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सरूव थुदी

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उवओगमओ अप्पा अहं, जाणगसरूवो मम अहा।
णिदंदो अहमणिबंधो हूं, आणंदकंद-सहज-महा।।
जाणिय सया दु संतमओ, णिय संतरस-पीउं सया।
णिय संतरस-लीणम्मि हं, णिय चेद-धुवरूवो अहा।।1।।
महसु असंखपदेसेसुं, भयवंत-अप्पा णिवसदि।
हं हुवमि परमप्पा सयं, परमप्प-रूवो विलसदि ।।
हं सिद्धकुल-अंसो हवमि, हु दंसावदि भविदव्वदा।
णिय सत्ति-अंसदो सिद्धो हं, दव्वस्स णिय णिय दव्वदा।।2।।
रागादि-भाव दु विगडीआ, दव्वम्मि णिय णवि दंसणं।
परदव्व-परभावाण दु, रूवम्मि चिद णवि फंसणं।।
पुहु सव्वदो विर सव्वदो, अवियाररूवो मम अहा,
हं पूर-सहजसहावदो, जो हु वीदागमओ कहा।।३।।
गुण-दव्वदो हं धुवमहा, परिणमं णियदं पत्तो हूं।
परिणदं अत्तमओ खलु, सत्तीए णियद‌ओ अत्तो हूं।।
कारण सयं हूं कज्ञ्जमवि, सिवमग्गो मग्गफलं सयं।
हं भावलिंगी संतो जाणग- हुवमि सफल हु जीवणं ।।4।।

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