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गुरुदेव श्री १०८ आचार्य सन्मतिसागर महाराज का जन्म माघ शुक्ल 7 सन् 1938 में फफोतु,जिला एटा(उ.प्र.)में हुआ। आपने आचार्य १०८ महावीर कीर्ति जी महाराज से 18 साल की आयु में ब्रहमचर्य व्रत लिया। एवं सन 1961 में (मेंरठ ) में आचार्य विमलसागर महाराज से क्षुल्लक दीक्षा प्राप्त की। सन 1962(कार्तिक शुक्ला 12,सम्मेद शिखर) में आपको मुनि दीक्षा मिली | गुरुदेव 24 घंटो में केवल 3 चार घंटे ही विश्राम करता थे. वे पूरी रात तपस्या में लगे रहते थे। अपनी समाधी से पहले दिन यानि 23-12-10 को आपने अपने शिष्यों को पढ़ाया और शाम को अपना आखरी प्रवचन भी समाधी पर ही दिया. और सुबह 5.50 बजे आपने अपने आप पद्मासन लगाया। भगवन का मुख अपनी तरफ करवाया और अपने प्राण 73 वर्ष की आयु में 24-12-10(पौष कृष्णा 4,उदगांव से 40 कि.मी. दूर,कोल्हापुर) के पूर्वाचार्यो का ध्यान करते हुए महाप्रयाण कर गए ।

एक महान दिगम्बराचार्य तपस्वी सम्राट प.पू.सन्मति सागर जी महाराज (फफोतू,जिला एटा) की त्याग -तपस्या

गुरुदेव श्री १०८ आचार्य सन्मतिसागर महाराज भोजन नहीं करते थे. वे ४८ घंटो में एक बार मट्ठा और पानी लेते थे|

आपने आचार्य १०८ महावीर कीर्ति जी महाराज से 18 साल की आयु में ब्रहमचर्य व्रत लेते ही नमक का त्याग कर दिया .

सन 1961 में आचार्य विमलसागर महाराज से क्षुल्लक दीक्षा लेते ही दही,तेल व घी का त्याग कर दिया था.

सन 1962 में मुनि दीक्षा लेते ही आपने शक्कर का भी त्याग कर दिया

सन 1963 में आप ने चटाई का भी त्याग कर दिया
और 1975 में आपने अन्न का भी त्याग कर दिया.
सन 1998 में उन्होंने दूध का भी त्याग कर दिया.
सन 2003 में उदयपुर में मट्ठा और पानी के अलावा सबका त्याग कर दिया.
उन्होंने रांची में 6 माह तक और इटावा में 2 माह तक पानी का भी त्याग किया.
उन्होंने अपने एक चातुर्मास में 120 दिनों में केवल 17 दिन आहार लिया.
दमोह चातुर्मास में उन्होंने एक आहार एक उपवास फिर दो उपवास एक आहार तीन उपवास एक आहार ………इस तरह बढते हुए, 15 उपवास एक आहार, 14 उपवास एक आहार, 13 उपवास एक आहार ……….. से करते करते एक उपवास एक आहार, तक पहुँच कर सिंहनिष्क्रिदित महा कठिन व्रत किया.
उन्होंने अपने 49 साल के तपस्वी जीवन में लगभग 9986 उपवास किये.
लगभग 27.50 सालों से भी अधिक उपवास किये|
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आपके बारे में आचार्य 108 पुष्पदंत सागर महाराज ने यहाँ तक कहा है कि “महावीर भागवान के बाद आपने ने इतनी तपस्या की है.”
सन1973 में उन्होंने शिखरजी की निरंतर 108 वंदना की थी.

वे भरी सर्दियों में भी चटाई नहीं लेते थे.
गुरुदेव 24 घंटो में केवल 3 चार घंटे ही विश्राम करते थे. वह पूरी रात तपस्या में लगे रहते थे.
उन्होंने समाधी से 3 दिन पहले उपवास साधते हुए लोगो का कहने का बावजूद आपना आहार नहीं लिया.
अपनी समाधी से पहले दिन यानि 23-12-2010 को आपने अपने शिष्यों को पढ़ाया और शाम को अपना आखरी प्रवचन भी समाधी पर ही दिया.
और सुबह 5.50 बजे आपने अपने आप पद्मासन लगाया भगवन का मुख अपनी तरफ करवाया और अपने प्राण 73 वर्ष की आयु में 24-12-10 को आँखों से छोड़ दिए.
ऐसे तपस्वी सम्राट को मेरा कोटि कोटि नमन|

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