‘गुजिया पार्टी’
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राकेश भैया जब टीकमगढ़ में बी.एससी. कर रहे थे, तब वहाँ की हिमांचल गली में एक कमरा किराए से ले रखा था। कुछ दूरी पर लोकेश थे, वहाँ और भी मित्र बन गए। कमलेश बसंत, पवन, श्रोत्रिय, निरंजन, पदम, संतोष आदि।
एक दिन शाम को सभी मित्रों ने ‘गुजिया पार्टी’ का मन बनाया और टीकमगढ़ की प्रसिद्ध गुजिया मँगाई। जब मित्रगण गुजिया खाने लगे तो एक गुजिया में मरा हुआ झींगुर (काकरोच) पाया।
फलतः घिनयाकर गुजिया फेंक दी गई, उसी क्षण राकेश ने संकल्प किया कि कभी बाजार की गुजिया नहीं खायेंगे। अन्य मित्रों ने भी वैसा ही मन बनाया।