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आत्मा से मिल रहा हूँ !

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प्रसंग पृथवीपुर का है,

पूज्य आचार्य विमर्शसागर जी समयसार का स्वाध्याय कर रहे थे, तभी एक सज्जन फुर्ती दिखाते हुए आए, महाराज को नमन किया फिर बोले- महाराजश्री ! यहाँ तहसीलदार साहब आए हैं, आपसे मिलना चाहते हैं, फिर उन्हें दूर पर जाना है।

आचार्यश्री ने कहा- अभी तो मैं आत्मा से मिल रहा हूँ।

उनका उत्तर सुनकर वह सज्जन अचकचा गए किन्तु कक्षा में उपस्थित संघ के सदस्य और श्रावकगण खुश हो गए, उन्हें जीवन में पहली बार ‘तत्व वाक्य’ सुनने को मिला था। स्वाध्याय चलता रहा, तहसीलदार साहब कक्ष में आ गए और नमन कर
बैठ गए, स्वाध्याय का रस लेने लगे।

कुछ देर बाद जब स्वाध्याय पूर्ण हो गया तो तहसीलदार विनयपूर्वक बोले-‘आचार्यश्री ! आपकी आध्यात्मिक चर्या सुनकर बहुत आनंद आया, मैं धन्य हो गया।’

आचार्यश्री मुस्काते हुए सवात्सल्य बोले- ‘यह तो आत्मा का आनंद है। इसे जो समझता है उसे आनंद ही आता है’।

दर्शन कर तहसीलदार वापस हो गए।

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