इस व्रत में ५६ उपवास और ५२ पारणाएं होती हैं तथा १०८ दिन में पूर्ण होता है। इसमें दधिमुख पर्वत संबंधी एक उपवास १ पारणा के क्रम से ४ उपवास ४ पारणा होने पर अंजनगिरि संबंधी बेला होता है। पुन: पारणा करके ८ रतिकर संबंधी ८ उपवास एकांतर से होते हैं। यह पूर्वदिक् संबंधी विधि है, इसी प्रकार से ४ एकांतर पुन: बेला व ८ एकांतर दक्षिण दिक् संबंधी, तथैव पश्चिम व उत्तर दिक् संबंधी करने होते हैं। इस तरह ४ बेला, ४८ उपवास व ४२ पारणाएं होती हैं। जिन्हें १ उपवास १ पारणा के क्रम से व्रत करने की शक्ति नहीं है, वे अपनी शक्ति के अनुसार कभी भी ४ उपवास, पुन: बेला पुन: ८ उपवास अर्थात् १-१ उपवास करके १ महीने में ४ किये, नंतर बेला किया, नंतर ८ किये, ऐसे ४८ उपवास व ४ बेला की संख्या को समयानुसार भी पूर्ण करके व्रत कर सकते हैं, ऐसा हरिवंश पुराण में एक श्लोक में संकेत आया है। इसका फल चक्रवर्ती व तीर्थंकर पद प्राप्त होना है।
समुच्चय मंत्र-ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपसंबंधि-अकृत्रिमजिनालयस्थ सर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
(सुगंधित पुष्पों से १०८ जाप्य करना)
प्रत्येक व्रत के पृथक्-पृथक् मंत्र-
पूर्वदिक् संबंधी जाप्य मंत्र-
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक्संबंधिप्रथमदधिमुखपर्वतस्थितजिनालयस्थ सर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वर द्वीपस्थपूर्वदिक् संबंधिद्वितीयदधिमुख पर्वतस्थितजिनालयस्थ सर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वर द्वीपस्थपूर्वदिक् संबंधितृतीयदधिमुख पर्वतस्थितजिनालयस्थ सर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक् संबंधिचतुर्थदधिमुख पर्वतस्थितजिनालयस्थ सर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक् संबंध्यंजनपर्वतस्थित जिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:
(बेला में दो दिन यही जाप्य)
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वर द्वीपस्थपूर्वदिक्संबंधिप्रथमरतिकर पर्वतस्थितजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक्संबंधि द्वितीयरतिकर पर्वतस्थितजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक्संबंधि तृतीयरतिकरपर्वतस्थितजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक्संबंधि चतुर्थरतिकरपर्वतस्थितजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक् संबंधिपंचमरतिकरपर्वतस्थितजिनालयस्थजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक् संबंधिषष्ठरतिकरपर्वतस्थितजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक् संंबंधिसप्तमरतिकरपर्वतस्थितजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपस्थपूर्वदिक् संबंधिअष्टमरतिकरपर्वतस्थितजिनालयस्थसर्वजिनबिम्बेभ्यो नम:।
इसी तरह ‘‘पूर्वदिक्’’ की जगह दक्षिणदिक् लगाकर १३ जाप्य होंगी, तथैव ‘‘पूर्वदिक्’’ के स्थान पर पश्चिमदिक् लगाकर १३, तथैव उत्तरदिक् लगाकर १३, कुल जाप्य ५२ ही होंगी। व्रत के दिन नंदीश्वर, पूजन करना चाहिए। इस प्रकार व्रत पूर्ण होने पर उद्यापन में ५२ प्रतिमा सहित नंदीश्वर की प्रतिमा बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराना चाहिए अथवा शक्ति के अनुसार ५२-५२ उपकरण, शास्त्र आदि मंदिर में भेंट करके नंदीश्वर उद्यापन विधान का मंडल बनाकर पूजन आदि से धर्मप्रभावना करते हुए उद्यापन करना चाहिए।