डॉ. विक्रम साराभाई

 

डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई भारत के प्रमुख जैन वैज्ञानिक थे। इन्होंने ८० वैज्ञानिक शोधपत्र लिखे एवं ४० संस्थान खोले। आपने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थान दिलाया। लेकिन इसके साथ—साथ उन्होंने अन्य क्षेत्रों जैसे वस्त्र, भेषज, आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रानिक्स और अन्य अनेक क्षेत्रों में भी बराबर का योगदान दिया। आपके व्यक्तित्व का सर्वाधिक, उल्लेखनीय पहलू आपकी रुचि की सीमा और विस्तार तथा ऐसे तौर—तरीके थे जिनमें उन्होंने अपने विचारों को संस्थाओं में परिर्वितत किया। सृजनशील, वैज्ञानिक, सफल और दूरदर्शी उद्योगपति, उच्चकोटि के प्रवर्तक, महान् संस्था निर्माता, अलग किस्म के शिक्षाविद्, कला पारखी, सामाजिक परिवर्तन के सच्चे ठेकेदार, अग्रणी प्रबंध प्रशिक्षक आदि जैसी अनेक विशेषताएँ उनके व्यक्तित्व में समाहित थीं। उनकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे एक ऐसे उच्चकोटि के इन्सान थे, जिनके मन में दूसरों के प्रति असाधारण सहानुभूति थी। वह एक ऐसे व्यक्ति थे कि जो भी उनके सम्पर्क में आता उनसे प्रभावित हुए बिना न रहता। डॉ. साराभाई में एक प्रवर्तक वैज्ञानिक, भविष्य द्रष्टा, औद्योगिक प्रबंधक और देश के आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए संस्थाओं के परिकाल्पनिक निर्माता का अद्भुत संयोजन था। उनमें अर्थशास्त्र और प्रबंध कौशल की अद्वितीय सूझ थी। उन्होंने किसी समस्या को कभी कम करके नहीं आंका। उनका अधिक समय उनकी अनुसंधान गतिविधियों में गुजरा और अपनी असामायिक मृत्यु पर्यन्त अनुसंधान का निरीक्षण करना जारी रखा।

उनके निर्देशन में १९ लोगों ने अपनी डाक्ट्रेट का कार्य सम्पन्न किया। डॉ. साराभाई भारत में भेषज उद्योग के भी अग्रदूत थे। वे भेषज उद्योग से जुड़े उन चंद लोगों में से थे। जिन्होंने इस बात को पहचाना कि गुणवत्ता के उच्चतम मानक स्थापित कर उन्हें हर हालत में बनाए रखा जाना चाहिए। यह साराभाई ही थे, जिन्होंने भेषज उद्योग में इलेक्ट्रॉनिक आंकड़ा प्रसंस्करण और संचालन अनुसंधान तकनीकी को लागुू किया। उन्होंने भारत के भेषज उद्योग को आत्मनिर्भर बनाने और अनेक दवाईयों और उपकरणों को देश में ही बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। साराभाई देश में विज्ञान की शिक्षा की स्थिति के बारे में बहुत चिन्तित थे। इस स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्होंने सामुदायिक विज्ञान केन्द्र की स्थापना की थी। डॉ. साराभाई सांस्कृतिक गतिविधियों में भी गहरी रुचि रखते थे। वे संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्त्व, ललित कलाओं और अन्य अनेक क्षेत्रों से जुड़े रहे। डॉ. साराभाई का कोवलम् तिरूवनंतपुरम् (केरल) में दिसम्बर, १९७१ को देहांत हो गया। ऐसे महान् वैज्ञानिक के सम्मान में तिरूवनंतपुरम् में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाउंचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बद्ध अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा। डॉ. विक्रम साराभाई को पद्मभूषण (१९६६) और मरणोपरान्त पद्म विभूषण (१९७२) अलंकारों से सम्मानित किया गया है।