इस व्रत में १२० उपवास किये जाते हैं। प्रतिपदा का एक, दो द्वितीयाओं के दो, तीन तृतीयाओं के तीन, चार चतुर्थियों के चार, पाँच पंचमियों के पाँच, छ: षष्ठियों के छ:, सात सप्तमियों के सात, आठ अष्टमियों के आठ, नौ नवमियों के नौ, दश दशमियों के दश, ग्यारह एकादशियों के ग्यारह, बारह द्वादशियों के बारह, तेरह त्रयोदशियों के तेरह, चौदह चतुर्दशियों के चौदह एवं पन्द्रह पूर्णमासियों के पन्द्रह इस प्रकार एक सौ बीस उपवास सम्पन्न किये जाते हैं। १±२±३±४±५±६±७±८±९±१०±११±१२±१३±१४±१५·१२० उपवास। उपवास के दिनों में श्रावक के उत्तरगुणों का पालना और शीलव्रत धारण करना आवश्यक है। इस व्रत में चौबीस तीर्थंकर का मंत्र जपें एवं चौबीसी पूजा करें।
मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नम: अथवा ॐ ह्रीं ऋषभादिवर्धमानान्तेभ्यो नम:।