शांतिनाथ व्रत/शांति भक्ति व्रत विधि
!! Shantinath vrat/ shanti bhakti vrat vidhi
शांतिनाथ व्रत(शांति भक्ति व्रत)
परिचय-
श्री शांतिनाथ भगवान सोलहवें तीर्थंकर हैं, साथ ही पाँचवें चक्रवर्ती एवं बारहवें कामदेव भी हुए हैं। इस प्रकार ये भगवान तीन पद के धारक महान हुए हैं। श्री पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित शांतिभक्ति साधुगण एवं श्रावकगण सभी में प्रसिद्ध है। उस शांतिभक्ति का ही यह व्रत है। इसमें सोलह काव्य हैं वे सभी एक से एक महिमापूर्ण हैं। उन एक-एक काव्य का आश्रय कर यह व्रत करना चाहिए। इस व्रत के प्रसाद से स्वयं को शांति, सर्व व्याधियों का विनाश एवं सर्व कष्ट,संकट, आपदाओं का निवारण होगा। सर्वत्र मंगल होगा, घर में, परिवार में मंगल, क्षेम होगा, देश में सुभिक्ष होगा, राजा-प्रजा में धार्मिक भावनाएँ बनेंगी व बढ़ेंगी अत: यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण है। श्री पूज्यपाद स्वामी, जो कि हजार वर्ष पूर्व हुए हैं, एक समय उनकी नेत्र की ज्योति मंद हो गई, उसी क्षण उन्होंने शांतिनाथ चैत्यालय में बैठकर इस शांतिनाथ की भक्ति की रचना की, आठवें काव्य को पढ़ते ही ‘‘दृष्टिं प्रसन्नां कुरु’’ बोलते ही उनकी आँख की रोशनी वापस आ गई। इस वाक्य में श्लेषालंकार है कि हे भगवन्! आप मुझ पर अपनी दृष्टि प्रसन्न करो अथवा मुझ पर प्रसन्न होवो अर्थात् मेरी दृष्टि-नेत्र ज्योति, प्रसन्न-स्वच्छ-स्वस्थ-निर्मल करो। ऐसे दो अर्थ होते हैं।
व्रत विधि-
इस व्रत को शुक्ला अष्टमी से प्रारंभकर लगातार प्रत्येक मास की दो-दो अष्टमी ऐसे १६ अष्टमी तक यह व्रत करना चाहिए। अथवा खुली तिथि में कभी भी कर सकते हैं। व्रत की उत्तम विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार और जघन्य में एक बार शुद्ध भोजन करना एवं व्रत के दिन शांतिभक्ति का १६ बार या कम से कम एक बार पाठ करना है। व्रत पूर्ण कर उद्यापन में शांतिविधान करना, भगवान शांतिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराना, शांति भक्ति का १६ दिन अखंड पाठ करना आदि, अपनी शक्ति के अनुसार १६-१६ उपकरण मंदिर में भेंट करना आदि है। व्रत पूर्ण कर भगवान की चार कल्याणक भूमि हस्तिनापुर एवं निर्वाणभूमि सम्मेदशिखर की वंदना करना चाहिए।
व्रतों के मंत्र निम्न प्रकार हैं-
समुच्चय मंत्र-
ॐ ह्रीं जगदापद्विनाशनाय सर्वशांतिकराय श्रीशान्तिनाथाय नम:।
प्रत्येक १६ मंत्र-
१. ॐ ह्रीं संसारदु:खभीतभव्यगणशरण्याय श्रीशांतिनाथाय नम:।
२. ॐ ह्रीं सर्वविघ्नशांतिकराय श्रीशांतिनाथाय नम:।
३. ॐ ह्रीं प्रणतजनकष्टनिवारकाय श्रीशांतिनाथाय नम:।
४. ॐ ह्रीं स्तोत¸णां मृत्युंजयपदप्रदायकाय श्रीशांतिनाथाय नम:।
५. ॐ ह्रीं चरणाम्बुजस्तुतिकर्तृणां सर्वरोगविनाशकाय श्रीशांतिनाथाय नम:।
६. ॐ ह्रीं स्तवनप्रसादात् स्तोत¸णां अचिन्त्यसारसौख्यप्रदायकाय श्रीशांतिनाथाय नम:।
७. ॐ ह्रीं चरणकमलाश्रितजनसर्वपापप्रणाशकाय श्रीशांतिनाथाय नम:।
८. ॐ ह्रीं स्वपादपद्माश्रयिशान्त्यर्थिभाक्तिकानां दृष्टिप्रसन्नविधायकाय श्रीशांतिनाथाय नम:।
९. ॐ ह्रीं शीलगुणव्रतसंयमपात्राय श्रीशांतिनाथाय नम:।
१०. ॐ ह्रीं पंचमचक्रिषोडशतीर्थंकराय श्रीशांतिनाथाय नम:।
११. ॐ ह्रीं अशोकवृक्षाद्यष्टप्रातिहार्यसमन्विताय श्रीशांतिनाथाय नम:।
१२. ॐ ह्रीं सर्वगणाय स्तुतिपाठकाय मह्यं च परमशांतिकराय श्रीशांतिनाथाय नम:।
१३. ॐ ह्रीं शक्रादिभि: स्तुतपादपद्माय सततशान्तिकराय श्रीशांतिनाथाय नम:।
१४. ॐ ह्रीं संपूजक-प्रतिपालक-यतीन्द्रगण-देश-राष्ट्र-पुर-नृपतिगण-शांतिकराय श्रीशांतिनाथाय नम:।
१५. ॐ ह्रीं क्षेम-धार्मिकनृपति-समयसमयवृष्टिकारकाय व्याधिदुर्भिक्ष-चौरिमारिकष्टनिवारकाय सर्वसौख्यकरधर्मचक्रप्रवर्तकाय श्रीशांतिनाथाय नम:।
१६. ॐ ह्रीं केवलज्ञानभास्कर-जगत् शांतिकारकवृषभादि तीर्थंकर-समन्विताय श्रीशांतिनाथाय नम:।