जैन शासन ध्वज !! jain flag !!
जैन शासन ध्वज !! jain flag !! जैन समाज के सभी आम्नाओं के लिए एक जैन ध्वज हो, ऐसा एक प्रस्ताव सभी जैन सम्प्रदायों के लिए लम्बे अरसे से विचारणीय था। अत वर्ष 1971 ई में आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनि श्री कान्तिसागरजी मुनि श्री सुशीलकुमारजी मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी जैन समाज के इन चारों मुनिराजों ने
विनोबा भावे पर जैनधर्म का प्रभाव !! Influence of Jainism on Vinoba Bhave.
विनोबा भावे पर जैनधर्म का प्रभाव (१८९५—१९८२) आचार्य विनोबा भावे जैन—दर्शन की सल्लेखना के महत्त्व से परिचित थे। भगवान् महावीर स्वामी के २५०० वें निर्वाण महोत्सव वर्ष में बाबा को चिन्ता हुई कि जैनधर्म का साहित्य विपुल और विशाल है और तीर्थंकरों की वाणी प्राकृत भाषा में निबद्ध है और जैन दर्शन का सार प्रस्तुत
अमर शहीद : मोतीचंद जैन !! Immortal Martyr: Motichand Jain.
अमर शहीद : मोतीचंद जैन १- सोलापुर जिला के करकंब गाँव में सेठ पद्मसी के यहाँ ई. सन् १८९० में मोतीचंदजी का जन्म हुआ था। पिताजी का देहान्त होने पर वे अपने मामा, मौसी के यहाँ सोलापुर आए। वहीं आपका प्रारम्भिक अध्ययन हुआ। २- दुधनी गाँव से शिक्षा के लिए सोलापुर में आए बालचंद, देवचंदजी (मुनि श्री
संसद भवन में जैन भित्ति-चित्र !! Jain murals in Parliament House.
संसद भवन में जैन भित्ति-चित्र भारत में अनादिकाल से सार्वजनिक स्थानों, मन्दिरों, महलों आदि को चित्रों और भित्ति—चित्रों से सज्जित करने की प्रथा चली आ रही है। ये कलाकृतियाँ युगविशेष के लोगों के जीवन, उनकी संस्कृति और परम्पराओं की प्रतीक हैं। हमारे लिए अब ये भारत की प्राचीन महान् सभ्यताओं और साम्राज्यों का स्मरण कराने
जैन लॉ के प्रणेता : बैरिस्टर चम्पतराय जैन !! Founder of Jain Law: Barrister Champatrai Jain.
जैन लॉ के प्रणेता : बैरिस्टर चम्पतराय जैन १- बैरिस्टर चम्पतरायजी राष्ट्रीय चेतना के जागरण एवं उत्थान के प्रतीक थे। २- आपने इंग्लैण्ड में जाकर १८९७ में बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की। ३- मृदुभाषी और मिलनसार स्वभाव के कारण आप शीघ्र ही कानूनी जगत् व सामान्य व्यक्तियों के बीच भी लोकप्रिय हो गए। ४- विदेशों में जैनधर्म के प्रचार
आदर्श मुख्यमंत्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल !! Ideal Chief Minister Shri Mishrilal Gangwal.
आदर्श मुख्यमंत्री श्री मिश्रीलाल गंगवाल (१९०२-१९८१) १- तत्कालीन मध्य भारत के मुख्यमंत्री रहे, मालवा के गाँधी के नाम से विख्यात, अपने स्नेहिल व्यवहार से भैय्याजी उपनाम से प्रसिद्ध श्री मिश्रीलालजी गंगवाल नैतिक मूल्यों के देवदूत, स्वयं सेवक रत्न, जैन वीर, जैन रत्न जैसी अनेक उपाधियों के धारक थे। २- १९५१—५२ में भारत के प्रथम आम चुनाव में
कलिंग चक्रवर्ती सम्राट् महामेघवाहन एवं खारवेल !! Kalinga Chakraborty Emperor Mahameghavahana and Kharavela.
कलिंग चक्रवर्ती सम्राट् महामेघवाहन एवं खारवेल अपने शासन के २००—२५० वर्ष पूर्व वहाँ की प्रसिद्ध आदिनाथ भगवान् (कलिंगजिन) की प्रतिमा जो कि नन्दराजा द्वारा ले जायी गई थी। उस प्रतिमा को राजा खारवेल ने मगध पर विजय प्राप्त कर पुन: वापस लाया था। तपोधन मुनियों के आवास हेतु गुफायें बनवायीं। अर्हन्मंदिर के निकट उसने एक
हमारा राष्ट्रीय चिह्न और सम्राट् अशोक !! Our national emblem and Emperor Ashoka.
हमारा राष्ट्रीय चिह्न और सम्राट् अशोक हमारा राष्ट्रीय चिह्न जिसे हमने सम्राट अशोक की विरासत के रूप में प्राप्त किया है। यह चिह्न सम्राट् अशोक की शिक्षाओं की स्मृति को ताजा करता ही है, वरन् इस चिह्न में हमारी असीम सांस्कृतिक विरासत भी झलकती है। सम्राट् अशोक के स्तम्भों में जैन तीर्थंकरों के चिह्न अंकित
जैन सरस्वती !! Jain Saraswati.
जैन सरस्वती जैनाचार्यों ने सरस्वती देवी के स्वरूप की भगवान् की वाणी से तुलना की है। यथार्थत: सरस्वती की प्रतिमा द्वादशांग का ही प्रतीकात्मक चिह्न है। जैन सरस्वती के चार हाथों में कमल, अक्षमाला, शास्त्र तथा कमण्डलु हैं, जो क्रमश: अन्तर्दृष्टि, वैराग्य, ज्ञान और संयम के प्रतीक हैं। जैन मनीषियों ने शास्त्रों की रचना करते