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जिंदगी परमात्मा की अमानत


जिंदगी परमात्मा की अमानत है। अगर हम अपना जीवन परमात्मा को समर्पित कर दें, तो जिंदगी में खुशहाली आपोआप प्रकट हो जायेगी। जैनदर्शन में परमात्मा कर्ता-धर्ता-हर्ता नहीं है, अपितु तू स्वयं परमात्मा है, अर्थात प्रत्येक जीवात्मा में परमात्मा होने की शक्ति विद्यमान है, अगर आत्मा स्वयं अपने परमात्मा को समर्पित हो जाये, तो आदमी की जिंदगी से दुःख का नामोनिशां ही समाप्त हो जायेगा। सच्चे देव-सच्चे शास्त्र और सच्चे गुरु तो निमित्तमात्र हैं, परमात्मा होने का उपादान तो आत्मा में छिपा है। निमित्त और उपादान दोनों का मिलन होते ही परमात्मा का निजघट में अवतरण होना प्रारंभ हो जाता है। अतः हम अपना जीवन अपने निज परमात्मा को समर्पित करें, जिससे आत्मानंद प्रकट हो सके।

साधन के अभाव में कभी भी साध्य की निष्पत्ति नहीं होती। साधन ही साध्य को उपलब्ध कराता है। कारण-समयसार ही कार्य-समयसार को उपलब्ध कराता है। व्यवहार संयम कारण है और निश्चय संयम कार्य है। साधन की उपादेयता भी तभी तक है जब तक कि साधक अवस्था है साध्य की अवस्था में साधन की उपादेयता नहीं रहती। गन्ना तभी तक अपादेय है जब तक रस रूप अवस्था प्राप्त नहीं होती, किन्तु गन्ने से रस के प्राप्त हो जाने पर गन्ने की उपादेयता नहीं रहती। गन्ना साधन है और रस साध्य है। साध्य की सिद्धि में अनेक साधन होते हैं। एक साधन के भी अभाव में कभी साध्य अवस्था उद्घाटित नहीं होती। परमात्मा की प्राप्ति में जितने भी साधन हैं वह हमें स्वयं खोजने होगें। सच तो यह है परमात्मा हमसे दूर नहीं है, सिर्फ साधन का अभाव है। यदि साधन प्राप्त हो जायें, तो परमात्मा रूप साध्य की प्राप्ति होने में देर नहीं है। मिट्टी में घड़े होने की शक्ति है सिर्फ साधन प्राप्त हो जाये।

आत्मा अज्ञान दशा में अपनी चैतन्य शक्ति को भूल बैठा है। जिससे पर वस्तुओं को पाकर हर्ष-विषाद करता हुआ दुर्गति का पात्र बन रहा है। प्रभु होकर भी बाह्र प्रभुता के लिये पागल बना हुआ है। भीतर यदि एक बार भी झाँककर देखले, तो प्रभुता का नशा उतर जायेगा, प्रभु का स्वरूप प्रकट हो जायेगा। जीवन को प्रेम करने वाला ही प्रभुता का त्याग कर सकता है, लेकिन अक्सर लोग जीवन को समझ नहीं पाते, इसी कारण प्रभुता के लिये जिंदगी बरबाद कर देते हैं सच तो ये है कि लघुता ही जिंदगी का अहसास है और प्रभुता जिंदगी की बरबादी।


Youtube/ Jinagam Panth Jain Channel

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