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सुख तृप्ति में है


आदमी का हर कृत्य, हर कर्म लाभ के लिये है। आदमी सोता है तो लाभ के लिये। जागता है तो लाभ के लिये। खाता है तो लाभ के लिये। पीता है तो लाभ के लिये। हँसता है तो लाभ के लिये। रोता है तो लाभ के लिये। पढ़ता है तो लाभ के लिये। लड़ता है, झगड़ता है तो लाभ के लिये। दुकान करता है तो लाभ के लिये। नौकरी करता है तो लाभ के लिये। शादी करता है तो लाभ के लिये। बच्चे पैदा करता है तो लाभ के लिये। घर गहस्थी बनाता है तो लाभ के लिये। दौड़ धूप करता है तो लाभ के लिये, और जीता है तो लाभ के लिये। मरता है तो लाभ के लिये। यहाँ आदमी का सम्पूर्ण जीवन लाभ के लिये समर्पित है। अमूल्य जीवन लाभ के लिये समर्पित है। लाभ की आकांक्षा बुद्धि की विकलांगता का प्रमाण पत्र है।

लाभ में जीनेवाला सिर्फ बेहोशी में जीता है। बेहोश आदमी को नहलाओ तो मना नहीं करेगा। सुबह-सुबह घुमा लाओ तो मना नहीं करेगा। बिस्तर पे सुलाओ तो मना नहीं करेगा। क्रीम-पाउडर लगाओ तो मना नहीं करेगा। क्योंकि उसके पास विचार करने की क्षमता शक्ति है ही नहीं। इसी प्रकार जो लाभ में जीता है, वह भी कभी इतना विचार नहीं कर पाता, कि लाभ होने से क्या मिला। लाभ अतृप्ति को बढ़ाता है। आज तक कोई भी व्यापारी तृप्ति को प्राप्त नहीं हुआ। कोई भी दुकानदार तृप्ति को प्राप्त नहीं हुआ। जीवन भर लाभ की अंधी अतृप्ति में जीना ही आज मनुष्य की नियति हो गई है।

सुख लाभ में नहीं तृप्ति में है। लाभ के बाद जीवन में अलाभ का अलार्म बज सकता है। लाभ के बाद अलाभ की हरी झंडी मिल सकती है। लाभ के बाद अलाभ की आँधी आ सकती है। लाभ के बाद अलाभ से मिलन, साक्षात्कार हो सकता है, किन्तु तृप्ति के बाद अतृप्ति का आना संभव नहीं है। अतृप्ति के बाद तृप्ति आ सकती है, किन्तु तृप्ति के बाद अतृप्ति घी के बाद दूध, मुक्ति के बाद संसार में नियुक्ति असंभव है। इसलिये लाभ में नहीं अपितु तृप्ति में जिओ। लाभ के लिये नहीं तृप्ति के लिये जिओ।

सामायिक तृप्ति के लिये है। ध्यान तृप्ति के लिये है। समाधि तृप्ति के लिये है। त्याग तृप्ति के लिये है। ब्रह्मचर्य तृप्ति के लिये है। रत्नत्रय तृप्ति के लिये है। परमात्मा की पूजा, आराधना, उपासना यदि निष्काम भाव से की जाये, तो वह तृप्ति का कारण बन जाती है। इसलिये जीवन में अगर तृप्ति का अनुभव करना है। तो त्याग में जिओ। ध्यान में बैठो। सामायिक में लीन होओ। जीवन लाभ के साथ-साथ तृप्ति को भी उपलब्ध हो जायेगा।


Youtube/ Jinagam Panth Jain Channel

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