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दुनियाँ का सबसे बड़ा न्यायाधीश


अच्छे कर्म ही हमारे सौभाग्य का निर्माण करते हैं। हमारा भाग्य कोई दूसरा नहीं लिखता। हम ही अपना भाग्य निर्मापित करते हैं। जब हम अच्छे कर्म करते हैं, तो जीवन में उन्नति होती है। जब हम अच्छे कर्म नहीं करते, तो जीवन में उन्नति रुक जाती है। जब हम बुरे कर्म करते हैं, तो जीवन में अवनति होना शुरु हो जाती है। जब हम बुरे कर्म नहीं करते, तो हमारी अवनति रुक जाती है। ___ चोरी करने वाला यदि चौर्यकार्य में सफलता को प्राप्त होता है, तो इसको देखकर कभी चौर्यकार्य में उत्सुक मत होना। चोरी एक अशुभ कार्य है। समय आने पर उसका परिणाम दुःख है। धर्म कार्य को करने वाला धर्मात्मा यदि अपने कार्य में असफल भी हुआ है, तो उसके देखकर धर्म से मुख मत मोड़ना। धर्म करना एक शुभकार्य है। सच तो ये है, कि चोरी में सफलता भी जीवन में असफलता है, और धर्म कार्य में असफलता आने पर भी जीवन में सफलता है। धर्म करने का परिणाम सुख प्राप्ति है।

कर्म दुनियाँ का सबसे बड़ा न्यायाधीश है। कर्म कभी ऊँच-नीच का भेद नहीं करता। कर्म तो भावों के अनुरूप फल देता है। कर्म के लिये कभी रिश्वत नहीं दी जाती। कर्म कभी रिश्वत को स्वीकारता भी नहीं है। कौन गरीब कौन अमीर, इस बात से कर्म को कोई अपेक्षा नहीं होती। हमें अपने भावों को पवित्र रखना चाहिये। जिससे कर्म दुःखदायी न हों। हमारे शुभ-अशुभ परिणाम ही सुख-दुःख को निमन्त्रण देते हैं।


Youtube/ Jinagam Panth Jain Channel

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