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ऋण मुक्ति का वर दीजिये

(रचयिता : श्रमणाचार्य विमर्शसागर)

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गुरुदेव मेरे आप बस इतनी कृपा कर दीजिए।
कल्याण अपना कर सकूँ, वरदान इतना दीजिए।।

सोचूं सदा अपना सुहित नहिं काम क्रोध विकार हो|
हे नाथ ! गुरु आदेश का पालन सदा स्वीकार हो|
सिर पर मेरे आशीष का शुभ हाथ प्रभु धर दीजिए। गुरुदेव….

दृढ़ शील संयम व्रत धरूं नित ब्रह्मचर्य लखूँ सदा,
सीता, सुदर्शन सम बनूँ निज आत्मसौख्य चखूँ सदा,
माता सुता बहिना पिता वृष्टि विमल कर दीजिए। गुरुदेव…..

सच्चा समर्पण भाव हो नहिं स्वार्थ की दुर्गन्ध हो,
विश्वासघात ना हम करें हर श्वांस में सौगंध हो,
हे नाथ ! गुरु विश्वास की डोरी अमर कर दीजिए। गुरुदेव…..

जागे न मन में वासना, मन में कषायें न जगें,
हो वात्सल्य हृदय सदा कर्त्तव्य से न कभी डिगें,
गुरुभक्ति की सरिता बहे निर्मल हृदय कर दीजिए। गुरुदेव…….

भावों में निश्छलता रहे छल की रहे न भावना,
गुरु पादमूल शरण मिले करते हैं हम नित कामना,
जिनधर्म जिन आज्ञा सुगुरु सेवा का अवसर दीजिए। गुरुदेव…….

उपकार जो मुझ पर किये गुरुवर भुला न पायेंगे,
जब तक है तन में श्वांस हम उपकार गुरु के गायेंगे,
हम शिष्य हैं गुरु के ऋणी ऋणमुक्ति का वर दीजिए। गुरुदेव……

सम्यक्त्व ज्ञान चरित्र से सुरभित रहे मम साधना,
आचार की मर्यादा ही हे नाथ हो आराधना,
स्वर-स्वर समाधिभाव का चिंतन मुखर कर दीजिए। गुरुदेव…….

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