क्या सचमुच तिरुपति बालाजी मंदिर नेमीनाथ जैन मंदिर था , जिसे 12वीं सदी के आसपास बदला गया?
!! Was the Tirupati Balaji temple really the Neminath Jain temple, which was converted around the 12th century? !!
क्या सचमुच तिरुपति बालाजी मंदिर नेमीनाथ जैन मंदिर था , जिसे 12वीं सदी के आसपास बदला गया?
यह बात लगातार उठती रही है कि जब तिरुमला पहाड़ी पर एक भव्य द्रविड़ जैन मंदिर था तो वह अचानक 12 वीं सदी के पास कहां गायब हो गया और अचानक वेंकटेश्वरा के रूप में बालाजी मंदिर स्थापित हो गया। क्या यह उसी इतिहास की एक कड़ी नहीं है कि जब जेनों को बहुत बड़ी संख्या में मारा गया, पीटा गया, हत्या की गई और उन्हें बदलाव के लिए हर तरह से मजबूर किया गया। उनके मंदिरों को अपने-अपने वैष्णव धर्म और शेवों ने बदला।
जब देश में हिंदू संप्रदाय के द्वारा विभिन्न मस्जिदों की जांच की बातें, अदालतों में जगह-जगह उठाई जा रही हैं। उनके मूल रूप की जांच की याचिकाएं लग रही हैं। तो क्या ऐसे मंदिरों की भी जांच क्या नहीं होनी चाहिए। क्या सर्वे नहीं होना चाहिए कि वास्तव में जिस मंदिर को आज जिस रूप में देख रहे हैं, उसे सैकड़ों वर्ष पहले किसी अन्य रूप में भी देखा जाता था और वही उसका मूल स्वरूप है। इस कड़ी में तिरुपति बालाजी मंदिर के जांच के लिए अपील करते हुए हम 6 कारणों को आधार मानते हैं-
पहला कारण तिरुपति मंदिर है वेंकटेश्वरा भगवान का , यानी विष्णु जी का, पर विष्णुसहस्त्रनाम में ऐसा कोई नाम नहीं
चौंकिए मत , यह पहला कारण है तिरुपति बालाजी मंदिर में मूल प्रतिमा को वेंकटेश्वर भगवान की बताया जाता है। जो कहा जाता है विष्णु जी का ही यह एक नाम है। तो निश्चय ही है विष्णु सहस्त्रनाम में यह नाम आना चाहिए। किन्तु विष्णु सहस्त्रनाम के 108 श्लोकों के विष्णु जी के 1000 नामों में वेंकटेश्वरा, वेंकट, वेंकट नाम के ईश्वर आदि कोई नाम नहीं मिला। वैसे इन वेंकटेश्वरा के बारे में हिंदू संप्रदाय में एक किवदंती प्रचलित है कि माता यशोदा ने श्री कृष्ण जी के, अनेक विवाह हुए, उनमें से किसी को नहीं देखा। तब उन्होंने इच्छा जाहिर की कि एक बार एक अवतार में , वह उनका विवाह देखना चाहती हैं। इसलिए विष्णु जी ने अपनी माता की इच्छा पूर्ण करने के लिए , वेंकटेश्वरा के रूप में जन्म लिया , तब यशोदा जी का नाम वकुलादेवी के रूप में हुआ और वेंकटेश्वरा का विवाह पद्मावती से हुआ। पर वेंकटेश्वरा विष्णु ही हैं , तो विष्णु सहस्त्रनाम में नाम क्यों नहीं है।
दूसरा कारण, पूरा शरीर वस्त्र आभूषण से ढका हुआ, पर अन्य किसी भगवान का क्यों नहीं
तिरुपति बालाजी के वेंकटेश्वरा भगवान को अनेकों ने देखा होगा, पर यहां वेंकटेश्वरा की मूर्ति खडगासन रूप में आप, पूरे चेहरे और शरीर को नहीं देख पाते। पूरा शरीर वस्त्र आभूषण से ढका रहता है । मात्र चेहरे का कुछ हिस्सा या कह सकते हैं शरीर का मात्र 2 फ़ीसदी हिस्सा ही आप देख पाते हैं। क्या हिंदू संप्रदाय में कहीं शिव, शंकर, विष्णु , ब्रह्मा जी, श्रीराम, श्रीकृष्ण, गणेश, हनुमान आदि किसी भी भगवान का चित्र या मूर्ति , आपने इस तरीके से पूरी तरह ढकी हुई , किसी मंदिर जी में भी क्या कोई आकृति देखी है, जैसी तिरुपति बालाजी में वेंकटेश्वरा भगवान की दिखाई जाती है या देख पाते हैं। क्या इसके छिपाने का कोई और कारण है। क्या असली मूरत को हम किसी और रूप में दिखाना चाह रहे हैं। यह भी एक बहुत बड़ा सवाल जिज्ञासा के रूप में आसानी से उभरता है।
तीसरा कारण, विष्णु जी का हाथ हमेशा किसी ना किसी उपकरण या वस्तु को लिए होता है, या आशीर्वाद मुद्रा में,
जैसा विभिन्न मंदिरों और चित्रों में देखा गया है भगवान विष्णु जी के चारों हाथों की मुद्रा में सैकड़ों चित्र हैं, इनकी मूर्ति के चारों हाथों में कुछ ना कुछ अवश्य होता है। एक हाथ में सुदर्शन चक्र , दूसरे हाथ में शंख , तीसरे हाथ में कमल और चौथे हाथ में गदा सामान्यतः रूप से दिखाई जाती है। किसी में आशीर्वाद के रूप में उठते हाथ भी देखे गए हैं, जिसमें अंगूठे से कमल की पंखुड़ी दबी हुई भी दिखती है। पर यहां वेंकटेश्वरा की प्रतिमा के दोनों नीचे के हाथ , एक अंदर की ओर मुद्रा में है और दूसरे की एक अजीब तरीके से नीचे हथेली दिखती है । क्या विष्णु जी की ऐसी कोई तस्वीर, कभी किसी ने कहीं अन्य देखी है। क्या इसे विष्णु जी का ही रूप कहा जा सकता है। एक बार इन हाथों की मूल संरचना पर जांच का विषय नहीं उठ सकता, एक बार जांच तो होनी चाहिए।
चौथा कारण , अभिषेक मुद्रा सार्वजनिक क्यों नहीं की जाती और पूरे वस्त्र, आभूषण के बिना अभिषेक क्यों नहीं होता
जैसा बद्रीनाथ की प्रतिमा के अभिषेक के बारे में कहा जाता है, ठीक उसी तरह तिरुपति बालाजी की प्रतिमा के बारे में भी जांच का विषय उठ पाता है, क्योंकि अभी तक अभिषेक के सार्वजनिक ना दिखाने से मन में जिज्ञासा उठना सामान्य बात है । जब हजारों सोशल मीडिया पर चैनल पर लगातार अभिषेक और अन्य क्रियाएं 24 घंटे दिखाई जाती हैं, लाइव दिखाई जाती हैं , तो यहां से मूर्ति का अभिषेक क्यों सार्वजनिक रूप से नहीं दिखाया जाता। क्यों मूर्ति के सभी आभूषण, वस्त्र उतारकर अभिषेक नहीं किया जाता। सिर पर मुकुट, हार अंग वस्त्र , माला आदि कुछ के साथ ही अभिषेक किया जाता है। पहले अंग वस्त्र को उतारकर भी किए जाने का एक वीडियो भी मिला है। पर अब इस तरह नहीं क्या मूल प्रतिमा की बनावट के बाद में कुछ जोड़ा या परिवर्तित गया। उस बदलाव को ना दिखाने के लिए भी, क्या मूर्ति के आवरण को इस प्रकार दिखाया जाता है। आरती भी अंग वस्त्र के साथ होकर, बाद में उन्हें वस्त्र आभूषण से पूरी तरह शरीर को ढक दिया जाता है । 98 फीसदी शरीर पूरी तरह ढक दिया जाता है। मात्र चेहरे का कुछ हिस्सा ही आप देख पाते हैं ।क्या कारण है कि अभिषेक, सार्वजनिक रूप से नहीं होता। क्या यह प्रतिमा दिगंबर रूप में थी, जिसको बात में बदला गया, क्योंकि यह प्रश्न उठना स्वाभाविक हो जाता है।
पांचवा कारण, वेंकटेश्वरा बालाजी मंदिर का इस नाम से, निर्माण कब, कैसे , किसने किया
अगर द्रविड़ जैन मंदिर ,जो 1200 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन रहा, जिसके बारे में इतिहास में अनेकों उल्लेख मिलते हैं , उसको नहीं बदला । बल्कि दावा करें कि यह तिरुपति में तिरुमाला पहाड़ी पर, इसी नाम से बनवाया गया तो किसने बनवाया। आज भी यहां पर द्रविड़ भाषा के कुछ आलेख साफ दिखते हैं और द्रविड़ जैन भव्यता और उसकी भाषा मानी जाती रही है ।इसके निर्माण का हिंदू धर्म के अनुसार , कोई स्पष्ट इतिहास नहीं दिखता ।अगर इतिहास को दूसरे एंगल से देखें तो सातवीं आठवीं सदी के बाद, जब जैनों का बड़ी संख्या में कन्वर्जन किया गया, हत्यायें की गई , मंदिरों को बदला गया , तब जैसे मदुरई का मीनाक्षी मंदिर , कांचीपुरम , वरदापेरूमल नागराज , तिरुवन्नामलाई आदि मंदिरों के साथ इसको भी क्या नहीं बदला गया। जिज्ञासा जांच का विषय जरूर बनती है।
छटा कारण क्या इस बात पर संधि हुई थी कि बाहुबली स्वामी ले लो या तिरुपति के नेमिनाथ, एक हमको देना होगा
दावा है कि बेंगलुरु की सेंट्रल लाइब्रेरी में जो पुरातत्व संभाग कर्नाटक में उपलब्ध है। उसमें एक दस्तावेज हिंदू इतिहासकार एस टी कृष्णा राव ने पढ़ा और टिप्पणी दी कि उसमें बुखारिया_संधि के नाम से एक प्राचीन आलेख उन्होंने पढ़ा। जिसमें लिखा है कि 14वीं शताब्दी में जैनों और वैष्णव में एक संधि हुई थी कि जैनों को तिरुपति यानी तिरुमलाई के नेमीनाथ जैन मंदिर को वैष्णो को सौंप देना होगा और वैष्णव श्रवणबेलगोला के बाहुबली प्रतिमा को नष्ट नहीं करेंगे अन्यथा विजयनगर राज्य के बुखारिया राजा, जो उसके स्थापनकर्ताओं में से एक हैं ,उसके राज्य के सभी जैनों को दंडित कर देगा।
इसका अनुवाद मुंबई के भरत कुमार काल द्वारा एक पत्रिका जैन गजट के 29 जुलाई 2013 के अंक में उल्लेखित किया है। अगर यह आलेख यानी बुखारिया संधि हुई , तो उसे प्रकाश में लाकर इसकी पूरी जांच करनी आवश्यक बन जाती है।