पुण्यास्रव व्रत विधि


संसार में प्रत्येक अच्छे या बुरे कार्यों को करने में सर्वप्रथम संरंभ, समारंभ और आरंभ क्रियायें होती हैं। मन, वचन और काय से प्रवृत्ति होती है जो कि कृत, कारित और अनुमोदना रूप से ही होती है। प्रत्येक के साथ क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषायें अवश्य ही रहती हैं। इसलिये प्रथम ही संरंभ आदि तीन को मन आदि तीन से गुणा करके—३²३·९ भेद हुये पुन: इन नव को कृत आदि से गुणा किये तो ९²३·२७ भेद हुए, अनंतर चार कषाय से गुणा करने से २७²४·१०८ भेद हो जाते हैं। इन्हीं पापास्रवों को रोकने एवं पुण्यास्रव को बढ़ाने हेतु माला में १०८ दाने होते हैं। इन १०८ व्रतों को करने से महान सातिशय पुण्य कर्मों का आस्रव होता है पुन: परंपरा से संपूर्ण आस्रव का अभाव होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। लौकिक फल तो संसार के चक्रवर्ती आदि के वैभव, इंद्र पद आदि तो सहज ही संभव हैं। अत: यह व्रत अवश्य ही करना चाहिए। व्रत के दिन अर्हंत भगवान का या चौबीसी प्रतिमा का या किन्हीं भी तीर्थंकर का पंचामृत अभिषेक करके चौबीसी पूजा और पुण्यास्रव पूजा अवश्य करना चाहिए। उद्यापन में यथाशक्ति प्रतिमा विराजमान करना,१०८ ग्रंथों का दान देना आदि करना चाहिए तथा पुण्यास्रव विधान करना चाहिए। संरंभ—हिंसादि करने का मन में विचार करना। समारंभ—हिंसादि कर्मों के करने का अभ्यास करना। आरंभ—हिंसादि क्रियाओें को प्रारंभ कर देना। कृत—स्वयं करना। कारित—दूसरों से कराना। अनुमोदना या अनुमति—दूसरों के द्वारा िंहसादि क्रियाओं के करने को अच्छा कहना—समर्थन करना। आगे मन, वचन, काय और क्रोध, मान, माया और लोभ के अर्थ स्पष्ट हैं। इसका समुच्चय मंत्र निम्न प्रकार है—
जाप्य—ॐ ह्रीं कर्मास्रवरहितानन्तकेवलिभ्यो नम:।
यह व्रत इच्छानुसार अष्टमी-चतुर्दशी आदि किन्हीं भी तिथि को किया जा सकता है। इसमें १०८ व्रत करने होते हैं। उत्तम विधि उपवास, मध्यम एक बार अल्पाहार और जघन्य में एक बार शुद्ध भोजन करना चाहिए।
प्रत्येक व्रत के पृथक्-पृथक् मंत्र-
१. ॐ ह्रीं क्रोधकृतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२. ॐ ह्रीं क्रोधकारितमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४. ॐ ह्रीं क्रोधकृतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५. ॐ ह्रीं क्रोधकारितमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७. ॐ ह्रीं क्रोधकृतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८. ॐ ह्रीं क्रोधकारितमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०. ॐ ह्रीं मानकृतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
११. ॐ ह्रीं मानकारितमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१२. ॐ ह्रीं मानानुमतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१३. ॐ ह्रीं मानकृतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१४. ॐ ह्रीं मानकारितमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१५. ॐ ह्रीं मानानुमतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१६. ॐ ह्रीं मानकृतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१७. ॐ ह्रीं मानकारितमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१८. ॐ ह्रीं मानानुमतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१९. ॐ ह्रीं मायाकृतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२०. ॐ ह्रीं मायाकारितमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२१. ॐ ह्रीं मायानुमतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२२. ॐ ह्रीं मायाकृतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२३. ॐ ह्रीं मायाकारितमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२४. ॐ ह्रीं मायानुमतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२५. ॐ ह्रीं मायाकृतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिन नम:।
२६. ॐ ह्रीं मायाकारितमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२७. ॐ ह्रीं मायानुमतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२८. ॐ ह्रीं लोभकृतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
२९. ॐ ह्रीं लोभकारितमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३०. ॐ ह्रीं लोभानुमतमन:संरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३१. ॐ ह्रीं लोभकृतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३२. ॐ ह्रीं लोभकारितमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३३. ॐ ह्रीं लोभानुमतमन:समारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३४. ॐ ह्रीं लोभकृतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३५. ॐ ह्रीं लोभकारितमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३६. ॐ ह्रीं लोभानुमतमन:आरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३७. ॐ ह्रीं क्रोधकृतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३८. ॐ ह्रीं क्रोधकारितवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
३९. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४०. ॐ ह्रीं क्रोधकृतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४१. ॐ ह्रीं क्रोधकारितवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४२. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४३. ॐ ह्रीं क्रोधकृतवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४४. ॐ ह्रीं क्रोधकारितवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४५. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४६. ॐ ह्रीं मानकृतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४७. ॐ ह्रीं मानकारितवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४८. ॐ ह्रीं मानानुमतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
४९. ॐ ह्रीं मानकृतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५०. ॐ ह्रीं मानकारितवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५१. ॐ ह्रीं मानानुमतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५२. ॐ ह्रीं मानकृतवचनआरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५३. ॐ ह्रीं मानकारितवचनआरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५४. ॐ ह्रीं मानानुमतवचनआरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५५.ॐ ह्रीं मायाकृतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५६. ॐ ह्रीं मायाकारितवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५७. ॐ ह्रीं मायानुमतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५८. ॐ ह्रीं मायाकृतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
५९. ॐ ह्रीं मायाकारितवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६०. ॐ ह्रीं मायानुमतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६१. ॐ ह्रीं मायाकृतवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६२.ॐ ह्रीं मायाकारितवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६३.ॐ ह्रीं मायानुमतवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६४.ॐ ह्रीं लोभकृतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६५. ॐ ह्रीं लोभकारितवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६६. ॐ ह्रीं लोभानुमतवचनसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६७. ॐ ह्रीं लोभकृतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६८. ॐ ह्रीं लोभकारितवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
६९. ॐ ह्रीं लोभानुमतवचनसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७०. ॐ ह्रीं लोभकृतवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७१. ॐ ह्रीं लोभकारितवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७२. ॐ ह्रीं लोभानुमतवचनारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७३. ॐ ह्रीं क्रोधकृतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७४. ॐ ह्रीं क्रोधकारितकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७५. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७६. ॐ ह्रीं क्रोधकृतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७७. ॐ ह्रीं क्रोधकारितकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७८. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
७९. ॐ ह्रीं क्रोधकृतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८०. ॐ ह्रीं क्रोधकारितकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८१. ॐ ह्रीं क्रोधानुमतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८२. ॐ ह्रीं मानकृतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८३. ॐ ह्रीं मानकारितकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिन नम:।
८४. ॐ ह्रीं मानानुमतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८५. ॐ ह्रीं मानकृतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८६. ॐ ह्रीं मानकारितकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८७. ॐ ह्रीं मानानुमतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८८.ॐ ह्रीं मानकृतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
८९. ॐ ह्रीं मानकारितकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९०. ॐ ह्रीं मानानुमतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९१. ॐ ह्रीं मायाकृतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९२. ॐ ह्रीं मायाकारितकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९३. ॐ ह्रीं मायानुमतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९४. ॐ ह्रीं मायाकृतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९५. ॐ ह्रीं मायाकारितकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९६. ॐ ह्रीं मायानुमतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९७. ॐ ह्रीं मायाकृतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९८. ॐ ह्रीं मायाकारितकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
९९.ॐ ह्रीं मायानुमतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१००. ॐ ह्रीं लोभकृतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०१. ॐ ह्रीं लोभकारितकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०२. ॐ ह्रीं लोभानुमतकायसंरंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०३. ॐ ह्रीं लोभकृतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०४. ॐ ह्रीं लोभकारितकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०५. ॐ ह्रीं लोभानुमतकायसमारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०६. ॐ ह्रीं लोभकृतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०७. ॐ ह्रीं लोभकारितकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।
१०८. ॐ ह्रीं लोभानुमतकायारंभमुक्ताय अर्हत्परमेष्ठिने नम:।