bhavlingisant.com

महाराणा प्रताप और जैन धर्म !! Maharana Pratap and Jainism.

महाराणा प्रताप और जैन धर्म   मेवाड़ प्रारम्भ से ही जैन धर्म की गतिविधियों का प्रमुख स्थान रहा है। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप (१५४०-१५९७) के समय में भी मेवाड़ में जैनधर्म का व्यापक प्रभाव था। इतिहास प्रसिद्ध दानवीर भामाशाह जैन प्रताप के बालसखा थे। दानवीर भामाशाह का सम्पूर्ण जीवन जैनधर्म के उच्च आदर्शों से अनुप्राणित

Read More »

जैन साम्राज्ञी शान्तलादेवी !! Jain empress Shantladevi.

जैन साम्राज्ञी शान्तलादेवी   पट्टमहादेवी शान्तला होय्यसल वंश के परम प्रतापी, पराक्रमी शासक विष्णुवर्द्धन की रानी थी। इनके पिता का नाम सारसिङ्गय्य हेग्गड़े तथा माता का नाम मानिकव्वे था । आपका जन्म कर्नाटक के बेलम्भव ग्राम में शक सं. १०१२ के आस-पास अनुमानित किया जाता है। शान्तलादेवी ने अपनी माता के पूर्ण संस्कार लिए थे,

Read More »

 जैन परम्परा में राष्ट्रधर्म !! Rashtradharma in Jain tradition.

 जैन परम्परा में राष्ट्रधर्म जैन परम्परा में जैन श्रमण तीन संध्याओं में आत्मध्यान के समय ” सत्त्वेषु मैत्री …. श्लोक के माध्यम से है भगवन्! मेरी आत्मा सदा सभी प्राणि भाव को धारण करे।” राष्ट्रभावना भाते हैं। दिगम्बराचार्य पूज्यपाद स्वामी ने शांतिभक्ति  में  क्षेमं  सर्व प्रजानां … श्लोक में स्पष्टतया राष्ट्र की संवृद्धि एवं सुख

Read More »

 दिगम्बर जैन साधु का संयमोपकरण मयूर पिच्छिका !! Digambar Jain monk’s abstinence Mayur Pichhika.

 दिगम्बर जैन साधु का संयमोपकरण मयूर पिच्छिका  दिगम्बर मुनि के पास संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका होती है। यह जिन मुद्रा एवं करुणा का प्रतीक है। पिच्छिका और कमण्डलु मुनि के स्वावलम्बन के दो हाथ हैं। इसके बिना अहिंसा महाव्रत, आदान निक्षेपण समिति तथा प्रतिष्ठापना समिति नहीं पल सकती। प्रतिलेखन शुद्धि के लिए पिच्छिका

Read More »

दिगम्बर जैन साधु का शौचोपकरण कमण्डलु !! Digambar Jain Sadhu’s Shochopakaran Kamandalu.

दिगम्बर जैन साधु का शौचोपकरण कमण्डलु कमण्डलु भारतीय संस्कृति का सारोपदेष्टा है। उसका आगमनमार्ग बड़ा और निर्गमनमार्ग छोटा है। अधिक ग्रहण करना और अल्प व्यय करना अर्थशास्त्र का ही नहीं, सम्पूर्ण लोकशास्त्र का विषय है। संयम का पाठ कमण्डलु से सीखना चाहिए। कमण्डलु में भरे हुए जल की प्रत्येक बूँद के समुचित उपयोग हेतु एक

Read More »

जैन प्रतीक चिह्न !! Jain Symbols.

जैन प्रतीक चिह्न भगवान् महावीर के २५०० वें निर्वाण वर्ष (१९७४-१९७५ ई०) में जैनधर्म के सभी आम्नायों को मानने वालों के द्वारा एक मत से एक प्रतीकात्मक चिह्न को मान्यता दी गई, यों तो अहिंसा और परोपकार की भावना से जैन कहीं भी अपनी पहचान बना लेते हैं; क्योंकि उनका जीवनोद्देश्य ही है: परस्परोपग्रहो जीवानाम्,

Read More »

डॉ. पण्डित पन्नालाल साहित्याचार्या !! Dr. Pandit Pannalal Sahityacharya.

साहित्य मनीषी, उत्कृष्ट शिक्षाविद् डॉ. पण्डित पन्नालाल साहित्याचार्या  बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न एवं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित पण्डित का जन्म पारगुवां (सागर) में 5 मार्च, 1911 को हुआ। बाल्यकाल से ही आप विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।अर्थाभाव के कारण आपने बाल्यकाल से संघर्ष किया, किन्तु आप अपनी लगन एवं परिश्रम के कारण प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण

Read More »

 श्री दानवीर तीर्थभक्त रायबहादुर जैन सम्राट !! Shri Danveer Tirthabhakt Raibahadur Jain Emperor.

 श्री दानवीर तीर्थभक्त रायबहादुर जैन सम्राट (1874-1973) श्रीमंत सरसेठ हुकमचंद जैन सरसेठ हुकमचन्द जैन का जन्म 1874 में इन्दौर के कासलीवाल परिवार में हुआ था। आप भारतीय उद्योग के एक अग्रणी व्यापारी थे तथा लगभग 50 वर्षों तक जैन समुदाय के प्रमुख नेता थे। आपका धार्मिक और सामाजिक सेवा में अद्वितीय स्थान है। आपने जैन

Read More »

 भूले बिसरे :- सराक बंधु !! Forgotten :- Sarak brothers.

 भूले बिसरे :- सराक बंधु अनादिकाल से ही सराक क्षेत्र तीर्थङ्करों की जन्मभूमि, विहार स्थली, तपोभूमि एवं निर्वाणभूमि के रूप में पूज्य रहा है। इस क्षेत्र के नगरों के नाम भगवान् महावीर की कीर्ति गाथा के प्रत्यक्ष साक्षी हैं। सराक मूलतः जैन थे, सराक तीर्थङ्करों द्वारा प्रवर्तित श्रावकधर्म को मानने वाले थे। प्राचीनकाल से लेकर

Read More »
Scroll to Top