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जिनागम में मुनिराजों की प्रत्येक क्रिया-चर्या करने की एक सम्यक विधि बतायी गयी है जिसे समिति कहते है| मुनिराज जब आहार चर्या को निकलते हैं तो उनके लिये बताया गया कि आप 32 अंतराय टालकर एवं 14 मलदोष से रहित हो अपनी आहार चर्या का करें| यदि किसी कारण से उनकी मुद्रा छूट जाती है, और उन्होंने सिद्ध भक्ति नहीं पढ़ी है तो वह स्वयं उचित समझते हैं तो पुनः मुद्रा धारण कर सकते है पश्चात आहार प्रत्याख्यान के समय अपने गुरुदेव को पूरी घटना बता देते हैं किंतु यदि उन्होंने चौके में पहुँचकर सिद्ध भक्ति कर ली है फिर किसी कारण से उनकी मुद्रा छूट जाती है तो उनका उस दिन का अंतराय ही माना जाता है|
देखो जिनागम में देव – शास्त्र – गुरु तीनों का सर्वोकृष्ट स्थान बताया गया है | जैसे अपन जिनेंद्र देव को बिना नहाये नहीं छूते, शास्त्र जी को बिना नहाये नहीं छूते ऐसे ही महाराज आदि को भी हमें बिना नहाये नहीं छूना चाहिये |
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