ज्येष्ठ जिनवर व्रत


ज्येष्ठकृष्ण पक्षे प्रतिपदि ज्येष्ठशुक्ले प्रतिपदि चोपवास:,
आषाढ़कृष्णस्य प्रतिपति चोपवास:,
एवमुपवासत्रयं करणीयम्,
ज्येष्ठमासस्यावशेषदिवसेष्वेकाशनं करणीयम्,
एतद्व्रतं ज्येष्ठजिनवरव्रतं भवति।
ज्येष्ठप्रति-पदामारभ्याषाढकृष्णाप्रतिपत् पर्यन्तं भवति।

अर्थ-

ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदा, ज्येष्ठशुक्ला प्रतिपदा और आषाढ़ शुक्ला प्रतिपदा, इन तीनों तिथियों में तीन उपवास करने चाहिए। ज्येष्ठ मास के शेष दिनों में एकाशन करना होता है। इस व्रत का नाम ज्येष्ठ जिनवर व्रत है। यह ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदा से आरंभ होता है और आषाढ़ कृष्णा प्रतिपदा को समाप्त होता है।

विवेचन

ज्येष्ठजिनवर व्रत ज्येष्ठ महीने में किया जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदा से प्रारंभ होता है और आषाढ़ कृष्णा प्रतिपदा को समाप्त होता है। इसमें प्रथम ज्येष्ठवदी प्रतिपदा को प्रोषध किया जाता है, पश्चात् कृष्ण पक्ष के शेष १४ दिन एकाशन करते हैं। पुन: ज्येष्ठ सुदी प्रतिपदा को उपवास और शेष १४ दिन एकाशन या आषाढ़ वदी प्रतिपदा को उपवास कर व्रत की समाप्ति कर दी जाती है। ज्येष्ठ जिनवर व्रत में मिट्टी के पाँच कलशों से प्रतिदिन भगवान आदिनाथ का अभिषेक करना चाहिए। ‘ॐ ह्रीं श्रीज्येष्ठजिनाधिपतये नम: कलशस्थापनं करोमि’ इस मंत्र को पढ़कर कलशों की स्थापना की जाती है। पाँच कलशों में से चार कलशों द्वारा अभिषेक स्थापन के समय ही किया जाता है और एक कलश से जयमाल पढ़ने के अनन्तर अभिषेक होता है। इस व्रत में ज्येष्ठ जिनवर की पूजा की जाती है। ‘ॐ ह्रीं श्रीऋषभजिनेन्द्राय नम:’ इस मंत्र का जाप करना होता है। ज्येष्ठ मासभर तीनों समय सामायिक करना, ब्रह्मचर्य का पालन एवं शुद्ध और अल्प भोजन करना आवश्यक है।