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श्री सुप्रभात स्तोत्र

(पद्यानुवाद-आचार्यश्री विमर्शसागर जी महाराज)
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हे जिनेन्द्र ! स्वर्गावतरण-तव, हुआ जन्म अभिषेकोत्सव,
दीक्षाग्रहण समय उत्सव जो, केवलज्ञान प्रभा उत्सव ।
गायन संग हुई जो पूजा, संस्तुतियाँ निर्वाणोत्सव,
उसी तरह हो मंगलकारी, मेरा सुप्रभात उत्सव ॥ 1 ॥
देवगणों के मुकुट जहाँ पर, नत होते हों आनंदित,
खचित महामणि आभाओं से, चरण युगल हैं स्पर्शित।
कर्म विजेता हे नाभि सुत ! अजितनाथ ! संभव भगवान् !
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥ 2 ॥
तीन छत्र मस्तक पर शोभित, दुरते हुये चँवर गतिमान,
हे देवाधिदेव अभिनंदन-मुनि ! हे सुमतिनाथ भगवान् ! ।
हे पद्मप्रभु जिन ! तव तन द्युति, पद्मराग मणि प्रभा समान,
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥3 ॥
कदलीदल सम देहवर्ण शुभ, हे सुपार्श्व ! अर्हन भगवान्,
रजतगिरि हिमगिरि सित मुक्ता-सम हे चंदप्रभु भगवान् ।
पुष्पदंतजिन! धवल विमल शुचि, शुद्ध स्फटिकमणी समान।
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥4॥
हे शीतल जिन ! शोभित तव तन, तपे स्वर्ण की कांति समान,
पापरूप वसुकर्म पंकमल-नाशे हे श्रेयांश भगवान् !
लाल-लाल बंधूक पुष्प सम, तव तन वासुपूज्य भगवान् !
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥ 5 ॥
उद्धत कामबली जेता हे विमल ! अमल तनधारी आप,
हे अनंत जिन ! नंत सुखार्णव, महाधैर्य का प्रखर प्रताप।
दुर्धर कर्म कलुष से विरहित, धर्मनाथ जिनवर भगवान्,
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥6॥
शांतिनाथ हे शांति प्रदाता, शोभित अमरी पुष्प समान,
कुन्थुनाथ जिन! अहा विभूषित दयारूप निजगुण सुखखान।
तीर्थनाथ देवाधिदेव तारो हे अरहनाथ भगवान् ।
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥7॥
मोहमल्ल के मदभंजक हे मदन विजेता मल्लिनाथ,
शिवकारी सत्शासनधारी ऐसे हे मुनिसुव्रतनाथ ।
परमशांतमय सत्य संपदा धारक नमिनाथ भगवान्,
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥৪॥
उज्ज्वल कांति तमाल वृक्ष सम शोभित नेमिनाथ भगवान्,
जीत लिये उपसर्ग भयंकर, क्षमामूर्ति हे पार्श्व महान।
स्याद्वाद सिद्धान्तमणी को वर्द्धमान आदर्श समान,
सुप्रभात हो मेरा हे जिन ! करते सतत् आपका ध्यान ॥9 ॥
श्वेत, नील अरु हरित, लाल वा पीतवर्ण से शोभित तन,
जो अविनाशी शिवसुखवासी जिनका ध्यान करें मुनिजन।
ढाई द्वीप के तीर्थ प्रर्वतक, सत्तर एक शतक भगवान्,
सुप्रभात हो मेरा हे जिन! करते सतत् आपका ध्यान ॥10॥
तीर्थङ्कर चौबीस का, प्रतिदिन प्रातः ध्यान।
सुप्रभात नक्षत्र शुभ, मंगल कहा महान ॥ 11 ॥
देव सिद्ध मुनिसंघ का, प्रतिदिन प्रातः ध्यान।
सुप्रभात नक्षत्र शुभ, श्रेय रूप सुखखान ॥ 12 ॥
किया प्रवर्तन तीर्थ का, भविजन को सुखथान ।
उन महान वृषभेष का प्रातः उत्तम ध्यान ॥ 13 ॥
नित्योदित रवि ज्ञान से, मिटा तिमिर अज्ञान ।
अहा ! खुले नयनांध कर सुप्रभात जिन ध्यान ।। 14 ॥
किया कर्मवन दग्ध पा-तैजस शुक्लध्यान ।
कमल नयन जिन वीर का, सुप्रभात शुभध्यान ।। 15 ॥
है जिनेन्द्र शासन अहा ! तीन लोक हितभूप।
सुप्रभात नक्षत्र शुभ, शिवं सुमंगल रूप ॥ 16 ॥
(इतिश्री सुप्रभात स्तोत्र)

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