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श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के 16/01/2021 के प्रवचनांश

 

एक संत किसी रास्ते से जा रहा है। उनका शिष्य भी उनके साथ जा रहा है। सामने से एक उद्दण्ड बालक निकला जिसके हाथ में एक लाठी थी। जैसे ही वह संत के करीब आया उसने वह लाठी संत की पीठ पर दे मारी। जिस समय उसने वह लाठी संत की पीठ पर मारी उसके हाथ से वह लाठी छूट गयी। संत के साथ जो उनका शिष्य था उसकी दृष्टि उस लाठी पर पड़ी। उस उद्दण्ड बालक ने देखा कि शिष्य की दृष्टि लाठी पर है, हो सकता है ये अभी लाठी उठाये और और अभी मेरे को उस लाठी से पीटने लग जाये तो घबरा कर भागने लगा। संत जी ने उसे भागते हुए देखा तो थोड़ा सोच में पड़ गए फिर एकदम से देखा और बोले अरे सुन तो जरा कहाँ भाग रहा है ? अपनी लाठी तो लेते जा। शिष्य गुरु जी की ओर देखने लगा। गुरुदेव ! समझ नहीं आ रहा है उसने आपको लाठी से पीट दिया और आप हैं कि बड़े प्यार से, बड़े स्नेह से, बड़ा वात्सल्य दिखाते हुए उससे ये कह रहे हैं कि अपनी लाठी तो लेता जा। गुरुदेव ! एक बात कहूँ ? गुरु जी ने कहा बेटा बोलो। बोला इतना स्नेह प्यार वात्सल्य तो मैंने कभी अपने प्रति भी नहीं देखा जबकि मैं आपकी रोज सेवा करता हूँ और उसने इतनी उद्दण्डता दिखाई फिर भी इतना प्रेम नज़र आ रहा है। आपको चाहिए था की लाठी लेते और उसके पीछे दौड़ते।।

गुरु जी ने कहा- “बेटा ! जो तू सोच रहा है वह विचार तो मेरे अंदर भी पैदा हुआ था पर अगले ही क्षण मैं सोचने लगा- कि जिस वृक्ष के नीचे मैं खड़ा हआ हँ यदि इसकी एक डाली टूट कर मेरे ऊपर गिर जाती तो क्या मैं ऐसा ही व्यवहार करता। इसके साथ तो ऐसा बर्ताव नहीं करता न। जब मैं उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करता तो इसके साथ क्यों करूँ?” उद्दण्ड बालक ने जब यह शब्द सुने तो वह रुक गया, अजीब आदमी मालूम पड़ता है कि मैंने इसे मारा फिर भी इतने प्यार से कह रहा है कि लाठी लेता जा।

गुरु जी ने लाठी उठायी और कहा अगर तू डर रहा है तो ये ले और लाठी उसके पास फेक दी। उस बालक को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह संत जी के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा। संत जी बोले बेटा अगर तुझे अपराध बोध हआ है तो ऐसा व्यवहार किसी के साथ मत करना। वह गुरुदेव से ऐसा कभी ना करने का नियम लेकर वहां से चला गया। शिष्य से गुरु जी ने बोला कि बेटा ! स्नेह, प्यार, वात्सल्य, दिया नहीं जाता, इसे तो जिया जाता है। तेरे अंदर आज भी अपने गुरु के प्रति शिकायत का भाव है तो तू बता तुझे अपने गुरु के वात्सल्य का अनुभव कैसे हो?

साधु की संगति को प्राप्त करके क्या आप कभी अपने अंदर की बुराइयाँ त्यागने का संकल्प करते हैं?

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