शिक्षा रक्षाबंधन पर्वो का पर्व है। धार्मिक सामाजिक समस्त पर्यों में रक्षाबंधन पर्व का एक अपना महत्व है। धर्म, समाज और देश की संस्कृति को गौरवान्वित करने में रक्षाबंधन पर्व की अपनी विशिष्ट पहिचान है। सम्पूर्ण मानवजाति को एकता, प्रेम, वात्सल्य और परस्पर सहयोग की पवित्र आभा से मंडित करने वाला यह

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साहसी मनुष्य

साहसी मनुष्य साहस मनुष्य का मनोबल बढ़ाता है। साहसी मनुष्य की सोच सदैव सकारात्मक होती है। साहसी मनुष्य ही अपने जीवन में उन्नति कर पाते हैं। साहस आत्मा की वह विशिष्ट शक्ति है, जो ऊर्जा को उत्पन्न करती रहती है। साहसी मानव कभी भयभीत नहीं होता। साहस मनुष्य को संघर्षशील बनाता है और केवल संघर्षशील

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मन की तृष्णा

मन की तृष्णा ज्ञान मन को नियंत्रित करता है। मन ज्ञान को अज्ञान बनाने का प्रयत्न करता है। मन की तृष्णा ज्ञान के अंकुश से ही समाप्त होती है। मन भोग में सुख की कल्पनायें संजोता है। मन देह सुख की चिता पर सुलाता है। पद और पदार्थों में रमना मन की नियति है। मृत्यु को

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देह पुदगल परमाणुओं का संकलन

देह पुदगल परमाणुओं का संकलन भक्ति आत्मा का स्नान है। देह का स्नान जल से होता है। देह को स्नान कराने से आत्मा स्वच्छ नहीं होती। देह का स्नान परमात्मा की आराधना के लिये होना चाहिये। उद्देश्य के अनुसार भाव निर्मित होते हैं। भावों के अनुसार आत्मा पुण्य-पाप कर्मों को बाँधता है। देह की स्वच्छता

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धूमिल होते कुलाचार?

श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के प्रवचनांश मैं 2006 में नेमावर स्थान में था। वहाँ एक जैन स्कूल चलता है और एक जैन विद्वान उस स्कूल में टीचर थे। वहाँ जैन-अजैन सभी बच्चे पढ़ते हैं। तो जो जैन विद्वान टीचर थे उन्होंने एक दिन उस क्लास के बच्चों को एक नियम दिया कि 15 दिन

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आखिर सन्दूक में है क्या ?

श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के 29/05/2021 के प्रवचनांश   एक सेठ जी थे, जिनके पास एक छोटा सा संदूक था। वह संदूक सेठ जी के कमरे में बड़े आदर और सम्मान के साथ एक उच्च स्थान पर रखा हुआ था। सेठ जी जिसको रोज साफ करते थे स्वच्छ करते थे। घर परिवार के लोग,

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हिंसक यज्ञ

श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के प्रवचनांश एक क्षीरकदम्ब नाम के गुरु हुए, वे गृहस्थ थे और उनके तीन शिष्य थे जिनमे एक उनका पुत्र पर्वत, एक राज पुत्र वसु, और एक श्रेष्ठि पुत्र जिसका नाम था नारद। गुरु ने सभी शिष्यों के लिए सुयोग्य शिक्षा दी और कहा- बेटा ज्ञान से अपने जीवन को

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गुरु का वात्सल्य

श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के 16/01/2021 के प्रवचनांश   एक संत किसी रास्ते से जा रहा है। उनका शिष्य भी उनके साथ जा रहा है। सामने से एक उद्दण्ड बालक निकला जिसके हाथ में एक लाठी थी। जैसे ही वह संत के करीब आया उसने वह लाठी संत की पीठ पर दे मारी। जिस

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ऊर्जा का ऊर्ध्वीकरण ही उत्तम ब्रह्मचर्य

  साधना की सफलता, ब्रह्मचर्य के होने पर ही हो सकती है, बिना ब्रह्मचर्य के सारी साधना और तपस्या व्यर्थ है। धर्म मार्ग में – एवं लौकिक जीवन में ब्रह्मचर्य की महिमा सर्वोच्च है। दसलक्षण धर्मों में ब्रह्मचर्य के अभाव में शेष नौ धर्म व्यर्थ मालूम पड़ते हैं| ब्रह्मचर्य की साधना दो प्रकार से की

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