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देह पुदगल परमाणुओं का संकलन


भक्ति आत्मा का स्नान है। देह का स्नान जल से होता है। देह को स्नान कराने से आत्मा स्वच्छ नहीं होती। देह का स्नान परमात्मा की आराधना के लिये होना चाहिये। उद्देश्य के अनुसार भाव निर्मित होते हैं। भावों के अनुसार आत्मा पुण्य-पाप कर्मों को बाँधता है। देह की स्वच्छता के लिये स्नान करना पाप है, परमात्मा की आराधना के लिये देह को स्नान कराना पुण्य है। परमात्म भक्ति से इस लोक में तथा परलोक में सुख की प्राप्ति होती है।

भक्ति आत्मशांति तथा विकल्पमुक्ति का उत्तम उपाय है। भक्ति से मन प्रसन्न होता है, तथा देह के परमाणु विशुद्ध होते हैं। मनुष्य की देह पुद्गल परमाणुओं का संकलन है। प्रभु भक्ति से देह के परमाणु मंत्रित होते हैं। जिससे बीमारियाँ आक्रमण नहीं कर पातीं। संतजन परमात्म भक्ति में संलग्न रहते हैं, जिससे उनकी देह के परमाणु स्वस्थ ऊर्जा को धारण करते हैं। जब भी कोई बीमारी आक्रमण करती है, तो वह शुद्ध परमाणु ऊर्जा उसे ठहरने नहीं देती। इसीलिये साधुजन औषधि का भी प्रायः त्याग कर देते हैं और परमात्म भक्ति रूपी औषधि से आत्मा को निर्मल तथा देह को रोग प्रतिरोधी बनाते हैं।

संत के चरणस्पर्श करने से उनकी विशुद्ध ऊर्जा का संचार होता है। जो हमें आत्मशांति प्रदान करते हैं। संत का भक्तिमय जीवन स्वपर कल्याण का हेतु है। परम आनन्द का आधार है। संसार का नाश करने वाला है। भक्ति से आत्म गुणों की प्राप्ति गुणात्मक रूप में होती है। भक्ति का दीप जब तक जलेगा, आलोक बाँटता ही रहेगा। भक्ति का संगीत जब तक बजता रहेगा आत्मा और मन को शुभ विचारों से पवित्र करता रहेगा।

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