bhavlingisant.com

श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी के 29/05/2021 के प्रवचनांश

 

एक सेठ जी थे, जिनके पास एक छोटा सा संदूक था। वह संदूक सेठ जी के कमरे में बड़े आदर और सम्मान के साथ एक उच्च स्थान पर रखा हुआ था। सेठ जी जिसको रोज साफ करते थे स्वच्छ करते थे। घर परिवार के लोग, बच्चे, बहुएँ, पत्नी सभी रोज देखते थे कि पिता जी को इस संदूक से बहुत प्रेम है। आखिर इसमें है क्या? आज नहीं तो कल पिता जी ने संदूक में क्या रखा है देख कर तो रहेंगे।

अब देखो तो पिता जी की बड़ी सब खुशामदी करें। अब कहेंगे पिता जी एक बार बतला दो आपके संदूक में क्या है ? और पिता जी कह देते बेटा इस संदूक में वह है जो मुझे हमेशा सावधान रखता है। बहुत समय निकल गया। जब सभी ने एक बार बहुत विनम्र निवेदन किया प्रार्थना की, क्योकि सेठ जी के पास जो आता सेठ जी सबका साथ देते, सबका सहयोग करते, सबके साथ खड़े होते, चाहे अमीर हो-गरीब हो, छोटा हो-बड़ा हो, अपना हो-पराया हो वो सबका साथ देने के लिए हमेशा तत्पर रहते। आखिर ऐसा क्या था सेठ जी के अंतरंग में जो वो सबका साथ देते थे?

एक दिन जब सबने मिलकर के सेठ जी से कहा तो उन्होंने अपने घर परिवार के सब लोगों को बिठाया। सबके बीच में अपना संदूक लेकर के बैठे। अब तो देखो सबकी निगाहें संदूक पर हैं। सेठ जी ने वर्षों बाद उसका सबके सामने ताला खोला और खुलने के बाद अब तो सब लोग बहुत ही उत्सुक हो गए की आखिर देखें तो क्या इसमें है। सेठ जी ने उसमें से एक फटा कुर्ता और फटा हुआ मैला कुचैला पैजामा निकाला। सब लोग देखते रह गए इसमें तो कुछ भी नहीं है। केवल ये फटा कुर्ता पैजामा रखा हुआ है और वर्षों से केवल हम लोग इसी को देख रहे थे की सेठ जी इसको बड़े सम्मान से रखते थे।

सेठ जी ने कहा बेटा ! तुम लोगो ने सेठ जी का वैभव देखा है और मैंने अपने जीवन में ये दिन देखे हुए हैं जो संदूक में रखे हुए हैं। जब मैं ऐसे वस्त्रों को पहनकर के मेहनत करता था, परिश्रम करता था कोई मेरा साथ नहीं देता था बेटा। तभी मैंने संकल्प किया कि मैं अपने जीवन में अगर कोई भी दुखी होगा, कैसा भी होगा मैं सबका साथ दूंगा। बेटा ! ये मेरी औकात है जो मैं कभी नहीं भूलता। मुझे वो दिन याद आते हैं जब एक समय का भोजन भी मुझे नसीब नहीं होता था। यदि मैं पानी पीने के लिए किसी कूप पर पहुँच जाता था तो लोग मुझे वहां से दुत्कार कर भगा देते थे। पर आज जब मेरे पास सब कुछ है तो लोग मेरे पास आते हैं। लेकिन मैं जानता हूँ उस समय मैं कितना आहत होता था। आज मेरे पास कोई आता है मैं कभी किसी को आहत नहीं करता हूँ। वो पीड़ा मैंने भोगी है, मैं किसी दूसरे को उस पीड़ा में नहीं देखना चाहता। लेकिन मैं इसे इसलिए रखे हुए हूँ की यही मेरी औकात है जो मुझे हमेशा सेठ बनाकर नहीं एक इंसान बनाकर रखता है।

सुख में सब साथ देते हैं, दुःख में कोई साथ नहीं देता। कर्म को हमें व्यक्तिगत भोगना पड़ता है। परन्तु यदि चिन्तन बदल लो तो वही कर्म करते हुए भी तुम्हारे जीवन में धर्म का, पुण्य का मार्ग प्रारम्भ हो जायेगा।

पूर्ण प्रवचन सुनने के लिये- Youtube/Jinagam Panth Jain Channel

Scroll to Top