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श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के प्रवचनांश

एक क्षीरकदम्ब नाम के गुरु हुए, वे गृहस्थ थे और उनके तीन शिष्य थे जिनमे एक उनका पुत्र पर्वत, एक राज पुत्र वसु, और एक श्रेष्ठि पुत्र जिसका नाम था नारद। गुरु ने सभी शिष्यों के लिए सुयोग्य शिक्षा दी और कहा- बेटा ज्ञान से अपने जीवन को उन्नत बनाना।

एक बार उसी मार्ग से एक निर्ग्रन्थ मुनिराज अपने शिष्यों के साथ निकले तो उनके शिष्यों ने मुनिराज से पूछा कि गुरुदेव इन चार में किनकी क्या गति है। गुरु महाराज बहत ज्ञानी थे, उन्होंने कहाँ इनमे से दो दुर्गति में जायेंगे और दो की सुगति होगी। क्षीरकदम्ब जो गुरु थे उन्होंने यह सुना तो जाकर पूछा। तो मुनिराज ने उन्हें सम्बोधन दिया जिसे सुनकर उन्हें वैराग्य हो गया और उन्होंने निर्ग्रन्थ मुनि दीक्षा धारण कर ली। जब पर्वत की माँ को यह बात पता चली तो वह भागी-भागी गयी और कहने लगी की ये क्या कर दिया आपने। तो उन्होंने कहा की संसार में कौन किसका है एक न एक दिन तो सबको ही अपने सम्बन्ध छोड़ने होते हैं। मरकर के छोड़े जाएँ इससे तो अच्छा है जीते जी छोड़कर अपना आत्म कल्याण कर लो। जब वे नहीं आये तो माँ और पुत्र दोनों अपना जीवन जीने लगे।

नारद अपने अपने घर चले गए और वसु योग्य गुरु से शिक्षा प्राप्त करने से सम्राट बन गया। इधर पर्वत आजीविका के लिए जगह-जगह यज्ञ कराने लगा। यज्ञ का अर्थ वैसे पूजा होता है परन्तु गुरु के द्वारा दी गयी शिक्षा में एक शब्द का अर्थ वह नहीं समझ पाया। गुरु महाराज ने कहा था ‘अजैर्यष्टव्यम्’ जिसका अर्थ है पूजा में अज का उपयोग करना चाहिए। अज का अर्थ होता है बकरा और अज का ही दूसरा अर्थ होता है चार साल पुराना धान्य। एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं – अनेकार्थी शब्द। गुरु महाराज ने बताया कि जो चार साल पुराना धान्य है उसमें अंकुरण नहीं होता इसलिए ऐसे धान्य का उपयोग यज्ञ में करना चाहिए। पर्वत बुद्धिहीन होने के कारण अज का अर्थ बकरा समझ बैठा। गुरु महाराज की शिक्षा को भूल ही गया। तो उसने बकरों से यज्ञ करवाना शुरू कर दिया।

जब नारद को यह पता चला तो उसने यह बात उसे समझायी कि तेरे पिता जी ने, गुरु महाराज ने अज का अर्थ तीन या चार साल पुराना धान्य बताया था। उसने घर आकर माँ को ये सब बताया और कहा कि माँ अगर मैंने ये करना छोड़ दिया तो अब लोग मेरी निंदा करेंगे तो माँ तू नारद को समझा दे। माँ ने नारद से कहा तो नारद बोला माँ अज का अर्थ गुरु जी ने तीन या चार साल पुराना धान्य बताया था और आपको विश्वास नहीं है तो वसु से पूछ लो। तो माँ वसु के पास गयी और पूछा तो उसने भी वही बताया जो नारद कह रहा था। तो माँ ने सुना तो कहा वसु तेरे गुरु ने तुझे शिक्षा तो दी थी पर तूने उन्हें गुरु दक्षिणा नहीं दी थी तो तू मुझे गुरु दक्षिणा दे दे। जब नारद तुमसे अज का अर्थ पूछने आये तो कह देना की अज का अर्थ बकरा है। ये तुम हमें गुरु दक्षिणा में वचन दो। अब वो राजा था तो वचन बद्ध होकर उसने कहा ठीक है माँ मैं ऐसा कह तो दूंगा पर गुरु जी ने ऐसा नहीं बताया था।

सभा लगी तो वसु से पूछे जाने पर उसने अज का अर्थ बकरा बताया और इतना कहते ही उसके सिंहासन का एक पाया जमीन में धंस गया। इस पर नारद ने समझाया कि देख तेरे बोल का कैसा प्रभाव पड़ा। तो भी वसु सत्य नहीं बोला और वह सिंहासन समेत ही जमीन में समा गया। वसु झूठ बोलने के कारण और पर्वत हिंसक यज्ञ का मार्ग दिखाने के कारण दोनों नरक गए। और नारद सत्य को स्वीकार कर और क्षीरकदम्ब दोनों स्वर्ग गए। कभी कभी शब्द का अर्थ सही तरह से समझ न पाने के कारण ऐसी दुर्घटनाएं घट जाती हैं और उस मार्ग पर चलने वाले लोग भी संसार में मिल जाते हैं।

बलि शब्द का अर्थ भी पशुओं को मार कर बलि देना नहीं बल्कि भोजन / नैवेद्य हुआ करता है।

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