श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के प्रवचनांश
मैं 2006 में नेमावर स्थान में था। वहाँ एक जैन स्कूल चलता है और एक जैन विद्वान उस स्कूल में टीचर थे। वहाँ जैन-अजैन सभी बच्चे पढ़ते हैं। तो जो जैन विद्वान टीचर थे उन्होंने एक दिन उस क्लास के बच्चों को एक नियम दिया कि 15 दिन के लिये रात्रि भोजन का त्याग करना है और उन्होंने रात्रि भोजन के क्या-2 दोष हैं वो दोष बताये और रात्रि भोजन नहीं करने के क्या गुण होते हैं वो भी बताया। बच्चों ने त्याग कर दिया।
उस क्लास में एक मुस्लिम बच्चा था, उसके घर में माँ को पता चला तो माँ ने आकर उन सर से कहा कि आपने बहुत अच्छा संस्कार दिया है, मेरा बच्चा अब रात को भोजन नहीं कर रहा है, उसने बताया कि 15 दिन के लिये त्यागा है। अब वो जैन विद्वान प्रसन्न है कि माँ ने आकर के अगर संस्कार की प्रशंसा कर दी हो तो उन्हें भी प्रसन्नता हुई । बोले मुझे खुशी है कि आप विद्यालय में अच्छी बातें सिखाते हैं।
दूसरे दिन एक जैन परिवार आया और मुझसे बोला कि पंडित जी! आप ये क्या कर रहे हैं यहाँ पर बच्चों को नियम देते रहते हैं ? अब हमारा बच्चा ये आपने क्या रात्रि भोजन का त्याग करा दिया है, अभी तक हमारा बच्चा हमारे साथ बैठकर के भोजन करता था अब वह हमारे साथ बैठकर भोजन नहीं करता।
पण्डित जी ने मुझे यह घटना बतायी बोले देखिये जिस परिवार में वो संस्कार यद्यपि नहीं है फिर भी उस माँ ने आकर अपने बच्चे के लिये प्रसन्नता व्यक्त की और जिस जैन परिवार का यह संस्कार कुलाचार के रूप में है वो जैन माता-पिता ने आकर के मेरे से शिकायत लगायी कि आप ये क्या नियम दे रहे हैं, अब मेरा बेटा हमारे साथ बैठ के भोजन नहीं करता। माने तुम भी रात्रि में भोजन करते हो और बच्चों को भी वही संस्कार दे रहे हो। घर में हमेशा कुलाचार की चर्चा होनी चाहिये तब कुल का यश जीवित रहता है।
और जिन कुलों में कुल की महत्ता, कुल के आदर्श, और कुलाचार की कभी चर्चा नहीं होती वे कुलवंश कुछ समय के लिये ही जीवित हैं, कुछ समय बाद उन कुलों में संस्कार समाप्त हो जायेंगे। यश, प्रतिष्ठा धूमिल हो जायेगी।
गुरु वाणी सुनने के लिये-
पूर्ण प्रवचन सुनने के लिये- Youtube/Jinagam Panth Jain Channel