ब्राह्मी लिपि भारतवर्ष की प्राचीनतम लिपि है। तीर्थंकर ऋषभदेव की ब्राह्मी और सुन्दरी दो पुत्रियाँ थीं। बाल्यावस्था में वे ऋषभदेव की गोद में जाकर बैठ गईं। ऋषभदेव ने उनके विद्याग्रहण का काल जानकर लिपि और अंकों का ज्ञान कराया। ब्राह्मी दायीं ओर और सुन्दरी बायीं ओर बैठी थी, ब्राह्मी को वर्णमाला का बोध कराने के कारण लिपि बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती है। सुन्दरी को अंक का बोध कराने के कारण अंक बायीं से दायीं ओर इकाई, दहाई……..के रूप में लिखे जाते हैं। इस लिपि का अभ्यास करने से भारत की अधिकांश लिपियों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ब्राह्मी लिपि एक वैज्ञानिक लिपि है। इसका प्रयोग वर्ण ध्वन्यात्मक है। इसको लिखने और बोलने में एकरूपता है। वर्तमान में भारतवर्ष में अंग्रेजी और उर्दू भाषाओं की लिपियों को छोड़कर समस्त लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं।