अनदेखा— सच
!! Unseen true!!
ऐसे रेस्टोरेंट्स के बारे में कुछ सच्चाई जहां मांसाहारी एवं शाकाहारी भोजन एक साथ बनाता है। यह मेरे निजी अनुभव के आधार पर लिखा गया है। नितिन सोनी मैंने पिछली एक साल ऐसे रेस्टोरेंट में प्रबंधन का कार्य संभाला , जहां पर शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों तरह का खाना बनता है। अपनी आंखों के सामने ऐसा प्रदूषित वातावरण देखना एक ऐसा पीड़ाजनक अनुभव है जिसे शब्दों में बयां करना बहुत कठिन है।
मैं स्वयं अपने को दोषी मानता हूं, हिस्सा मानता हूँ ऐसे नारकीय वातावरण में कार्य करने के लिए। परन्तु कभी — कभी पारिवारिक जिम्मेदारियां ऐसे काम करने को विवश कर देती हैं। मुझे अपने इस अनुभव को आप तक पहुंचाना इसलिए जरूरी लगा क्योंकि वे लोग जो ऐसे रेस्टाँरेंट में खाना खाते हैं और सोचते हैं कि वे पूर्णत: शाकाहारी भोजन ही ग्रहण कर रहे हैं तो वे पूर्णत: गलत है।
आइए अब आपको एक ऐसे ही शाकाहारी मांसाहारी रेस्टोरेन्ट की रसोई घर यानी किचन की झलक दिखलाते हैं।
सर्वप्रथम तो परिचित करवाते हैं किचन की बनावट से जो सामान्यत: सभी रेस्टाँरेन्ट में तीन भागों में बंटी रहती है।
तन्दूर सेक्शन, इन्डियन सेक्सन, चायनीज् सेक्शन
तन्दूर सेक्शन—
यहाँ पर शाकाहारी
यहाँ पर शाकाहारी व मांसाहारी यानी वेज एवं नानवेज तन्दूरी भोजन सामग्री तैयार होती है।
तन्दूरी रोटी के साथ—साथ नान का आटा भी लगाया जाता है जिसमें खमीर उठने के लिए और नर्म व सुस्वादु बनाने के लिए अंडे का इस्तेमाल किया जाता है।
जो टेबल तंदूर उस्ताद के पास होती है वो एक ही होती है जिस पर रोटी का आटा व नानवेज के सारे आइटम एक साथ रखे रहते हैं।
जब तंदूरी मुर्गा या अन्य मांसाहारी तन्दूरी आइटम बनाना होता है तो पहले उस पर मक्खन व तेल का मिश्रण लगाया जाता इसके लिये एक डिब्बे में तेल व मक्खन का मिश्रण भरा होता है तथा एक लकड़ी पर कपड़ा बांधकर मिश्रण में डाल देते हैं, जिसके द्वारा वह मिश्रण तन्दूर मुर्ग पर लगाया जाता है तथा उसी लकड़ी व उसी मिश्रण का शाकाहारी लोगों की रोटी नान पर भी उपयोग किया जाता है।
किसी भी तन्दूरी डिश जैसे पनीर टिक्का, पनीर पुदीना टिक्का, वेज सीक कवाब को तैयार करने के लिए पहले टिक्का व कवाब बनाये जाते है जिन्हें लोहे की सलाखों में लगाकर तन्दूर में डाला जाता है। यहां ध्यान देने योग्य यह है कि इन लोहे की सलाखों का उपयोग मांसाहारी व्यजन जैसे तन्दूरी फिश इत्यादि के लिए भी किया जाता है तथा चाहे आर्डर वेज का हो या नानवेज का इन सलाखों को कभी धोया भी नहीं जाता है।
इन सिके हुये , मक्खन लगे तन्दूरी व्यंजन पर मसाला लगाया जाता है जो एक बड़े बर्तन में रखा होता है तथा व्यंजन चाहे शाकाहारी हो या मांसाहारी दोनों को एक ही बर्तन में रखे मसाले में लपेट—लपेट कर मसाला लगाया जाता है।
इन्डियन सेक्शन—
यह रसोई का वह हिस्सा है जहां पर सभी सब्जियां व दालें बनती हैं। यहां पर एक—दो भट्टियां व दो टेबलें पास—पास रखी होती हैं। टेबल पर सारा कच्चा माल जैसे मावा, पनीर, दूध, दही, क्रीम रखा होता है, उसी टेबल पर मांसाहारी खाने की कच्ची सामग्री जैसे अंडे, मछली, चिकन रखा होता है।
भट्टी के पास सारे मसाले रखे होते हैं, जो भी आर्डर आता है , चाहे वह शाकाहारी हो या मांसाहारी कुक (रसोईया) उसको बनाते समय एक ही प्रयपान व चम्मच का इस्तेमाल करता है। जैसे उदाहरण के बटर चिकन का आर्डर है तो कुक पहले अपनी बड़ी चम्मच से प्रयपान में घी डालेगा, फिर प्रयपान में चिकन डालकर उसी चम्मच में हिलाएगा फिर उसी चम्मच से क्रीम काजू पेस्ट या कोई भी मसाले जो लेते है।
फिर बनी ग्रेवी जो हर सब्जी या नानवेज के लिये इकट्ठी बनती है उसी चम्मच से लेते हैं । बटर चिकन बनने के बाद प्रयपान तो धुलता है पर चम्मच वहीं पास रखे पानी भरे तपेलों में डाल देते हैं।
किसी दाल को पतला करना हो या ग्रेवी में पानी मिलाना हो तो इसी तपेले का पानी मिलाया जाता है जिसमें हर तरह की वेज—नानवेज चम्मच डालते हैं।
चायनीज सेक्शन—
चायनीज बनाने के लिए भी मुख्यत: दो भट्टियां लगी होती हैं एवं साइड—टेबल कच्चा माल रखने के लिए होती हैं।
यदि आप स्प्रिंग रोल खा रहे हैं तो उसको चिपकाने के लिए अण्डे की जर्दी का उपयोग होता है।
चिली पनीर के घोल व मंचुरियन के पकोड़ों में भी अण्डे का इस्तेमाल होता है।
सूप में व कोई भी ग्रेवी की चीज बनाने में जो पानी इस्तेमाल होता है वह चिकन स्टाक होता है। (चिकन को उबालकर उसका जो पानी बचता है उसे चिकन स्टाक कहते हैं।)
तलने के लिए एक ही कढ़ाई होती है जिसमेें शाकाहारी जैसे पापड़, चिप्स व मांसाहारी जैसे मछली, चिकन दोनों ही तले जाते हैं।
सब्जी काटने के लिए लकड़ी के पटियों को काम में लाया जाता है। उन्हीं पटियों पर रखकर जो चाकू सब्जी काटने के काम में आते हैं उन्हीं से मटन—चिकन काटा जाता है तथा इन चाकुओं व पट्टियों को धोया भी नहीं जाता है। डीप प्रज जो प्रिजर्वेशन के लिए होता है उसमें वेज—नानवेज दोनों रखे जाते हैं।
तंदुर पर उस्ताद जिन हाथों से चिकन काटते हैं रोटी का आर्डर आने पर बिना हाथ धोए, रोटी भी बना देते हैं।
स्टील की एक बड़ी टेकल जिस पर कटा हुआ चिकन, मटन आदि रखते उसी पर वक्त आने पर चावल भी बनाकर ठंडा करने के लिए फैला दिया जाता है, जिसमें कई बार खून व मांस भी मिल जाता है।
फ्रूट सलाद जिसका नानवेज
फ्रूट सलाद जिसका नानवेज से कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए, उसे भी टेस्टी बनाने के लिए अंडा फैटकर मिलाते हैं।
रविवार या छुट्टी के दिनों में या पार्टी होने पर जब भीड़ अत्यधिक होती है तब किचन की सफाई , स्वच्छता पर ध्यान न देते हुए ग्राहक को आर्डर के अनुरूप सामग्री देने की जल्दी होती है, ऐसे समय में किचन को देखना नर्क की अनुभूति करने के समान है क्योंकि पूरे किचन में जगह—जगह पर नानवेज के अवशेष पड़े रहते हैं।
ऐसे समय कई बार ग्राहको को वेज की जगह नानवेज डिश भी लग जाती है ।
पानी की शुद्धता जरा भी नहीं होती है क्योंकि वह ऐसी टंकियों में एकत्रित होता रहता है जिनकी साफ—सफाई महीनों नहीं होती है।
स्टाफ के सदस्यों के अनुभव के आधार पर निष्कर्ष सामने आता है कि चाहे छोटा रेस्टोरेन्ट हो या बड़ा होटल यदि वेज—नाानवेज साथ—साथ बनता है तो वहां इसी प्रकार कार्य होता है। देखा जाए तो गलत वे लोग नहीं है जो ऐसे प्रतिष्ठानों के मालिक हैं या उसमें कार्यरत हैं क्योंकि वे लोग अधिकांशतया मांसाहारी ही होते हैं, इसलिए उन सबके लिए एक पूर्ण शाकाहारी की भावना समझना कठिन कार्य है। साथ ही किचन—स्टॉफ का कहना है कि बगैर अण्डा या चिकन—स्टाक मिलाए कोई व्यंजन बनाते हैं तो ग्राहक को वह स्वाद ही नहीं आता जिसकी आदत उसे वर्षों से पड़ी हुई हैं।
अत: मैं केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि यह उन लोगों की जानकारी के लिए है जो कि अज्ञानवश ऐसे रेस्टोरेन्ट में खाना खाते हैं। और उन लोगों के लिए भी जो इस सच्चाई को जानते तो हैं पर हाई—सोसायटी व पाश्चात्य का नकाब ओढने के कारण यह सब अनदेखा कर देते हैं।
अपनी बात—
युवा दम्पत्ति नितिन—कविता सोनी ने अपने अनुभवों के आधार पर होटलों के शाकाहारी चारित्रों के दूसरे पहलू को अपनी लेखनी से उजागर किया है। शाकाहारी एवं मांसाहारी दोनों आहारों की व्यवस्था वाले होटल विज्ञापन तो इस बात का करते हैं कि उनके यहां शाकाहारी की पृथक व्यवस्था है, किन्तु उनकी कथनी और करनी का अंतर शाकाहारियों को कमोवेश मांसाहार भी कराता रहता है और वे इस भ्रम में बने रहते हैं कि वे जो खा रहें हैं, वह शुद्ध शाकाहार है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि दोनों आहार वाले होटलों में शाकाहार की मर्यादा व्यावहारिक रूप से संभव ही नहीं है। लेखक ने इस लोक प्रचलित विश्वास को ध्वस्त करने का पूर्ण प्रयास किया है कि दोनों शैलियां एक दूसरे से दूरी बनाए रखती हैं और शाकाहारी ग्राहक को शुद्ध शाकाहार मिलता है। खानसामा की विवशताएँ, बर्तनों की सीमाएं और दोनों प्रकार के आहारों में समान रूप से खाई जाने वाली / उपयोग में आने वाली सामग्री में होने वाले तालमेल के कारण विशुद्ध शाकाहार ऐसी होटलों में असंभव है। निश्चित ही यह तथ्य ज्ञानवद्र्धक ही नहीं, आंखें खोलने वाला भी है।
जहां तक मेरा अनुभव है ऐसे होटलों में कट्टर शाकाहारी व्यक्ति आहार करते ही नहीं हैं। वे शाकाहारी ही वहां जाते हैं, जो कट्टर नहीं है और जो शाकाहार की औपचारिकता निभाना भर पर्याप्त समझते हैं। अंतत: होटल एक व्यवसाय है, धर्मानुशासन नहीं। मांसाहार का व्यवसाय करने वाले से यह अपेक्षा रखना कि वह शाकाहारियों की भावनाओं से खेल नहीं करेगा, जरूरत से ज्यादा भोलापन ही कहा जाएगा। लेखक की सराहना की जानी चाहिए कि उसने उन तथ्यों को सबके सामने रखा है जिनके बारे में या तो शाकाहारी अनभिज्ञ पाए जाते हैं या अनदेखा करते रहते हैं।
साभार: जैन गजट (२ जून २०१४)