श्रुतपंचमी व्रत विधि !!
Srutapanchami vrat vidhi !!
व्रतविधि
ज्येष्ठ शु. एकम् से इस व्रत को ग्रहण करें, प्रात:काल शुद्ध वस्त्र पहनकर सामग्री लेकर जिनमंदिर में जावें। मंदिर की तीन प्रदक्षिणा देकर जिनेन्द्र भगवान को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके पंचपरमेष्ठी भगवान एवं श्रुतस्कंध यंत्र का पंचामृत अभिषेक करें, पुन: अष्टद्रव्य से पंचपरमेष्ठी, द्वादशांग श्रुतदेवी एवं गणधर देव एवं षट्खण्डागम की पूजा करें, साथ ही यक्ष-यक्षी को अघ्र्य समर्पित करें। निम्न मंत्र की पीले पुष्पों से १०८ बार जाप्य करें—
जाप्य—ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूँ ह्रौं ह्र: अर्हं असिआउसा अनाहतविद्यायै नम: स्वाहा।
जाप्य के पश्चात् तत्त्वार्थसूत्र का पाठ करके णमोकार मंत्र की एक जाप्य करें।
शक्ति के अनुसार उपवासादि करें। व्रत की उत्तम विधि उपवास, मध्यम विधि फलाहार एवं जघन्य विधि एकाशन है। ब्रह्मचर्यपूर्वक धर्मध्यान में दिन व्यतीत करें।
इस प्रकार चार दिन लगातार पूजा-पाठ करके एकाशन करें एवं पाँचवे दिन ज्येष्ठ शु. पंचमी को उपवास करें। श्रुत भंडार के शास्त्रों को ठीक करके उन पर वस्त्र चढ़ावें। जिनमंदिर में श्रुतस्कंध यंत्रदल बनाकर श्रुतस्कंध की आराधना करें और उपवासपूर्वक समय बितावें। छठवें दिन मुनि, आर्यिका आदि चतुर्विध संघ को आहारदान देकर व्रत को पूर्ण करें। यह व्रत १२ वर्ष तक किया जाता है। व्रतोद्यापन में श्रुतस्कंध यंत्र बनवाकर उसकी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करें। चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देवें और मंदिर में आवश्यक उपकरण रखें।
इसकी दूसरी विधि यह है कि श्रुतपंचमी-ज्येष्ठ शु.पंचमी के दिन ही उपवास करके पाँच वर्ष तक यह व्रत कर सकते हैं।
यह विधि जैनेन्द्रव्रत कथा संग्रह मराठी पुस्तक से दी गई है। इस दिन षट्खंडागम की पूर्णता पर चतुर्विध संघ ने विधिवत् इन सूत्र की पूजा की थी अत: वर्तमान में यह ‘श्रुतपंचमी’ नाम से प्रसिद्ध है।
जाप्य-१. ॐ ह्रीं अर्हं षट्खंडागमजिनागमेभ्यो नम:। २.ॐ ह्रीं श्री जिनमुखोद्भूतस्याद्वादनयगर्भितद्वादशांगश्रुतज्ञानेभ्यो नम:।