ज्ञान का अहंकार
अज्ञान उतना खतरनाक नहीं होता जितना ज्ञान का अहंकार खतरनाक है। अज्ञानी इस बात को स्वीकार कर लेता है, कि हमें कुछ समझ नहीं। हमारे अंदर बुद्धि, विवेक, ज्ञान नहीं। अज्ञानी की यह समझ ही ज्ञान प्राप्ति की गहन प्यास बन जाती है। अज्ञानी ही ज्ञान की उपलब्धि करता है। ज्ञान का अहंकार करने वाला ज्ञानी वास्तव में अज्ञानी है, और मजे की बात ये है कि ज्ञान का अहंकार मनुष्य को ज्ञानी बनाने में बहुत बड़ी बाधा है।
इस दुनियाँ में दो प्रकार के लोग होते हैं कुछ लोग सत्य को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं। सत्य को गुलाम और स्वयं को मालिक बनाना चाहते हैं। जबकि सत्य को मालिक बनाकर ही स्वयं को मालिक बनाया जा सकता है। कुछ लोग सत्य के अनुसार चलना चाहते हैं। सत्य जहाँ ले जाये वहाँ जाने को राजी होते हैं। सत्य के प्रति यह समर्पण ही परम सत्य को निमंत्रण है। सत्य के अनुसार चलने वाले ही निर्वाण को प्राप्त होते हैं। सत्य को अपने अनुसार चलाने वाले अपने को वकील बना रहे हैं। वकील की शरण में जो भी पहुँचता है, वकील उसे आश्वस्त करता है, कि तुम्हें जिताऊँगा। वकील सत्य की काँट-छाँट करता है। अपने शरणागत के पक्ष में कानून को खड़ा करता है। ऐसा ज्ञान सत्य के अनुसार नहीं अपितु सत्य को अपने अनुसार चलाता है। यह ज्ञान आत्मा के पतन का कारण है। आत्मोन्नति के लिये सत्य को अपना साथी बनाना होगा।
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