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मोह की शराब


मोह की मस्ती में जीने वालों को धर्म की बस्ती नहीं मिलती। मोह की मदिरा सबसे पुरानी है। मनुष्य मोह की शराब पीकर ही जन्म लेता है। संसारी प्राणी मोह की शराब पीकर चतुर्गति में जन्मता है। दुनियाँ में शराब पीकर मरने वाले लोग बहुत हैं। यह बात हर कोई जानता है, किन्तु शराब पीकर सारी दुनियाँ जन्म लेती है यह सभी को आश्चर्य में डालने वाली बात है। मोह की शराब का नशा संसारी प्राणी का कभी नहीं उतरता, क्योंकि मोह ब्राण्ड शराब सबसे ज्यादा नशीली है।

मोह धर्म का जन्मजात शत्रु है। सर्प और नेवला में मित्रता हो सकती है। सिंह और हिरण में मित्रता हो सकती है। लोमड़ी और सियार भी मैत्रीभाव को जन्म दे सकते हैं। प्रकाश और अंधकार भी मित्र हो सकते हैं किन्तु मोह औरधर्म में मित्रता त्रिकाल में भी नहीं हो सकती। मोह के कारण ही धर्म की आहूति दी जा रही है। मोह के स्वर धर्म के पियानों पर नहीं बजते। धर्म तो आत्मा का स्वभाव है। मोही आत्मस्वभाव की पहिचान नहीं कर पाता । स्वयं को भूलकर वनवासी सा जीवन मोह का फल है।

मोहभाव के कारण मनुष्य पर पदार्थों को अपना मानते हैं। पर पदार्थों के लिये लड़ते-झगड़ते है। पर पदार्थों को पाकर आनंदित होते हैं, किन्तु परवस्तु का संयोग जो क्षणिक है। आत्मस्वभाव से भिन्न है। मोही जीव उस भिन्नता की पहिचान नहीं कर पाते। मोह बेहोशी लाता है। मोह आत्मसत्ता से मिलने नहीं देता। मोह संसार की दरिया में डुबाता है। मोह संसार में आकर्षण पैदा करता है। मोह देह के काँटों पर सुलाता है। रिश्तों का बगीचा लगाता है। अपने साथियों के बिछुड़ने पर मोह आँसु बहाता है। मोह के कारण ही प्रत्येक जीवात्मा संसार में दुःखी है।

बीयर, रम, व्हिस्की, पीनवाले परिवार के हत्यारे हैं। समाज के शत्रु हैं, देश के दुश्मन हैं। क्योंकि शराब पीने वाले उच्छृखल होकर, बेहोशी में अपने परिवार तक उजाड़ देते हैं, किन्तु जो मोह की शराब पीकर झूम रहे हैं, वे अपनी आत्मा के दुश्मन हैं। जो अपना दुश्मन है, वह दूसरों का प्रेमी नही हो सकता। मोह के आंगन में राग-द्वेष की कंटीली झाड़ियाँ ही उगती हैं। जितने भी महापुरुष हुये पुराण पुरुष हुये। तीर्थंकर हुये। सभी ने मोह को छोड़ा।

मोह के बंधन को तोड़ा। तभी भगवत्ता का आनन्द अवतरित कर सके। मोह तो भगवत्ता पर कड़ा पहरा है। मोह बुद्धि को विकृत करता है। असत्य को सत्य का लिबास पहनाता है।


Youtube/ Jinagam Panth Jain Channel

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