नवदेवता व्रत


व्रतविधि—  नवदेवता व्रत का दूसरा नाम रूपार्थवल्लरी व्रत है। यह आश्विन शुक्ला एकम् से आश्विन शुक्ला नवमी तक किया जाता है, पुन: दशमी को पूजा करके आहार दानादि देकर व्रत का समापन करें, इस प्रकार ९ वर्ष तक यह व्रत किया जाता है। ‘‘श्री जैनेन्द्र व्रत कथा संग्रह (मराठी)’’ के अनुसार यह व्रत है। इसमें स्नान आदि कर शुद्ध वस्त्र पहनकर मंदिर जावें, वहाँ मंदिर की तीन प्रदक्षिणा देकर भगवान को पंचांग नमस्कार करें। पुन: नवदेवता की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक, पूजा करके, श्रुत, गणधर की पूजा एवं क्षेत्रपाल-पद्मावती की अर्चना करें। भगवान को ९ प्रकार के नैवेद्य चढ़ावें, १०८ पुष्पों से मंत्र जाप्य करें, ब्रह्मचर्यपूर्वक दिवस बितावें, दूसरे दिन पूजा-दानादि करके पारणा करें। इस प्रकार ९ दिन पूजा करके दशवें दिन जिनपूजा करके पूजा का विसर्जन करें। ९ वर्ष करके यथाशक्ति उद्यापन करें, चतुर्विध संघ को चार प्रकार का दान देवें। उत्तम विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार व जघन्य विधि एकाशन (एक बार शुद्ध भोजन) है। इस व्रत को करने से पुत्रसुखप्राप्ति, धन की वृद्धि, यश-कीर्ति की प्राप्ति होकर परभव में मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है।

व्रत की जाप्य    समुच्चय मंत्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधु-जिनधर्म-जिनागम-जिनचैत्य- चैत्यालयेभ्यो नम:।
प्रत्येक व्रत के अलग-अलग मंत्र
१.ॐ ह्रीं अर्हं अर्हत्परमेष्ठिभ्यो नम:। 
२.ॐ ह्रीं अर्हं सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नम:। 
3.ॐ ह्रीं अर्हं आचार्य परमेष्ठिभ्यो नम:। 
4.ॐ ह्रीं अर्हं उपाध्याय परमेष्ठिभ्यो नम:।
5 ॐ ह्रीं अर्हं सर्वसाधु परमेष्ठिभ्यो नम:।
6. ॐ ह्रीं अर्हं जिनधर्मेभ्यो नम:।
7. ॐ ह्रीं अर्हं जिनागमेभ्यो नम:।
8. ॐ ह्रीं अर्हं जिनचैत्येभ्यो नम:। 
9.ॐ ह्रीं अर्हं जिनचैत्यालयेभ्यो नम:।