मुक्तावली व्रत विधि
!! Muktavali vrat vidhi !!
मुक्तावली व्रत
मुक्तावली व्रत दो प्रकार का होता है-लघु और बृहत्। लघु व्रत में नौ वर्ष तक प्रतिवर्ष ९-९ उपवास करने होते हैं। पहला उपवास भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को, दूसरा आश्विन कृष्णा षष्ठी को, तीसरा आश्विन कृष्णा त्रयोदशी को, चौथा आश्विन शुक्ला एकादशी को, पाँचवाँ कार्तिक कृष्णा द्वादशी को, छठवाँ कार्तिक शुक्ला तृतीया को, सातवाँ कार्तिक शुक्ला एकादशी को, आठवाँ मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को और नौवाँ मार्गशीर्ष शुक्ला तृतीया को करना चाहिए। मुक्तावली व्रत में ब्रह्मचर्य सहित अणुव्रतों का पालन करना चाहिए। रात में उपवास के दिन जागरण कर धर्मार्जन करना चाहिए। ‘‘ॐ ह्रीं वृषभजिनाय नम:’’ इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
बृहत् मुक्तावली व्रत ३४ दिनों का होता है। इस व्रत में प्रथम एक उपवास कर पारणा, पुन: दो उपवास के पश्चात् पारणा, तीन उपवास के पश्चात् पारणा, चार उपवास के पश्चात् पारणा तथा पाँच उपवास के पश्चात् पारणा करनी चाहिए। अब चार उपवास के पश्चात् एक पारणा, तीन उपवास के पश्चात् पारणा, दो उपवास के पश्चात् पारणा एवं एक उपवास के पश्चात् पारणा करनी होती है। इस प्रकार कुल २५ दिन उपवास तथा ९ दिन पारणाएँ, इस प्रकार कुल ३४ दिनों तक व्रत किया जाता है। इस व्रत में लगातार दो, तीन, चार और पाँच उपवास करने होते हैं, दिन धर्मध्यानपूर्वक बिताने होते हैं तथा रात को जागकर आत्मचिंतन करते हुए व्रत की क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं। इस व्रत का फल विशेष बताया गया है। इस प्रकार निरवधि व्रतों का अपने समय पर पालन करना चाहिए, तभी आत्मोत्थान हो सकता है। बृहद् मुक्तावली में ‘‘ॐ ह्रां णमो अरहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं ॐ ह्रूं णमो आइरियाणं ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं ॐ ह्र: णमो लोए सव्वसाहूणं’’ इस मंत्र का जाप करना चाहिए। बृहद् मुक्तावली और लघु मुक्तावली व्रत के मध्य में एक मध्यम मुक्तावली व्रत भी होता है। यह ६२ दिन में पूर्ण होता है, इसमें ४९ उपवास और १३ पारणाएँ होती हैं। मध्यम मुक्तावली व्रत में भी बृहद् मुक्तावली व्रत के मंत्र का जाप करना चाहिए। पारणा के दिन तीनों ही प्रकार के मुक्तावली व्रत में भात ही लेना चाहिए।