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छोटी बात-बड़ी शिक्षा

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आचार्यश्री ससंघ जब अशोकनगर की ओर बढ़ रहे थे तब गौघाट का एक प्रसंग सामने आता है।

गुरुदेव बिहार करते हुए भी प्राकृत की कक्षा नित्य लिया करते थे जिसमें पूरा संघ उपस्थित रहता था और श्रावकगण भी। वहाँ विद्यालय में रुकना हुआ था। दीदीयों ने स्कूल की एक कक्षा से बोर्ड उठाकर आचार्यश्री के कमरे में रख दिया।

जब गुरुवर आए पढ़ाने के लिए, तो वहाँ बोर्ड, चाक और डस्टर देखकर प्रसन्न हुए, फिर पूछा- “ये कहाँ से आ गए?”

दीदी ने बतलाया कि हम लोग बाजू-वाली कक्षा से उठा लाए हैं।

सुनते ही गुरुदेव का चेहरा मलीन हो गया, फिर बोले- “यहाँ संघ को मात्र रुकने का स्थान दिया गया है, किसी वस्तु का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी गई है, और बिना पूछे किसी वस्तु के ले लेने से चोरी का दोष लगता है, आप लोग इसे जहाँ का तहाँ रख दें, आज नहीं पढ़ाऊँगा।”

गुरुदेव के एक वाक्य मात्र से दीदीयों के हृदय में भूकम्प सा हो उठा, उन्हें अपनी त्रुटि पर पश्चाताप हो आया, फलतः उनके मुँह से निकला- ‘भविष्य में ऐसी गलती नहीं करेंगे, क्षमा कीजिए गुरुदेव।’

घटना छोटी थी, किन्तु अध्यात्म योगी ने अपने वचन और चर्या के माध्यम से बहुत बड़ी शिक्षा दे दी थी।

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