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कमंडल विज्ञान


प्रसंग रावतभाटा का है,

एकदिन समय अधिक हो गया, केवल संजयशास्त्री ही कक्ष में थे। गुरुवर कमंडल लेकर शौच क्रिया को जाने लगे,

तभी पं. संजयशास्त्री ने कहा- आज कोई नहीं है तो कमण्डल का सौभाग्य आप मुझे दे दीजिए।

थोड़ा चलने के बाद गुरुवर ने मुस्कराते हुए कहा- ‘शास्त्रीजी ! कमंडलु की टोंटी पीछे रखी जाती है।’

शास्त्रीजी- ‘महाराजश्री ! हमने पहली बार कमंडलु पकड़ा है अन्यथा हम तो महाराजों से दूर ही रहते हैं।’

गुरुदेव- ‘आज हमारा कमंडल पकड़ा है किसी पर्याय में अपना कमंडल-पीछी भी पकड़ोगे, क्योंकि इसके बिना मुक्ति संभव नहीं, इसलिए हम कहते हैं ज्ञान के साथ चर्या का विवेक भी आवश्यक है।’

शास्त्रीजी- ‘तो क्या कमंडल ऐसा पकड़ने का कोई कारण है?’

गुरुदेव – ”जब साधु की समाधि हो जाती है, तब टोंटी आगे रखी जाती है।”

शास्त्री जी फिर तो हमसे भूल हो गई, हमें क्षमा करना।

गुरुदेव ने वात्सल्य के साथ अपनी सहज मुस्कान बिखेर दी।

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