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एक ऐसा उदाहरण आत्म विशुद्धि का

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एकदिन एक गुरुभक्त परिवार गुरुवर को पड़गाहने में सफल हो गया। गुरुवर श्रावक श्रेष्ठी के द्वार पहुँचे लकिन मन अंदर प्रवेश को नहीं हुआ। अन्य खड़े श्रावकों ने भी निवेदन किया किन्तु गुरुवर आत्मा की आवाज पर वहाँ से लौटकर अन्य चौके में चले गए। और जब आहारकर लौटे तो यह सोचकर मौन ले लिया कि उस श्रावक के पूछने पर क्या जवाब दूँगा।

जब गुरुवर वसतिका में पहुँचे, तो उपस्थित श्रावक श्रेष्ठी ने कहा- ‘महाराजश्री ! अच्छा रहा आप लौट गए।’

गुरुवर ने इशारे से पूछा- “क्यों ?”

उन्होंने कहा- ‘चौका कई दिनों से चल रहा था, आज हमें ऐसा लगा कि आपका पड़गाहन हमें मिलेगा, अतः लोभवश चौका लगा लिया, जबकि सुबह समाचार मिला कि भतीजे की एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई।’

उस समय उपस्थित जिन लोगों ने सुना, सभी ने कहा-धन्य है गुरुदेव की आत्मविशुद्धि ।

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