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ज्ञान दृष्टि से सच्चा सुख


ज्ञान दृष्टि से अज्ञान का नाश होता है अज्ञान ही दुःख का मूल कारण है। अज्ञान का समाप्त हो जाना ही सच्चा सुख है। अज्ञान के कारण ही मनुष्य और पशु को समान कह दिया जाता है, और मजे की बात ये है, कि अज्ञानी मनुष्य को पशु तो कहा जाता है किन्तु पशु को मनुष्य की उपमा नहीं दी जाती है।

ज्ञान से ही हमें आत्मा का बोध होता है। ज्ञान आत्मा के सम्पूर्ण प्रदेशों में समाया हुआ है। आत्मज्ञान का जागरण करने के लिये हमें आत्मज्ञानी गुरुजनों और शास्त्रों की विनय और अध्ययन को प्राप्त होना पड़ता है। जो आत्मज्ञान, चारित्र को उपलब्ध हो जाता है। वह परमसुख बन जाता है। चारित्रहीन ज्ञान मात्र दिमाग की कसरत है। चारित्र सहित ज्ञान ही मोक्ष का परम सौंदर्य प्रदान करता है। सम्यग्ज्ञान से हित-अहित का विवेक जागता है। सम्यग्ज्ञान की ज्योति हमारा मार्ग ही नहीं अपितु मंजिल का भी दर्शन कराती

मौत का अंधकार जीवन में पदार्पण करे, उसके पूर्व आत्मज्ञान का मंगलदीप प्रज्ज्वलित कर लेना चाहिये। रोशनी साथ हो, तो अंधकार कभी भूलकर भी नहीं आता। जीवन जीने का नाम संसार है, और सुखी जीवन जीते रहने का नाम मोक्ष । ज्ञान का सुदीप हमें बुराईयों से बचाता है, चारित्र का दीप हमें सद्मार्ग पर ले जाता है। सम्यग्दर्शन का दीप हमें आस्था से चलायमान नहीं होने देता। जहाँ सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों ही दीप एक हो जाते हैं, वहाँ पर ही परमात्मा का दर्शन होता है।


Youtube/ Jinagam Panth Jain Channel

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