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आपको लाज नहीं आती ?

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पूज्यश्री 13 अप्रैल को दौसा नगर में थे, पुनः विहार। पहुँचे ग्राम पाड़ली। यह एन.एच. 76 पर है। ब्रह्मकुमारी आश्रम वाले कुछ बंधु दर्शन करने सामने आ गए।

उनमें से एक मास्टर जी बोले- ‘आप पूर्ण वयस्क हैं, फिर भी नग्न रहते हैं, लाज नहीं आती ?’

आचार्यश्री को जिस ‘भटकी हुई आत्मा’ की तलाश थी, शायद वह सामने आ गई थी, अतः सवात्सल्य बोले- “बंधु, यह यथाजात स्वरूप है, जन्म से सभी नंगे आते हैं, जिन लोगों में विकारी भाव आ जाते हैं वे वस्त्र का आवरण तन पर लपेट लेते हैं मगर जो अविकारी, उदासीन और वैरागी होते हैं उन्हें वस्त्र पहनने की भावना नहीं होती। शिशु कभी स्वेच्छा से वस्त्र नहीं माँगता, न पहनता, क्योंकि उसमें वासना का विकार जन्म नहीं ले पाता। ऐसे शिशु का आभामंडल हम सभी को संदेश देता है-
हिंसा, झूठ, ‘कुशील’, परिग्रह, चोरी मत यह पाप करो, पाप विनाशक, धर्म प्रकाशक, णमोकार का जाप करो।

मास्टर साहब को कुछ कुछ समझ में आ गया, पर बहुत कुछ समझ में नहीं आया सो आगे पूछने लगे- ‘नग्न स्वरूप देखकर माता-बहिनों को आपत्ति नहीं होती ?’

तब आचार्यश्री एक महान पिता की तरह, उस तुच्छ व्यक्ति को ज्ञानपूर्वक समझाने लगे- “भाई! गांधारी का पुत्र जब युद्ध में हारनेवाला था, तब माँ ने अपने पुण्य से पुत्र का तन वज्र सा बना देने के लिए उसे नग्न होकर आने को कहा था। इससे सिद्ध होता है कि पुत्र शिशु हो या युवक माँ उसमें और उसके नग्नत्व में विकार नहीं देखती। उसके विकास की कामना करती है, बस।

पच्चीसों भक्त साथ थे ही, अतः वे मास्टर के वार्तालाप पर हँसते हुए पूछने लगे-‘आया कुछ समझ में’? आचार्यश्री तो साक्षात ज्ञान दिवाकर हैं, तेरे शुभ का उदय आया है इसलिए आज तुझे दर्शन का निमित्त भी मिल गया।’

मास्टर की अकड़ ढीली पड़ गई। वह अपना अज्ञान छुपाता हुआ, आचार्यश्री से विनयपूर्वक पूछने लगा- ‘गुरुदेव! नग्नत्व और ब्रह्मचर्य पर तनिक और प्रकाश डालिए ताकि मेरा मन प्रकाशित हो सके। क्योंकि मैं अभी तक इतना जान पाया हूँ कि आत्मा का स्वभाव ब्रह्मचर्य है, इसलिए आत्मा का ध्यान करना चाहिए, नग्न रहने से ब्रह्मचर्य की उपासना नहीं होती। जगत के सभी पशु-पक्षी नग्न हैं, तो क्या वे ब्रह्मचारी माने जायेंगे ? इसलिए हम ब्रह्मचर्य का स्थान आत्मा में पाते हैं, यही कारण है कि हमारे आश्रम में सैकड़ों पति-पत्नि ब्रह्म की उपासना करते हैं और रात्रि में एक ही पलंग पर सोते हैं। वहाँ ब्रह्मचर्य समझ में आता है।’

आचार्यश्री समझ गए कि मास्टर जी की आत्मा अनेकों जन्मों से अंधकार में है अतः इसे प्रकाश में लाना सहज नहीं है, फिर भी मुझे अपना कर्तव्य तो करना ही चाहिए, भूले को राह बतला देना चाहिए, अतः वे मास्टर से बोले- ”सुनिए ! जब तक स्त्री त्याग’ रूप व्यवहार की उपलब्धि नहीं होती, तब तक आत्मा के स्वभाव रूप ब्रह्मचर्य की प्राप्ति नहीं होती। जब आप वस्त्रों में
निर्विकार रहते हैं तो वस्त्रों की आवश्यकता क्यों ? एक दिगम्बर संत यहाँ, सड़क पर नग्न खड़े रहने की दक्षता रखता है, क्या आप कपड़े उतारकर एक घंटा सड़क पर चल सकते हैं? वैसी स्थिति में ही आपकी पत्नी सामने जा जावे फिर उसके और आपके हाव-भाव कैसे होंगे, जानते हो ? वह आँखें बंद कर लेगी, आप हाथ से कुछ छुपाने लग जावेंगे। बस यही तो है वासना रूपी विकार। मगर जब आप आत्मा से ब्रह्मचर्य अपना लेंगे तो फिर आपको नग्नत्व अटपटा नहीं लगेगा।”

आचार्यश्री की वार्ता सुन सभी भक्त वाह-वाह कह उठे। युवकों ने तालियाँ बजा दीं। मास्टर साब को ज्ञान की किरण मिल गई अतः आगे कुछ न बोल कर, आचार्यश्री के चरणों में नत-मस्तक हो गए, फिर बोले-हे गुरुदेव, आपने मेरा अंधकार समाप्त कर दिया। मुझे क्षमा कीजिए। (वार्ता समाप्त विहार शुरू)।

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