चर्या से समझौता नहीं
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प्रसंग गुरुदेव की मुनि अवस्था का है,
मुनिवर ससंघ शिवपुरी मार्ग की ओर चल रहे थे, उनका पथ ही ऐसा है पथान्त पर ‘शिवपुरी’ ही मिलती है, किन्तु अभी अतिशय तीर्थक्षेत्र सेसई जी के दर्शनों की भावना थी। शिवपुरी के श्रावकों ने सेसई जी से 12 किमी. पहले ही एक गेस्टहाउस के साफ शुद्ध कक्ष में आहार व्यवस्था की थी।
उन कमरों पर प्लास्टिक का कारपेट विछाकर चिपकाया गया था, फिर भी एक श्रावक ने ब्र. राजीव से पूछा- ‘कारपेट वाले कमरे में मुनिवर आहार ले लेंगे?’
भैया जी को जानकारी नहीं थी अतः उन्होंने सहज ही स्वीकृति में सिर हिला दिया। श्रावकों ने चौका तैयार कर लिया, जब मुनिवर को पड़गाहकर लाए तो वे चौके में प्रवेश न कर सके। कारपेट देखकर लौट गए और उपवास कर लिया।
उन्हें उपवास देखकर मुनिश्री विश्वपूज्य सागर जी और क्षुल्लक श्री विशुद्धसागर जी ने भी उपवास कर लिया। यह देख ब्र. जी अपनी गलती पर भारी पश्चाताप करने लगे। हाथ जोड़कर गुरुदेव के समक्ष गए और क्षमा याचना करने लगे।
तब गुरुदेव बोले- ‘इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है।’
फिर हँसते हुए कहा- ‘यह हमारे ही लाभान्तराय कर्म का उदय है। तुम तो निमित्त मात्र हो।’
श्रावकों को भी अपनी गलती का अहसास हुआ। समझ गए शिवपुरी वाले मुनिवर अपनी चर्या से समझौता नहीं करते।