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विभिन्न धर्मो द्वारा मांसाहार का निषेध


विश्व के सभी धर्म शास्त्रों व महापुरुषों ने हर प्राणी मात्र में उस परम पिता परमात्मा की झलक देखने को कहा है व अहिंसा को परम धर्म माना है । अधिकांश धर्मो ने तो विस्तार पूर्वक मांसाहार के दोष बताए है और उसे आयु क्षीण करने वाला व पतन की ओर ले जाने वाला कहा है किन्तु किसी भी निरीह प्राणी की हत्या का निषेध तो सभी धर्मो ने किया है । अपने स्वाद व इन्द्रिय सुख को ही जीवन का परम ध्येय समझने वाले कुछ लोग अपने स्वार्थ वश यह प्रकट करते हैं कि उनके धर्म से मांसाहार निषेध नहीं है, किन्तु यह असत्य है ।

हिन्दूधर्म

हिन्दू धर्मशास्त्रों मे एकमत से सभी जीवों को ईश्वर का अंश माना है व अहिंसा, दया, प्रेम, क्षमा आदि गुणों को अत्यंत महत्व दिया । मांसाहार को बिल्कुल त्याज्य, दोषपूर्ण, आयु क्षीण करने वाला व पाप योनियों में ले जाने वाला कहा है । महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने मांस खाने वाले, मांस का व्यापार करने वाले व मांस के लिये जीव हत्या करने वाले तीनों को दोषी बताया है । उन्होने कहा हैं कि जो दूसरे के मांस से अपना मांस बढ़ाना चाहता है वह जहां कहीं भी जन्म लेता है चैन से नहीं रह पाता । जो अन्य प्राणियों का मांस खाते है वे दूसरे जन्म में उन्हीं प्राणियों द्वारा भक्षण किये जाते है । जिस प्राणी का वध किया जाता है वह यही कहता है मांस भक्ष्यते यस्माद भक्षयिष्ये तमप्यहम् अर्थात् आज वह मुझे खाता है तो कभी मैं उसे खाऊँगा । श्रीमद्भगवत गीता में भोजन की तीन श्रेणियाँ बताई गई है ।
(1) सात्त्विक भोजन जैसे फल, सब्जी, अनाज, दालें, मेवे, दूध, मक्खन इत्यादि जो आयु, बुद्धि बल बढ़ाते है व सुख, शांति, दयाभाव, अहिंसा भाव व एकरसता प्रदान करते है व हर प्रकार की अशुद्धियों से शरीर, दिल व मस्तिष्क को बचाते हैं “
(2) राजसिक भोजन में अति गर्म, तीखे, कड़वे, खट्टे, मिर्च मसाले आदि जलन उत्पन्न करने वाले, रूखे पदार्थ शामिल है । इस प्रकार का भोजन उत्तेजक होता है व दु :ख, रोग व चिन्ता देने वाला है ।
(3) तामसिक भोजन जैसे बासी, रसहीन, अर्ध पके, दुर्गन्ध वाले, सड़े अपवित्र नशीले पदार्थ मांस इत्यादि जो इन्सान को कुसंस्कारों की ओर ले जाने वाले बुद्धि भ्रष्ट करने वाले, रोगों व आलस्य इत्यादि दुर्गुण देने वाले होते हैं । शास्त्रों में वर्णित पुनर्जन्म के सिद्धांत के अनुसार चौरासी लाख योनियां भोगने के बाद ही यह मानव देह प्राप्त होती है इस दृष्टि से संसार के सभी जीव किसी न किसी योनी में हमारे कोई न कोई सम्बंधी का मांस खाने जैसा ही है । अथर्व वेद (8/6/23) में मांस खाने व गर्भ को नष्ट करने की मनाही इस प्रकार की गई है ।
य आम मांस मदन्ति पौठषेयं च ये कवि : ।
गर्भान् खादन्ति केशवास्तानिकतो नाशयामसि । ।
अर्थात् जो कच्चा या पका मांस खाते है, जो गर्भ का विनाश करते है, उनका यहां से हम नाश करते हैं । महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में कहा हैं कि मांसाहार से मनुष्य का स्वभाव हिंसक हो जाता है । जो लोग मांस भक्षण व मद्यपान करते हैं उनके शरीर और वीर्यादि धातु भी दूषित होते हैं ।

इस्लाम धर्म

इस्लाम के सभी सूफी संतों ने नेक जीवन, दया, गरीबी व सादा भोजन व मांस न खाने पर बहुत जोर दिया है । स्वयं भी वे सभी मांस से परहेज करते थे शेख इस्माइल, ख्वाजा मौइनुद्दीन चिश्ती, हजरत निजामुदीन औलिया, बू अली कलन्दर, शाहइनायत, मीर दाद, शाह अज्दुल करीम आदि सूफी संतों का मार्ग नेक रहना और आत्मसंयम, शाकाहारी भोजन व सब के प्रति प्रेम था, उनका कथन हैं कि ” ता बयाबीं दर बहिश्ते अरु जा, शक्कते बनुमाए व खल्के खुदा ” कि अगर तू -मुद्र; के लिये बहिश्त में निवास पाना चाहता है तो खुदा की खल्कत (सृष्टि) के साथ दया व हमदर्दी का बरताव कर । ईरान के दार्शनिक अल गजाली का कथन हैं कि रोटी के टुकड़ों के अलावा हम जो कुछ भी खाते है वह सिर्फ हमारी वासनाओं की पूर्ति के लिये होता है । प्रसिद्ध सन्त मीर दाद का कहना था कि जिस जीव का मांस काट कर खाते है; उसका बदला उन्हें अपने मांस से देना पड़ेगा । यदि किसी जीव की हड्डी तोड़ी है तो उसका भुगतान अपनी हड्डियों द्वारा करना होगा । दूसरे के बहाये गये खून की ? प्रत्येक बूँद का हिसाब अपने खून से चुकाना पड़ेगा क्योंकि यही अटल कानून है । महात्मा सरमद मांसाहार के विरोध में कहते हैं कि जीवन का नूर धातुओं में नींद ले रहा है, वनस्पति जगत में स्वप्न की अवस्था में है, पशुओं में वह जागृत हो चुका है और मनुष्य में वह पूरी तरह चेतन हो जाता है । कबीर साहिब मुसलमानों को संबोधित करके स्पष्ट करते हैं कि वे रोजे भी व्यर्थ और निष्फल है जिनको रखने वाला जिहवा के स्वाद के वश हो कर जीवों का घात करता है । इस प्रकार अल्लाह खुश नहीं होगा ।
रोजा धरै मनावै अलहु, सुआदति जीअ संघारै ।
आपा देखि अवर नहीं देखें काहे कउ झख मारै । ।
लंदन मस्जिद के इमाम अल हाफिज बशीर अहमद मसेरी ने अपनी पुस्तक इस्लामिक कंसर्न अबाउट एनीमल में मजहब के हिसाब से पशुओं पर होने वाले अत्याचारों पर दु:ख प्रकट करते हुए पाक कुरान मजीद व हजरत मोहम्मद साहब के कथन का हवाला देते हुए किसी भी जीव जन्तु को कष्ट देने, उन्हें मानसिक व शारीरिक प्रतारणा देने, यहाँ तक कि पक्षियों को पिंजरों में कैद करने तक को भी गुनाह बताया है । उनका कथन हैं कि इस्लाम तो पेड़ों को काटने तक की भी इजाजत नहीं देता । इमाम साहब ने अपनी पुस्तक के पृष्ठ न. 18 पर हजरत मोहम्मद साहब का कथन इस प्रकर दोहराया है यदि कोई इन्सान किसी बेगुनाह चिड़िया तक को भी मारता है तो उसे खुदा को इसका जवाब देना होगा और जो किसी परिन्दे पर दया कर उसकी जान बखाता है तो अल्लाह उस पर कयामत के दिन रहम करेगा इमाम साहब स्वयं भी शाकाहारी हैं व सबको शाकाहार की सलाह देते है ।

ईसाई धर्म

ईसा मसीह को आत्मिक ज्ञान जान दि-बेपटिस्ट से प्राप्त हुआ था, जो मांसाहार के सख्त विरोधी थे । ईसा मसीह वक शिक्षा के दो प्रमुख सिद्धांत है (Thou Shall not kill) ” तुम जीव हत्या नहीं करोगे ” और (Love thy neighbour) ” अपने पड़ोसी से प्यार करो ” । गास्पल आफ पीस आफ जीसस क्राइस्ट में ईसा मसीह के वचन इस प्रकार है सच तो यह हैं कि जो हत्या करता है, वह असल में अपनी ही हत्या कर रहा है । जो मारे हुए जानवर का मांस खाता है, वह असल में अपना मुर्दा आप ही खा रहा है, जानवरों की मौत उसकी अपनी हंसा हीरा मोती चुगना, प्रकाशक राधास्वामी सत्सगं, व्यास, पंजाब मौत है क्योंकि इस गुनाह का बदला मौत से कभी हो ही नहीं सकता ” बेजबान की हत्या न करो और न अपने निरीह शिकार का मांस खाओ, इससे कहीं तुम शैतान के गुलाम न बन जाओ वे आगे फरमाते हैं कि यदि तुम मृत (मांसाहार) भोजन करोगे तो वह मृत उगहार तुम्हें भी मार देगा क्योंकि केवल जीवन से ही जीवन मिलता है मौत से हमेशा मौत ही मिलती है ।

सिख धर्म

गुरुवाणी गुरुमुखों के लिए ” अन्न पानी थोड़ा खाया ” का आदर्श रखती है । गुरु अर्जुन देव जी ने परमात्मा से सच्चा प्रेम करने वालों की समानता हंस से की है और दूसरों को बगुला बताया है । आपने बताया हंसों की खुराक मोती है और बगुलों की मछली, मेंढक । हंसा हीरा मोती चुगणा, बगु डडा भलण जावै । (आदि ग्रन्थ पृ. 96०) हिंसा की मनाही व जीव-दया के बारे में गुरुवाणी स्पष्ट शब्दों में कहती है । हिंसा तउ मन ते नहीं छूटी जीए दइआ नहीं पाली (आदि गन्ध पृ. 1253) कबीर साहब ने जो अहिंसा व दया की शिक्षा दी व मांस खाने की प्रतारणा की वह आदि ग्रन्थ में विभिन्न पृष्ठों पर दी हुई है । गुरु साहबानों ने स्पष्ट रूप से हिंसा न करने का आदेश दिया है और जब हिंसा ही मना है तो मांस मछली खाने का सवाल ही नहीं उठता । शिरोमणि गुरु द्वारा प्रबंधक कमेटी ने गहरी खोज के बाद जो गुरु साहब के निशान तथा हुकम नामें पुस्तक के रूप में छपवाये है उनमें से एक हुक्मनामा यह है । (पृष्ठ 1०3 हुक्मनामा नं. 113) हुक्मनामा बाबा बन्दा बहादुर जी मोहर फारसी देगो तेगो फतहि नुसरत बेदरिंग याफत अज नानम गुरु गोविन्द सिंह 1 ओ फते दरसनु सिरी सचे साहिब जी दा हुक्म है सरबत खालसा जउनपुर का गुरु रखेगा.. .खालसे दी रहत रहणा भंग तमाकू हफीम पोस्त दारु कोई नाहि खाणा मांस मछली पिआज ना ही खाणा चोरी जारी नारही करणी । अर्थात्( मांस, मछली, पिआज, नशीले पदार्थ, शराब इत्यादि क़ीमनाही की गई है । सभी सिख गुरुद्वारों में लंगर में अनिवार्यत : शाकाहार ही बनता है । 

जैनधर्म

अहिंसा जैनधर्म का सबसे मुख्य सिद्धान्त है । जैन ग्रंथों में हिंसा के 108 भेद किये गये है । भाव हिंसा, स्वयं हिंसा करना, दूसरों के द्वारा करवाना अथवा सहमति प्रकट करके हिंसा कराना सब वर्जित है । हिंसा के विषय में सोचना तक पाप माना है । हिंसा, मन, वचन, व कर्म द्वारा की जाती है अत : किसी को ऐसे शब्द कहना जो उसको पीड़ित करे वह भी हिंसा मानी गई है । ऐसे धर्म में जहाँ जानवरों को बांधना, दु :ख पहुंचाना, मारना व उन पर अधिक भार लादना तक पाप माना जाता है । वहाँ मांसाहार का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता ।

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म के पंचशील अर्थात्( सदाचार के पाँच नियमों में प्रथम व प्रमुख नियम किसी प्राणी को दु :ख न देना, अहिंसा ही है । व पाँचवा नियम शराब आदि नशीले पदार्थो से परहेज की शिक्षा है । लंकावतार वे सूत्र के आठवें काण्ड के अनुसार आवागमन के लम्बे क्रम के कारण प्रत्येक जीव किसी न किसी जन्म में किसी न किसी रूप में अपना सम्बंधी रहा होगा यह माना गया है । इसमें हर प्राणी को अपने बच्चों के समान प्यार करने का निर्देश है! बुद्धिमान व्यक्ति को आपातकाल में भी मांस खाना उचित नहीं बताया गया अतः वही भोजन उचित बताया गया है जिसमें मांस व खून का अंश नही हो ।अत : हम देखते हैं कि प्रत्येक. धर्म ने सभी जीवों में प्रभु निवास माना है व अहिंसा, दया, आदि की शिक्षा दी है व मांसाहार की मनाही की है । 
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