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Nature of the Universe in Jainism

जैन धर्म में ब्रह्माण्ड का स्वरुप !! Nature of the Universe in Jainism !!

ब्रह्मांड क्या है?

ब्रह्मांड कैसा है?

ब्रह्मांड कब से है? 

ब्रह्मांड कब तक है? 

ब्रह्मांड किसके द्वारा बनाया गया है? 

ब्रह्मांड किसके द्वारा नष्ट किया जायेगा?

– ये ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं जो हम सभी के मन में कभी न कभी अवश्य उठते हैं| ब्रह्मांड के स्वरूप एवं संचालन के विषय में जैन शास्त्रों में अति विस्तार एवं तर्क पूर्वक निरूपण किया गया हैं जो नाना मतों में प्रचिलित मान्यता ” ईश्वर ही इस ब्रह्मांड का निर्माता-पालक-संहारक है ” का युक्ति पूर्वक खण्डन करता है| 

ब्रह्मांड विषयक जैन शास्त्रों में क्या निरूपित किया गया है इसे समझने के पूर्व जो मत ‘ईश्वरीय शक्ति के द्वारा संचालित ब्रह्मांड’ की मान्यता रखने वाले हैं उनकी इस मान्यता में कौन-कौन से दोष उपस्थित होते हैं उनपर चर्चा करेंगे साथ ही पूरी दुनिया को अपनी सैटेलाइट में कैद करने वाले एवं ब्रह्मांड के समस्त रहस्यों को सुलझाने का दावा करने वाले वैज्ञानिक खोजों की भी समीक्षा करेंगे तत्पश्चात जैन धर्म में प्रचलित ब्रह्मांड की संरचना को समझने का प्रयास करेंगे| 

आपका प्रश्न हो सकता है कि यह क्रम किसलिए ? तो इसका उत्तर यह है कि पात्र में कुछ भी उत्तम वस्तु को रखने से पूर्व उसको मांझना आवश्यक होता है अन्यथा उस पात्र में रखी उत्तमोत्तम वस्तु भी व्यर्थ हो जाती है, हमारा मस्तिष्क भी उसी पात्र की तरह है जिसे हमने या तो लोक प्रचलित मान्यता ( ईश्वरीय शक्ति से संचालित ब्रह्मांड व्यवस्था ) से भर रखा है अथवा वैज्ञानिकों ने जो अपनी अल्प खोजों को सभी जनसामान्य के बीच पेश किया है उससे अपने पात्र को भर लिया है| पाठकों से विनम्र अनुरोध है कि इसे धैर्य पूर्वक पढ़ें और समझने का प्रयास करें| 

सभी को अपने-अपने धर्म ग्रंथों पर आस्था होती ही है यहाँ किसी की भी आस्था पर प्रश्न नहीं उठाया जा रहा है, किसी की आस्था को चोट पहुंचाना घृणित कार्य है। इस लेख का प्रयोजन मात्र सत्य के प्रकाशन का है, आस्था को चोट पहुँचना नहीं – 

 

Creation of the Universe from the point of view of Islam

इस्लाम की दृष्टि से ब्रह्मांड की रचना (Creation of the Universe from the point of view of Islam)

इस्लाम, अल्लाह को एकमात्र ईश्वर के रूप में देखता है और अल्लाह बेचून अर्थात निराकार है। वे मानते हैं कि वह दुनिया का निर्माता, नियंत्रक और संयोजक है। वे कुरान शरीफ/मज़ीद को सबसे पवित्र ग्रंथ मानते हैं जो अल्लाह ने अपने पैगंबर मुहम्मद को दिया था। 

कुरान शरीफ – सूरत फुरकान 25:53 – और वही है जिसने दो दरियाओं को मिलाया (मिला कर चलाया) यह (इस तरफ का पानी) खुशगवार शीरीं है और यह (दूसरा) तल्ख़ बदमज़ा है, और उसने उन दोनों के दरमियान(एक गैर महसूस पर्दा और मजबूत आड़ बनाई।

कुरान शरीफ के ज्ञान दाता कहते हैं, कि अल्लाह ने छह दिनों में पूरी सृष्टि का निर्माण किया और सातवें दिन तख़्त पर जा विराजा। उसने ही पृथ्वी और आकाश के बीच की सारी चीज़ें बनायीं। वह अल्लाह कबीर ही है, जिसने दो प्रकार की दरियाओं को बना दिया, एक का पानी मीठा है, प्यास बुझाने के लिए, तो दूसरा नमकीन और कड़वा है, दोनों के बीच एक विभाजन भी सुनिश्चित कर दिया।

कुरान शरीफ – सूरत फुरकान 25:54 – और यह वही है जिसने पानी के बशर हमें पैदा किया। फिर बनाये हमारे नसब (नसबी रिश्ते) और ससुराल। तेरा रब क़ुदरत की ताक़त वाला है।

ये (अल्लाह) वह है जिसने मनुष्य को पानी की एक बूंद के साथ बनाया और उसे किसी का बेटा या बेटी, बहु या दामाद बना दिया, और आपका भगवान अत्यंत सक्षम है।

 

 

Creation of the Universe from the point of view of Sikhism
 

सिख धर्म की दृष्टि से ब्रह्मांड की रचना (Creation of the Universe from the point of view of Sikhism)

 

श्री नानक साहेब जी की अमृतवाणी, महला 1, राग बिलावलु, अंश 1 (गु.ग्र. पृ. 839)

आपे सचु कीआ कर जोडि़। अंडज फोडि़ जोडि विछोड़।।

धरती आकाश कीए बैसण कउ थाउ। राति दिनंतु कीए भउ-भाउ।।

जिन कीए करि वेखणहारा। त्रितीआ ब्रह्मा-बिसनु-महेसा। देवी देव उपाए वेसा।।(4)

उपरोक्त अमृतवाणी का भावार्थ है कि सच्चे परमात्मा (सतपुरुष) ने स्वयं ही अपने हाथों से सर्व सृष्टि की रचना की है। उसी ने अण्डा बनाया फिर फोड़ा तथा उसमें से ज्योति निरंजन निकला। उसी पूर्ण परमात्मा ने सर्व प्राणियों के रहने के लिए धरती, आकाश, पवन, पानी आदि पाँच तत्व रचे। अपने द्वारा रची सृष्टि का स्वयं ही साक्षी है।

दूसरा कोई सही जानकारी नहीं दे सकता। फिर अण्डे के फूटने से निकले निरंजन के बाद तीनों श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी की उत्पत्ति हुई तथा अन्य देवी-देवता उत्पन्न हुए तथा अनगिनत जीवों की उत्पत्ति हुई।

 

 

ईसाई धर्म की दृष्टि से ब्रह्मांड की रचना (Creation of the Universe from the point of view of Christianity)

ईश्वर ने स्वेच्छा से संसार और जो कुछ इसमें है, की रचना की। ईश्वर ने किस दिन क्या बनाया-

पहले दिन ईश्वर ने प्रकाश बनाया। दूसरे दिन उसने आकाश की रचना की और उसे स्वर्ग कहा। तीसरे दिन ईश्वर ने पानी को जमीन से अलग किया और आज्ञा दी कि पृथ्वी घास, फूल, पौधे आदि उत्पन्न करें। चौथे दिन ईश्वर ने सूर्य, चंद्रमा और तारों को बनाया। पाँचवें दिन उसने पक्षियों और मछलियों की सृष्टि की। छठवें दिन उसने दूसरे जानवरों को बनाया और अंत में मनुष्य की रचना की। सातवें दिन ईश्वर ने विश्राम किया।

 

 

हिंदू धर्म की दृष्टि से ब्रह्मांड की रचना (Creation of the Universe from the point of view of Hinduism)

कबीर साहिब ने सृष्टि की रचना/ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति कैसे की?

अध्याय कबीर वाणी, बोधसागर, पृष्ठ नं 136-137

सृष्टि रचना से पहले सिर्फ एक सनातन परमात्मा था जो अपने अनामी लोक में अकेला रहता था। पूर्ण परमात्मा देखने में मनुष्य के समान है पर उनका शरीर दीप्तिमान है। उनके एक एक रोम कूप का प्रकाश संख सूर्यों कि रोशनी से भी अधिक है।

उस प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरुप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है। उसी परम पुरुष के शरीर में सभी आत्माएं समायी हुई थी। पूर्ण परमात्मा कविर्देव ने नीचे के तीन और लोकों (अगमलोक, अलख लोक, सतलोक) की रचना शब्द(वचन) से की। 

 

वेदों में ब्रह्मांड की रचना (Creation of the Universe in the Vedas)

ऋग्वेद कहता है की सर्व प्रथम कुछ भी नहीं था यहां तक आकाश भी नहीं था केवल परमेश्वर था जो अपनी अद्वितिय अद्भुत सामर्थ से शांसे ले रहा था । सर्व प्रथम उसमें इच्छा उत्पन्न हुई की वह विश्व/ ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हों, ऐसी इच्छा परमेश्वर के हृदय में आते ही शब्द रूप ब्रह्म प्रकट हुआ उसके साथ हि भोग और भोक्ता भी शब्द रूप शून्य ऊर्जायें प्रकट हुई अदृश्य जगत से दृश्य जगत में, जिससे एक अद्भुत, अलौकिक, अकल्पनिय, अचानक अग्निपिण्ड प्रकट होगया भोग रूप प्रकृति और दूसरा उसका भोग करे वाला जीव उसमें प्रवेश करके उसका विस्तार करने लगा। और उसमें निरंन्तर विस्फोट होने लगा जिसमें अनन्त ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुये| 

भागवत पुराण कहता है कि जिस क्षण समय और ब्रह्माण्ड का जन्म हुआ था, उसी क्षण ब्रह्मा हरि की नाभि से निकले एक कमल के पुष्प से उभरे थे। यह पुराण कहता है कि ब्रह्मा निद्रा में हैं, गलती करते हैं और वे ब्रह्माण्ड की रचना के समय अस्थायी रूप से अक्षम थे। जब वे अपनी भ्रान्ति और निद्रा से अवगत हुए तो उन्होंने एक तपस्वी की तरह तपस्या की, हरि को अपने हृदय में अपना लिया, फिर उन्हें ब्रह्माण्ड के आरंभ और अंत का ज्ञान हो गया, और फिर उनकी रचनात्मक शक्तियां पुनर्जीवित हो गईं। भागवत पुराण कहता है कि इसके बाद उन्होंने प्रकृति और पुरुष: को जोड़ कर चकाचौंध कर देने वाली प्राणियों की विविधता बनाई।

महापुराणों के अनुसार आदिशक्ति की आज्ञा से भगवान् ब्रह्मा जी को सृष्टि रचना का कार्य किया है। जिसके अनुसार सृष्टि के आदि में केवल आदिशक्ति माँ सर्वेश्वरी ही थी, अन्य कोई नहीं था, न ही कोई तत्व था न कोई पदार्थ था जिस से सृष्टि की रचना की जा सके और न ही कोई बनाने वाला था। 

 

समीक्षा (Review)– 

 

  • अब सर्वप्रथम विचारणीय बात यह है कि यदि सर्वशक्तिमान अल्लाह अथवा ईसाई धर्म की मानें तो ईश्वर ने यह ब्रह्मांड छह दिनों में बनाया तो उसे छह दिन का विशाल समय क्यों लगा? वह तो पलक झपकते ही ब्रह्मांड की रचना कर सकता था?
  • उस परम दयालु अल्लाह ने २ प्रकार का पानी क्यों बनाया? चलो मीठा पानी समझ में आता भी है लेकिन ये नमकीन और कड़वा पानी क्यों बनाया? क्या वह अपने द्वारा ही निर्मित किये बंदों को कड़वा पानी पिलाना चाहता था?
  • अत्यंत सक्षम अल्लाह ने किसी को बेटा और किसी को बेटी बनाया तो उसने यह भेदभाव किस आधार से किया| क्योंकि यदि वो उन बनाने वाले आपने बंदों से पूछता तो मैं नहीं समझता कि कोई भी पुरुष पर्याय को छोड़कर स्त्री बनने को तैयार होता| 
  • सिख मत की मानें तो ईश्वर ने पहले अंडा बनाया फिर उसे फोड़ा, वह परमात्मा सीधे ही ज्योति निरंजन की रचना कर देता इतना घुमाने की क्या आवश्यकता थी? 
  • उस ईश्वर ने देवी-देवता उत्पन्न किये तथा अनगिनत जीव बनाये तो उसने किसी को देव बनाया, किसी को मनुष्य, किसी को जानवर बनाया| उसने ऐसा क्यों किया? 
  • हिन्दू मत की माने तो वह परमात्मा पहले अकेला रहता था, उसने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिये इस ब्रह्माण्ड की रचना की? इसका अर्थ हुआ भगवान भी बोर होते है और इस संसार में जो ये नाना लड़ाई-झगड़े होते हैं उन्हें देखकर उनका मनोरंजन होता है?
  • सभी आत्मायें उसी परमात्मा के शरीर में थी? जब सब आत्मायें भगवान के शरीर में थी तो निश्चित रूप से सुखी होंगी, भगवान ने उन्हें दुःख भोगने के लिये अपने से पृथक क्यों किया?
  • भागवत पुराण की माने तो ब्रह्मा हरि की नाभि से निकले जो निद्रा में हैं और गलतियाँ करते हैं और इस पर भी वे ब्रह्मांड की रचना करते हैं? तो क्या ब्रह्मांड निर्माण जैसा महत्वपूर्ण कार्य ऐसे लापरवाह भगवान को करना चाहिए था? उन्होंने तपस्या कर बाद में पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया यानि भगवान भी अज्ञानी और मूर्ख होते हैं?
  • महापुराणों के अनुसार सृष्टि के आदि में केवल आदिशक्ति माँ सर्वेश्वरी ही थी, अन्य कोई नहीं था, न ही कोई तत्व था न कोई पदार्थ था फिर उन्होंने ब्रह्मा जी की रचना किस तत्व से की?
  • हिन्दू दर्शनशास्त्रों में ३ प्रमुख देव बताये गये है जिसमें ब्रह्मा सृष्टि के सर्जक, विष्णु पालक और महेश विलय करने वाले देवता हैं। ब्रह्मा ने सर्जन किया विष्णु पालन कर रहे हैं तो उन्हें भगवान माना भी जाये लेकिन महेश जो संहार करेंगे वे भगवान कैसे हो सकते हैं जब संहारक भी भगवान हो गया तो फिर सभी हिंसक मनुष्य एवं जानवरों को भी भगवान क्यों न माना जायेगा? 
  • कहा जाता है कि जब इस धरती पर पाप बढ़ेगा तब महेश संहार करेंगे तो इसका अर्थ हुआ कि विष्णु जी ब्रह्मा जी के द्वारा बनायी गयी सृष्टि का ठीक प्रकार से पालन नहीं कर पायेंगे तो विष्णु जी अक्षम कहलाये?

 

अब मेरे कुछ प्रश्न हैं उन सभी लोगों से जो इस ब्रह्मांड को भगवान के द्वारा सृजित मानते हैं-

कुछ भी निर्माण के लिये उससे सम्बंधित कुछ row material ( कच्चा माल ) आवश्यक होता है, जब कुछ था ही नहीं तो वह row material कहाँ से आया? 

प्रश्न ये भी उठता है कि जब कुछ था ही नहीं तो वह परमात्मा/ ईश्वर/ अल्लाह भी कहाँ से उत्पन्न हो गया? ( भगवान के अस्तित्व की चर्चा ‘ जैन धर्म में ईश्वर का स्वरूप ‘ में करेंगे | )

जब ईश्वर  ने ही पृथ्वी और आकाश के बीच की सारी चीज़ें बनायीं, तो उसने कहीं की भूमि बंजर और कहीं की भूमि उपजाऊ क्यों बनायी? किसी भूमि को जल युक्त और किसी भूमि को रेगिस्तान क्यों बनाया? कहीं स्वर्ग कहीं नरक क्यों बनाया? किसी को सुखी, किसी को दुखी क्यों बनाया? किसी को धर्मात्मा किसी को पापी क्यों बनाया? 

जब यहाँ एक पत्ता भी उसकी मर्ज़ी के बिना नहीं हिल सकता तो फिर इस संसार में आदमी आतंकवादी/ चोर/ लुटेरा किसकी मर्ज़ी से बनता है? और यदि एक चोर ने चोरी भगवान की मर्ज़ी से की तो गुनहगार आप किसे कहोगे उस चोर को या भगवान को?

और सबसे बड़ा प्रश्न जो महापुराण ( एक जैन ग्रंथ ) में आचार्य जिनसेन स्वामी ने किया कि जब ईश्वर ने इस ब्रह्मांड को बनाया तो इस ब्रह्मांड के निमार्ण से पूर्व वह कहाँ रहता था और वह जहाँ भी रहता था उस स्थान को किसने बनाया? यदि आप कहते हो कि वह स्थान उसने किसी अन्य स्थान पर बैठकर बनाया तो पुनः यही प्रश्न आता है कि वह अन्य स्थान किसने बनाया? इस पर यदि आप कहते हो कि वह स्थान किसी ने नहीं, वह स्थान अनादि से था, तो फिर जैन जो इस ब्रह्मांड को अकृत्रिम ( किसी के द्वारा नहीं बनाया गया ) मानते हैं, वही सत्य सिद्ध होता है|

 

अब विज्ञान की दृष्टि से ब्रह्मांड की रचना (Now the creation of the universe from the point of view of science)

जैसा कि हम जानते हैं कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के विषय में एक स्थायी सिद्धांत बना पाना हमारे वैज्ञानिकों के लिए सदा से एक चुनौती रहा है| फिर भी ब्रह्मांड की उत्पत्ति का ‘बिग बैंग सिद्धांत’ पर अभी तक सबसे अधिक वैज्ञानिकों ने स्वीकृती दी थी| 

क्या है ‘बिग बैंग सिद्धांत’ ? (What is the ‘Big Bang Theory’?)

हब्बल ने यह खोज की थी कि ब्रह्मांड का विस्तार (फैलाव) हो रहा है. उस समय अन्य वैज्ञानिकों के साथ-साथ हब्बल को भी अपनी इस असाधारण खोज के मायने स्पष्ट नहीं थे. इस मुद्दे पर विचार स्वरूप जोर्ज लेमाइत्रे और जोर्ज गैमो ने गंभीर प्रयास किए. इन दोनों वैज्ञानिकों के अनुसार यदि आकाशगंगाएं बहुत तेज़ी से हमसे दूर भाग रहीं हैं तो इसका अर्थ यह हुआ कि अतीत में किसी समय जरुर ये आकाशगंगाएं एक साथ रहीं होंगी| 

वस्तुतः ऐसा लगा कि 10 से 15 अरब वर्ष पहले ब्रह्मांड का समस्त द्रव्य एक ही जगह पर एकत्रित रहा होगा. उस समय ब्रह्मांड का घनत्व असीमित था तथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक अति-सूक्ष्म बिंदू में समाहित था. इस स्थिति को परिभाषित करने में विज्ञान एवं गणित के समस्त नियम-सिद्धांत निष्फल सिद्ध हो जाते हैं. वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को गुरुत्वीय विलक्षणता नाम दिया है. किसी अज्ञात कारण से इसी सूक्ष्म बिन्दू से एक तीव्र विस्फोट हुआ तथा समस्त द्रव्य इधर-उधर छिटक गया. इस स्थिति में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार शुरू हुआ और दिक्-काल की भी उत्पत्ति हुई. इस घटना को ब्रह्माण्डीय विस्फोट का नाम दिया गया. अंग्रेज ब्रह्मांड विज्ञानी सर फ्रेड हॉयल ने इस सिद्धांत की आलोचना करते समय मजाक में ये शब्द गढ़े- ‘बिग बैंग’| 

स्थायी अवस्था सिद्धांत (steady state theory)-

बीसवीं सदी के प्रतिभाशाली ब्रह्माण्डविज्ञानी फ्रेड हॉयल ने अंग्रेज गणितज्ञ हरमान बांडी और अमेरिकी वैज्ञानिक थोमस गोल्ड के साथ संयुक्त रूप से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का सिद्धांत प्रस्तुत किया. यह सिद्धांत ‘स्थायी अवस्था सिद्धांत’ के नाम से विख्यात है. इस सिद्धांत के अनुसार, न तो ब्रह्माण्ड का कोई आदि है और न ही कोई अंत. यह समयानुसार अपरिवर्तित रहता है. यद्यपि इस सिद्धांत में प्रसरणशीलता समाहित है, परन्तु फिर भी ब्रह्माण्ड के घनत्व को स्थिर रखने के लिए इसमें पदार्थ स्वत: रूप से सृजित होता रहता है. जहाँ ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सर्वाधिक मान्य सिद्धांत (बिग बैंग सिद्धांत) के अनुसार पदार्थों का सृजन अकस्मात हुआ, वहीं स्थायी अवस्था सिद्धांत में पदार्थों का सृजन हमेशा चालू रहता है| 

 

समीक्षा (Review)– 

जैन शास्त्र प्रारंभ से ही इस बात को कहते आरहे थे कि यह ब्रह्माण्ड अनादि-अनिधन है एवं अकृत्रिम है| अब वैज्ञानिकों के इस ‘स्थायी अवस्था सिद्धांत’ ने जैन शास्त्रों के कथन को ही पूरी दुनियाँ के समक्ष ला दिया है| 

 

इसके अलावा  विलियम कारपेंटर (1885) की पुस्तक ‘One Hundred Proofs that the Earth is Not a Globe में ऐसे १०० प्रमाण दिए हुये है जो ये साबित करते है कि ना केवल यह पृथ्वी स्थायी ही है साथ ही यह समतल है जैसा की जैन धर्म सदा से कहता आ रहा है| इसी पुस्तक के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु नीचे दिए जा रहे हैं, अंत में इसी पुस्तक की link भी दी हुयी है जहाँ से शेष बिंदु भी जाने जा सकते हैं-

 

 

  1. खड़े पानी की सतह पर जब भी प्रयोग किए गए हैं, तो यह सतह हमेशा समतल पाई गई है। यदि पृथ्वी एक ग्लोब होती, तो सभी खड़े पानी की सतह उत्तल होती। यह एक प्रायोगिक प्रमाण है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है।
  2. रेलमार्ग, सुरंगों, या नहरों के निर्माण में सर्वेक्षकों का संचालन “वक्रता” के लिए मामूली “भत्ते” के बिना किया जाता है, हालांकि यह सिखाया जाता है कि यह तथाकथित भत्ता बिल्कुल जरूरी है! यह एक महत्वपूर्ण प्रमाण है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है।
  3. ऐसी नदियाँ हैं जो सैकड़ों मील तक समुद्र के स्तर की ओर बहती हैं और कुछ फीट से अधिक नीचे नहीं गिरती हैं – विशेष रूप से, नील नदी, जो एक हजार मील में गिरती है, लेकिन एक फुट। इस हद तक का एक स्तर विस्तार पृथ्वी की “उत्तलता” के विचार के साथ काफी असंगत है। इसलिए, यह एक उचित प्रमाण है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है।
  4. यदि पृथ्वी एक ग्लोब होती, तो एक छोटा मॉडल ग्लोब सबसे अच्छा होता – क्योंकि सबसे सच्ची – वस्तु के लिए। नाविक को उसके साथ समुद्र में ले जाने के लिए। लेकिन ऐसा कुछ ज्ञात नहीं है: एक गाइड के रूप में इस तरह के खिलौने के साथ, नाविक अपने जहाज को निश्चित रूप से बर्बाद कर देगा!, नाविक अपने साथ समुद्र में ले जाते हैं, ऐसे चार्ट बनाए जाते हैं जैसे कि समुद्र एक समतल सतह हो|  यह इस बात का प्रमाण है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है।
  5. यदि पृथ्वी एक ग्लोब होती, तो निश्चित रूप से होती – यदि हम उस चीज़ की कल्पना कर सकते हैं जो चारों ओर से लोगों की हो – “एंटीपोड्स:” “लोग जो,” शब्दकोश कहते हैं, “दुनिया के बिल्कुल विपरीत दिशा में अपने आप में रहते हैं, उनके पैर हमारे विपरीत हैं: – जो लोग सिर नीचे लटक रहे हैं, जबकि हम सिर ऊपर खड़े हैं! लेकिन, चूंकि सिद्धांत हमें पृथ्वी के उन हिस्सों की यात्रा करने की इजाजत देता है जहां लोगों को नीचे की ओर सिर कहा जाता है, और अभी भी कल्पना करने के लिए अपने आप को ऊपर की ओर और हमारे मित्र जिन्हें हमने पीछे छोड़ दिया है – हमें नीचे की ओर सिर होने के लिए, यह इस प्रकार है कि पूरी बात एक मिथक है – एक सपना – एक भ्रम – और एक जाल; और, इसके बजाय कोई सबूत नहीं है इस दिशा में लोकप्रिय सिद्धांत को प्रमाणित करने के लिए, यह एक स्पष्ट प्रमाण है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है।
  6. यदि पृथ्वी एक ग्लोब होती, तो आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में छह महीने दिन और छह महीने की रात (किसी को नहीं पता) होने की संभावना है, क्योंकि खगोलविदों ने दावा किया है कि: – उनके सिद्धांत के लिए इसकी मांग है! लेकिन, इस तथ्य के रूप में – छह महीने का दिन और छह महीने की रात – है; आर्कटिक क्षेत्रों में कहीं नहीं पाया गया, यह एक हड़ताली सबूत प्रस्तुत करता है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है। 
  7. स्वेज नहर, जो लाल सागर को भूमध्य सागर से जोड़ती है, लगभग सौ मील लंबी है; यह एक सिरे से दूसरे सिरे तक पानी की एक सीधी और समतल सतह बनाती है; और इसके निर्माण में किसी भी कथित “वक्रता” के लिए कोई भत्ता नहीं दिया गया था। यह एक स्पष्ट प्रमाण है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है।
  8. यह एक सर्वविदित तथ्य है कि बादलों को लगातार सभी दिशाओं में चलते हुए देखा जाता है – हाँ, और अक्सर, एक ही समय में अलग-अलग दिशाओं में – पश्चिम से पूर्व की ओर किसी भी अन्य दिशा की तरह लगातार। . अब, यदि पृथ्वी एक ग्लोब होती, जो एक सेकंड में उन्नीस मील की दर से अंतरिक्ष में पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, तो हमें पूर्व की ओर बढ़ने के लिए दिखाई देने वाले बादलों को एक सेकंड में उन्नीस मील से अधिक तेज गति से आगे बढ़ना होगा। देखा; जबकि जो विपरीत दिशा में चलते हुए प्रतीत होते हैं, उन्हें हिलने-डुलने की कोई आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि पृथ्वी की गति प्रकट होने के लिए पर्याप्त से अधिक होगी। लेकिन हमें यह दिखाने के लिए केवल एक सामान्य ज्ञान की आवश्यकता है कि यह बादल हैं जो वैसे ही चलते हैं जैसे वे करते हैं, और इसलिए, पृथ्वी गतिहीन है। 
  9. यह एक सर्वविदित और निर्विवाद तथ्य है कि भूमध्य रेखा के दक्षिण में एक समान अक्षांश उत्तर की तुलना में कहीं अधिक बर्फ का संचय है: और यह कहा जाता है कि केर्गुएलन में, 50 डिग्री दक्षिण में, 18 प्रकार के पौधे मौजूद हैं , जबकि, आइसलैंड में, उत्तरी केंद्र के करीब 15 डिग्री, वहां 870 प्रजातियां हैं; और, वास्तव में, इस मामले के सभी तथ्य बताते हैं कि सूर्य की शक्ति दक्षिणी क्षेत्र के स्थानों पर उत्तर की तुलना में कम तीव्र है। अब, न्यूटोनियन परिकल्पना पर, यह सब अकथनीय है, जबकि यह “लंबन” के जेटेटिक दर्शन में शामिल सिद्धांतों को लागू करके प्रकाश में लाए गए तथ्यों के अनुसार सख्ती से है। यह इस बात का प्रमाण है कि पृथ्वी ग्लोब नहीं है।
  10. एयरोनॉट अपने गुब्बारे में शुरू करने में सक्षम है और कई मील की ऊंचाई पर हवा में घंटों तक रहता है, और उसी काउंटी या पैरिश में फिर से नीचे आता है जहां से वह चढ़ा था। अब, जब तक पृथ्वी अपनी उन्नीस-मील-से-सेकंड गति में गुब्बारे को अपने साथ नहीं खींचती, उसे अंतरिक्ष में बहुत पीछे छोड़ दिया जाना चाहिए: लेकिन, चूंकि गुब्बारों को कभी भी इस प्रकार छोड़े जाने के बारे में नहीं जाना जाता है, यह एक प्रमाण है कि पृथ्वी गतिमान नहीं है, और इसलिए, इस बात का प्रमाण है कि पृथ्वी एक ग्लोब नहीं है।

 

https://wiki.tfes.org/A_hundred_proofs_the_Earth_is_not_a_globe

डॉ। डॉर्मन का सुझाव है कि सूर्य घूमता है:  ”  स्पॉट स्पष्ट रूप से उनकी गति और रूप बदलते हैं क्योंकि वे डिस्क के पार जाते हैं – पूर्वी अंग पर एक स्पॉट देखा जाता है; दिन-ब-दिन यह प्रगति करता है, धीरे-धीरे बढ़ती तीव्रता के साथ, जब तक यह केंद्र तक नहीं पहुंच जाता; यह फिर धीरे-धीरे अपनी गति खो देता है, और अंत में पश्चिमी अंग पर गायब हो जाता है। आरेख रूप में होने वाले स्पष्ट परिवर्तन को दर्शाता है। मान लीजिए कि पहले स्थान अंडाकार आकार का है; जैसे-जैसे यह केंद्र के पास पहुंचता है, यह स्पष्ट रूप से चौड़ा होता जाता है और गोलाकार हो जाता है। उस बिंदु को पार करने के बाद, यह गायब होने तक अधिक से अधिक अंडाकार हो जाता है।  “

धब्बे में यह परिवर्तन सूर्य के अपनी धुरी पर घूमने की पुष्टि करता है – इन परिवर्तनों का हिसाब केवल इस अनुमान पर लगाया जा सकता है कि सूर्य अपनी धुरी पर घूमता है: वास्तव में, वे सटीक प्रभाव हैं जो उस मामले में परिप्रेक्ष्य के नियमों की मांग करते हैं   । पूर्वी अंग पर एक धब्बे के दूसरी बार दिखाई देने से पहले लगभग सत्ताईस दिन बीत जाते हैं।  “

https://wiki.tfes.org/File:Sunspots.png

 
जैन धर्म की दृष्टि से ब्रह्मांड की रचना (Creation of the universe from the point of view of Jainism)-

जैन धर्म ब्रह्माण्ड को अनादि-अनिधन एवं अकृत्रिम ( किसी के द्वारा नहीं बनाया गया ) स्वीकारता है| जैन शास्त्रों के अनुसार, ब्रह्मांड छह शाश्वत द्रव्यों से बना है- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल|  

द्रव्य किसे कहते हैं ?

जो गुण और पर्याय वाला होता है, उसे द्रव्य कहते हैं। जैसे-स्वर्ण पुद्गल द्रव्य है, रूपवान होना उसका गुण है। हार, मुकुट, कंगन आदि द्रव्य की पर्याय हैं तथा पीलापन उसके रूप गुण की पर्याय है। द्रव्य के बिना गुण और पर्याय नहीं होती है, उसी प्रकार गुण व पर्याय के बिना द्रव्य भी नहीं होता है। 

जो पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा अर्थात् जिसका कभी नाश नहीं होता है, उसे द्रव्य कहते हैं। 

वर्तमान विज्ञान द्रव्य को किस रूप में मानता है ?

वर्तमान विज्ञान कहता है कि हम किसी पदार्थ को न बना सकते हैं और न मिटा सकते हैं, इस सिद्धान्त को अविनाशता के सिद्धान्त से जाना जाता है। 

इन छह द्रव्यों का क्या स्वरूप है?

 

द्रव्य और अस्तिकाय के वर्गीकरण को दर्शाने वाला चार्ट

 

जीव द्रव्य:-

जिसमें दर्शन, ज्ञान रूप चेतना पाई जाती है, वह जीव द्रव्य है। अथवा जो जीता था, जी रहा है एवं जिएगा, उसे जीव कहते हैं। जीव यानी आत्माएं – जीव एक वास्तविकता के रूप में मौजूद है, शरीर से अलग अस्तित्व रखता है। हालांकि आत्मा जन्म और मृत्यु दोनों का अनुभव करती है, लेकिन यह न तो वास्तव में नष्ट होती है और न ही बनाई जाती है। शरीर का परिवर्तन मात्र हुआ करता है| 

 पुद्गला द्रव्य:-

जिसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण पाए जाते हैं, जो संवेदन से रहित है, पूरण और गलन स्वभाव वाला है, (पूरण अर्थात् मिलने वाला तथा गलन अर्थात् मिटने वाला है) उसे पुद्गल द्रव्य कहते हैं। इसकी सबसे छोटी इकाई परमाणु है  जो अविनाशी हैं। एक-एक परमाणु मिलाकर छोटे-बड़े आकार के पदार्थों ( वस्तुओं ) की रचना होती है, जिसे स्कंध कहते हैं| हम जो कुछ भी अपनी आँखों अथवा यंत्रों आदि की सहायता से देखते हैं सब एकमात्र इस पुद्गल द्रव्य को ही देखते हैं| 

स्कन्ध के 6 भेद हैं-

बादर-बादर – जो पदार्थ छिन्न-भिन्न कर देने पर स्वयं नहीं जुड़ सकते, वे बादर-बादर हैं। जैसे पत्थर, लकड़ी, धातु, कपड़ा आदि। 

बादर – जो पदार्थ छिन्न-भिन्न कर देने पर स्वयं जुड़ जाते हैं, वे बादर कहलाते हैं। जैसे-जल, दूध,पारा आदि। 

बादर-सूक्ष्म – जो नेत्रों के द्वारा देखा तो जा सके, किन्तु पकड़ में न आ सके, वह बादर-सूक्ष्म है।जैसे-छाया, प्रकाश, अन्धकार, चाँदनी आदि।

सूक्ष्म-बादर – जो नेत्रों से नहीं दिखते किन्तु शेष इन्द्रियों के द्वारा अनुभव किए जाते हैं, वे सूक्ष्म बादर हैं। जैसे-हवा, गन्ध आदि। 

सूक्ष्म – जो किसी भी इन्द्रिय का विषय न हो। जैसे-कार्मण स्कन्ध। 

सूक्ष्म-सूक्ष्म – अत्यन्त सूक्ष्म द्वि अणुक को सूक्ष्म-सूक्ष्म स्कन्ध कहते हैं। यह स्कन्ध की अंतिम इकाई है। 

पुद्गल को विज्ञान की भाषा में क्या कहते हैं ?

जिस पदार्थ का फ्यूजन एवं फिशन होता है, उसे पुद्गल कहते हैं। फ्यूजन का अर्थ है-एकरूप होना, संयोग पाना और फिशन का अर्थ है-टूटकर फैलना। फ्जूयन एवं फिशन को क्रम से इन्टीग्रेशन और डिसइन्टीग्रेशन भी कहते हैं। इसे मेटर भी कहते हैं।

धर्म द्रव्य:- 

यहाँ धर्म द्रव्य से तात्पर्य पुण्य-पाप से नहीं है, यह एक द्रव्य है जो जीव और पुद्गल द्रव्यों को चलने में सहायता प्रदान करती है| यदपि जीव और पुद्गल अपनी शक्ति से चलते हैं किन्तु उनकी गति में धर्म द्रव्य उदासीन कारण के रूप में रहता है। जैसे- मछली के तैरने में जल, हवाई जहाज के चलने में आकाश एवं रेल के चलने में पटरी उदासीन कारण के रूप में होते हुये भी सहायक होती है। 

धर्म द्रव्य के बारे में वैज्ञानिकों की क्या मान्यता है ? 

विज्ञान इसे ईथर के रूप में स्वीकार करता है। ईथर को अमूर्तिक, व्यापक, निष्क्रिय और अदृश्य के साथसाथ उसे गति का आवश्यक माध्यम मानता है। आइंस्टीन ने भी गति हेतुत्व को स्वीकार करते हुए कहा है’लोक परिमित है, लोक से अलोक अपरिमित है। लोक के परिमित होने का कारण यह है कि द्रव्य अथवा शक्ति लोक के बाहर नहीं जा सकती, लोक के बाहर उस शक्ति का अभाव है, जो गति में सहायक होती है।” 

अधर्म द्रव्य:- 

यहाँ भी अधर्म द्रव्य से तात्पर्य पुण्य-पाप से नहीं है, यह एक द्रव्य है जो ठहरते हुए जीव और पुद्गलों को रुकने में सहायक होता है। यह भी उदासीन, अमूर्त, संवेदन शून्य एवं लोकव्यापी है। जैसे-वृक्ष पथिक को रुकने में सहायक है।इस प्रकार जीव अथवा पुद्गल कोई चलना चाहे तो धर्म द्रव्य सहायक है। कोई रुकना चाहे तो अधर्म द्रव्य सहायक है। ये दोनों ही धर्म एवं अधर्म द्रव्य ठीक उसी प्रकार समस्त लोकाकाश में व्याप्त हैं, जैसे-तिल में तेल अथवा दूध में घी सर्वत्र ही पाया जाता है, वैसे ही दोनों द्रव्य सम्पूर्ण लोकाकाश में पाए जाते हैं।

आकाश द्रव्य:-

जो जीवादि सभी द्रव्यों को अवकाश (स्थान) देता है, वह आकाश द्रव्य है। यहाँ ऊपर दिखने वाला नीले-नीले बादलों से तात्पर्य नहीं है जिन्हें लोक में आकाश कहा जाता है, यह तो पुद्गलों का संचय बादल है। आकाश द्रव्य भी अमूर्तिक, संवेदन शून्य एवं निष्क्रिय होता है। 

अन्य दर्शन एवं विज्ञान ने आकाश द्रव्य माना कि नहीं ?

अन्य दर्शनों ने भी आकाश द्रव्य को स्वीकार किया है, किन्तु वे उसके लोक, अलोक का भेद नहीं मानते हैं, इसी कारण से उनके यहाँ धर्म और अधर्म द्रव्य की भी मान्यता नहीं है। आधुनिक विज्ञान ने भी आकाश द्रव्य के दोनों भेदों को माना है। जैसे कि धर्म द्रव्य के कथन में आइंस्टीन का दृष्टांत दिया गया है।

काल द्रव्य:-

वर्तना (परिवर्तन) जिसका प्रमुख लक्षण है। अर्थात् जो स्वयं परिणमन करते हुए अन्य द्रव्यों के परिणमन में उदासीन रूप से सहकारी कारण होता है। पदार्थों में परिवर्तन यह जबरदस्ती नहीं कराता, बल्कि इसकी उपस्थिति में पदार्थ स्वयं परिवर्तित होते हैं। यह तो कुम्हार के चाक के नीचे रहने वाली कील के समान है,जो स्वयं नहीं चलती, न ही चाक को चलाती है, फिर भी कील के अभाव में चाक घूम नहीं सकता है।इसी प्रकार दूसरा उदाहरण भी है- सीलिंग फेन, सीलिंग फेन में हेन्डिल जो स्वयं नहीं चलता, न वह सीलिंग फेन को चलाता है, किन्तु उसके बिना भी सीलिंग फेन नहीं चलता है। यह भी उदासीन, अमूर्त, संवेदनशून्य एवं लोकव्यापी है।

काल के दो भेद हैं –

व्यवहार काल – मिनट, घंटा, दिन आदि व्यवहार काल हैं।

निश्चय काल – जो प्रत्येक द्रव्य में प्रति समय परिणमन कराने में सहकारी कारण है, उस द्रव्य को निश्चय काल कहते हैं।

समय किसे कहते हैं ?

काल की सबसे छोटी इकाई को समय कहते हैं अथवा एक परमाणु मंदगति से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश पर जाने में जो काल लगता है, उसे समय कहते हैं।

 

समय तो सत्य है किन्तु निश्चय काल कुछ प्रतीत नहीं होता है ? 

यदि समय ही समय मानते तो वह शाश्वत नहीं है, वह उत्पन्न होता है और दूसरे क्षण नष्ट होता है अत: समय पर्याय सिद्ध हुई। अब वह समय नामक पर्याय जिस द्रव्य की है, उसी द्रव्य का नाम निश्चयकाल है।

इस प्रकार जैन धर्म में ब्रह्माण्ड/ सृष्टि का स्वरुप आया हुआ है जो यथार्थ है, चुकि विज्ञान अभी अपने खोज की भूमिका में है इसलिये वह जो और जितना खोज पा रहा है उतना सभी के सामने रखता जा रहा है इसलिये हम उसको भी अन्यथा नहीं कहेगें पर इतना हमें अवश्य समझना होगा कि उसकी खोज अभी पूरी नहीं हो पायी है, लेकिन उसने जितनी भी खोज की है वह भी जैन शास्त्रों में आये हुये ब्रह्माण्ड के स्वरूप को ही पुष्ट करने वाली है|

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