प्रत्यय और उपसर्ग का खुलासा
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प्रसंग 11 जनवरी 2012 का है,
पूज्यश्री प्राकृत भाषा की कक्षा ले रहे थे कुछ दिनों से। जब वे व्याकरण में प्रयोग किए जानेवाले प्रत्यय और उपसर्ग की उपयोगिता समझा रहे थे। तभी अचानक चिंतन में डूब गए। जब मिनिट- 2 मिनट का समय बीत गया तब सभी शिष्यों ने विनयपूर्वक पूछा- ‘गुरुदेव आप पढ़ाते-पढ़ाते क्यों रुक गए ? जरूर कोई शुभ चिंतन चल रहा होगा?’
तब आचार्यश्री मुस्कुराते हुए बोले- ‘शिष्यों को गुरु के साथ सदा प्रत्यय बनकर चलना चाहिए, उपसर्ग बनकर नहीं। यदि कोई उपसर्ग आ जाए तो शिष्यगण प्रत्यय न बने रहें, उपसर्ग बनकर सामने आ जावें।’
पूज्यश्री के शिष्य विद्वान हैं वे समझ गए कि शब्द के आगे जुड़नेवाला उपसर्ग होता है और शब्द के पीछे जुड़नेवाला प्रत्यय होता है। अतः पूज्यश्री से विनयपूर्वक बोले- ‘गुरुदेव आप धन्य हैं, पढ़ाते-पढ़ाते ही आपने दो बातें समझा दीं। व्याकरण के प्रत्यय और उपसर्ग तथा शिष्यों के कर्तव्यबोध को जाहिर करनेवाले प्रत्यय और उपसर्ग।’
वे आगे बोले ‘गुरुदेव हम लोग हमेशा प्रत्यय बनकर रहें किन्तु उपसर्ग बनने का क्षण कभी न आए।’