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साधना की सफलता, ब्रह्मचर्य के होने पर ही हो सकती है, बिना ब्रह्मचर्य के सारी साधना और तपस्या व्यर्थ है। धर्म मार्ग में – एवं लौकिक जीवन में ब्रह्मचर्य की महिमा सर्वोच्च है। दसलक्षण धर्मों में ब्रह्मचर्य के अभाव में शेष नौ धर्म व्यर्थ मालूम पड़ते हैं|

ब्रह्मचर्य की साधना दो प्रकार से की जाती है एक निश्चय ब्रह्मचर्य और दूसरा व्यवहार ब्रह्मचर्य। व्यवहार ब्रह्मचर्य का अर्थ है स्त्री मात्र का त्याग करके, शरीर की ऊर्जा का संरक्षण करके उसका उपयोग धर्म मार्ग की साधना में तथा निज आत्मा में रमण करना ही निश्चय ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य जीवन की सर्वोत्कृष्ट साधना है। ब्रह्मचर्य को स्वीकार किये बिना, सिर्फ मोक्ष सिद्धि ही नहीं, अपितु लौकिक सिद्धि भी नहीं होती।

अद्योगामी ऊर्जा, आत्मा का, शरीर का नाश करती है और ऊर्ध्वगामी ऊर्जा आत्मा के उत्थान की प्रक्रिया है। दुनिया में जितने भी उपद्रव होते हैं सभी ऊर्जा के अपव्यय के कारण होते हैं। ऊर्जा का ऊर्ध्वीकरण ही उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म तक पहुँचने का मार्ग है। अगर शरीर को स्वस्थ रखना है तो आप ब्रह्मचर्य से रहिये और अगर आत्मा को स्वस्थ करना है तो उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म को धारण करो।

यहां ब्रह्मचर्य की नहीं उत्तमब्रह्मचर्य धर्म की चर्चा है। उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म को मुनिराज ही धारण करते हैं। दिगम्बर जैन मुनि मन, वचन, काय और कृत, कारित, अनुमोदना से नौ कोटी से स्त्री मात्र का त्याग करते हैं। यही कारण है कि वो शिशु की तरह निर्विकार होकर धरती पर विचरण करते हैं। निर्ग्रंथ दीक्षा को प्राप्त करना नहीं पड़ता, स्वमेव प्राप्त हो जाती है, पर चाहिये अंतरंग साधना का बल। अपनी मनः निर्मलता इनती अधिक बड़ा लेना कि हमारी शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा ऊध्र्वगामी हो सके यही ब्रह्मचर्य की साधना है जो लौकिक एवं आत्मिक सिद्धियों की कारण है।

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