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युवकों ने ली गुरुदेव की परीक्षा

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गुरुवर जिस कक्ष में बसते थे उसके आगे भी एक कक्ष था। एक दिन कुछ युवकों ने गुरुवर से आगे के कक्ष में रात्रि विश्राम करने का अनुरोध किया। सरल स्वभावी गुरुवर उनका उद्देश्य नहीं समझ पाए फिर भी उन्होंने रुकने की स्वीकृति दे दी।       

                रात्रि में नित्य की तरह वैयावृत्ति हेतु भक्तगण आए और अपने कार्य में लग गए। जब अपने मन भर सेवा कर ली तो गुरुवर के चरण स्पर्श कर वापिस हो गए। गुरुवर स्वाध्याय करने लगे। मध्यरात्रि में चार युवक गुरुवर को देखने आए तो वे चकित रह गए, गुरुवर तो स्वाध्याय में लीन थे वे गुरुवर को चुपचाप नमोस्तु कर चले गए।

               उन्हीं युवकों की दूसरी टोली रात्रि साढ़े तीन बजे आई और गुरुवर को देखने लगी, यह टोली भी चकित थी कि गुरुवर तो सामायिक कर रहे हैं। टोली उल्टे पाँव लौट गई। रोज की तरह वे सभी युवक सुबह 8 बजे मंदिर पहुँचे तो पहले सभी ने गुरुवर के समक्ष जाकर क्षमा याचना की।
तब गुरुवर बोले- ‘किस त्रुटि की क्षमा मांग रहे हो ?’
युवक पश्चाताप करते हुए बोले- ‘हमने आप पर शंका की थी, इसलिए क्षमा मांग रहे हैं। हम एक व्यक्ति की सलाह मानकर यह गलत कदम उठा बैठे थे। उन्होंने गुरुवर को पूरी घटना विस्तार से बतलाई और पुनः क्षमा मांगी।
गुरुवर ने सहजता से कहा- ‘मुझे कोई अंतर नहीं आता, रात्रि में कब विश्राम करना है और कब सामायिक, इस पर हम विचार करते हुए ही चलते हैं, किसी को दिखाने या तुष्ट करने के लिए नहीं।’
गुरुवर ने युवकों को समझाया- ‘अब भविष्य में किसी साधु के प्रति शंकायुक्त व्यवहार नहीं करना, उसके बदले स्वाध्याय में रमना।’ उन्होंने आगे कहा- ‘आप लोग एक ग्रुप बना लीजिए, जो स्वाध्याय तो करे ही समाज के अन्य कार्य भी निपटाए।’ युवकों ने गुरुदेव की वार्ता पर गंभीर मंथन किया। शाम को ही स्वाध्याय संघ बन गया, दूसरे दिन से सभी युवक कुर्ता-पैजामा, टोपी पहनकर स्वाध्याय करने लगे।

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